भारत। उपखण्ड सैंपऊ के गाँव पिपहेरा में आज भी पारम्परिक तरीके से होली का पवित्र उत्सव मनाया जाता है पिपहेरा के लोग होली के गीतों को गाते व डफ , डोलक मजीरे आदि वाद्य यंत्रों को बजाते हुए पुरे गांव की परिक्रमा लगाते है जिसमें वे उन सभी पुराने होली के गीतों को बड़े हर्ष व उल्लास से गाते है जिनमें तरुण, वृद्ध और बाल सभी का पूर्ण मनोयोग से सहयोग रहता है। गाँव के सेवानिवृत शिक्षक खेमचन्द्र त्यागी जी ने बताया कि हमारे गाँव में कई महोल्ले हैं जो दो थोकों में बंटकर होली के उत्सव को मनाते हैं जिसमें एक थोक के लोग गाते बजाते हुए गाँव भ्रमण करते है उसके पीछे पीछे दूसरा थोक की ठीक उसी तरह गाते बजाते हुई गाँव का भ्रमण करता है। आज एक ओर जहाँ होली का उत्सव गाँवों में से समाप्त होता जा रहा है। वहीँ पिपहेरा में होली के उत्सव का ऐसा नजारा देखने को मिलता है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि हम बृज में होली खेलने आये हैं गाँव के सभी लोग अपने अपने आपसी मतभेदों को भुलाकर सौहार्दपूर्ण इस उत्सव को मनाते है। गाँव के ही सामाजिक कार्यकर्ता बालकृष्ण तिवारी व सैपऊ खण्ड प्रचार प्रमुख भूपेद्र त्यागी ने बताया कि होली का उत्सव गांव में आंमला एकादशी के दिन या उससे एक-दो दिन पहले अच्छा दिन देखकर पूर्वजों को याद में अनराये गाकर शुरू किया जाता है जिसमें गांव के सभी लोग शाम को एकत्रित हो कर पिछले पूरे संवत जितने भी लोगों को परम पद प्राप्त हुआ है उनके घर घर जाकर उनकी याद में होली के शोक युक्त गीत गाकर उनको शोक मुक्त होने का संदेश देते हैं और उन्हें अपने उसे दिगवंत का दुख भूलकर आगे के उत्सव धूमधाम से बनाने के लिए शोक मुक्त हो जाने का भी संदेश देते हैं इसी तरह अब भी गांव में लगभग 8 से 10 दिन तक होली का उत्सव धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है जिनमें अलग अलग दिन अलग अलग तरीके से होली का आनंद लिया जाता है। होली के उत्सव में गाँव के मातृशक्ति भी पीछे नहीं हैं वे भी अपनी अपनी टोली बनाकर पूरे गाँव में होली खेलती है व वे विशेष रूप से उन घरों / परिवारों में अवश्य जाती है जिनमें अनराये गाये जा चुके है। गाँव में बताया जाता है कि जब तक महिलाओं द्वारा होली रंग अनराये गाये गये परिवारों में नहीं पडता तब तक होली का उत्सव पूर्ण नहीं माना जाता इसलिए इस होली के उत्सव में मातृशक्ति की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। जिसे मातृशक्ति अपने मनोयोग से पूर्ण भी करती हैं। गाँव में होली उत्सव के समापन के रुप चैत्र कृष्ण छठ को मेले का आयोजन श्रीधाम मढेकी वाले बालाजी मंदिर पर किया जाता है जिसमें इस बार तृतीया से पंचमी तक सत्संग का आयोजन किया जा रहा है जिसमें श्री धाम कुल्हाडा के श्रीश्री १०००८ श्री स्वामी भाष्करानन्द जी व उनके साथ अन्य सन्तों के प्रवचन किये जायेंगे और छठ के दिन झाँकी निकाली जायेगी जिसके साथ होली उत्सव का समापन होगा
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