*महाराणा सांगा की विरासत: शौर्य की अमरगाथा* --- रविंद्र आर्य
*सच्ची वीरता केवल युद्धभूमि में नहीं, बल्कि अपने कर्तव्यों और मूल्यों की रक्षा में भी होती है।*
-- जैन संत सूर्य सागर
- *जैन संत सूर्य सागर ने किया ओकेन्द्र राणा का समर्थन, वीरता की परंपरा को किया नमन*
रिपोट: रविंद्र आर्य
राजपूत वीरता की गाथाएं इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हैं। महाराणा सांगा, जिनकी वीरता और बलिदान की मिसाल दी जाती है, आज भी राजपूतों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। वर्तमान में, उनकी इसी विरासत को आगे बढ़ाने वाले योद्धा ओकेन्द्र राणा और उनके साथी भी शौर्य और साहस के प्रतीक बनकर उभर रहे हैं।
हाल ही में, प्रख्यात जैन संत सूर्य सागर महाराज ने भी महाराणा सांगा की वीरता का स्मरण किया और ओकेन्द्र राणा के समर्थन में अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। उन्होंने कहा कि *"राजपूत वीरता केवल तलवार की धार से नहीं, बल्कि स्वाभिमान और निडरता से भी परिभाषित होती है।"*
*महाराणा सांगा: अदम्य साहस की प्रतीक*
महाराणा सांगा, जिन्हें मेवाड़ का शेर कहा जाता था, भारतीय इतिहास में वीरता और त्याग का अनुपम उदाहरण हैं। बाबर के विरुद्ध संघर्ष में उन्होंने अपार शौर्य दिखाया और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए जीवन भर संघर्ष किया। उनका जीवन बताता है कि युद्ध केवल शक्ति से नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और अदम्य इच्छाशक्ति से जीते जाते हैं।
*ओकेन्द्र राणा और राजपूत समाज का गौरव*
आज ओकेन्द्र राणा और उनके साथी भी उसी परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं, जिसे महाराणा सांगा ने स्थापित किया था। वे राजपूत संस्कृति और गौरव को जीवंत रखने के लिए तत्पर हैं। समाज में अपनी भूमिका निभाते हुए वे स्वाभिमान, सेवा और साहस का उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
*सूर्य सागर जैन संत का समर्थन*
जैन संत सूर्य सागर ने इस अवसर पर कहा कि "महाराणा सांगा केवल राजपूतों के नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारत के गौरव हैं। उनकी वीरता को नमन करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। ओकेन्द्र राणा जैसे वीर जब उनके पदचिह्नों पर चलते हैं, तो यह हमारे इतिहास और संस्कृति के प्रति सम्मान को दर्शाता है।"
*"विजयी भवः" का संदेश*
आज जब ओकेन्द्र राणा और उनके साथी राजपूत वीरता की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं, तो समाज से भी उन्हें समर्थन मिल रहा है। यह केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि समस्त राजपूत समाज की विजय यात्रा है। इसी भाव से संत सूर्य सागर जी ने भी उन्हें "विजयी भवः" का आशीर्वाद दिया।
इतिहास साक्षी है कि जब भी भारत के स्वाभिमान की बात आई, राजपूत वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी। महाराणा सांगा हों या ओकेन्द्र राणा, वीरता और बलिदान की यह परंपरा अनवरत चलती रहेगी। भारतीय संस्कृति, समाज और इतिहास को समर्पित ऐसे योद्धाओं को सलाम!
*महाराणा सांगा: शौर्य और त्याग की अमर गाथा*
- *जैन संत सूर्य सागर महाराज द्वारा प्रेरणादायक विमर्श*
भारतीय इतिहास में यदि किसी राजा का नाम शौर्य, स्वाभिमान और बलिदान के साथ लिया जाता है, तो वह है महाराणा सांगा। वे न केवल राजस्थान, बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष के गौरव हैं। उनकी वीरता, निडरता और बलिदान की कहानियाँ आज भी युवाओं को प्रेरित करती हैं। हाल ही में, प्रख्यात जैन संत सूर्य सागर महाराज ने एक प्रवचन के दौरान महाराणा सांगा की वीरता और उनके जीवन मूल्यों पर प्रकाश डाला।
*महाराणा सांगा: त्याग और बलिदान के प्रतीक*
संत सूर्य सागर महाराज ने अपने संबोधन में कहा,
"महाराणा सांगा केवल एक योद्धा नहीं थे, वे धर्म और कर्तव्य की प्रतिमूर्ति थे। उनका जीवन बताता है कि सच्चा वीर वही होता है, जो अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए प्राण तक न्यौछावर करने को तैयार रहे।"
महाराणा सांगा का जीवन कठिन संघर्षों से भरा हुआ था। वे मेवाड़ के सिसोदिया वंश के शासक थे और भारत की स्वतंत्रता तथा आत्मसम्मान के लिए सदैव तत्पर रहे। खानवा के युद्ध में उन्होंने बाबर से लोहा लिया और स्वयं गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद अपने सैनिकों का नेतृत्व किया। उनका शरीर युद्ध के घावों से भर चुका था – एक आँख चली गई थी, एक हाथ कट गया था, और शरीर में अनेकों तलवारों और भालों के घाव थे। फिर भी, उनका मनोबल कभी नहीं टूटा।
*धर्म और वीरता का समन्वय*
जैन संत सूर्य सागर ने महाराणा सांगा के धर्मपरायण और न्यायप्रिय स्वभाव पर विशेष जोर देते हुए कहा,
*"एक सच्चा योद्धा केवल तलवार से नहीं, बल्कि अपने धर्म और नैतिकता से भी महान बनता है। महाराणा सांगा ने कभी अधर्म का सहारा नहीं लिया, वे केवल सत्य और न्याय के लिए लड़े।"*
महाराणा सांगा की नीति थी कि धर्म और न्याय के लिए किसी भी सीमा तक जाया जाए। उन्होंने मुगलों और दिल्ली सल्तनत की क्रूर नीतियों का कड़ा विरोध किया और एकजुट भारत के सपने को साकार करने का प्रयास किया। उनका मानना था कि अगर हिंदू और राजपूत राजा एक हो जाएं, तो देश की स्वतंत्रता अक्षुण्ण रह सकती है।
*युवाओं के लिए प्रेरणा*
सूर्य सागर महाराज ने युवाओं को महाराणा सांगा से प्रेरणा लेने का संदेश देते हुए कहा कि
"आज के समय में जब लोग स्वार्थ और निजी लाभ के लिए जीवन जी रहे हैं, महाराणा सांगा की निःस्वार्थ भक्ति और बलिदान हमें अपने समाज और राष्ट्र के लिए कुछ करने की प्रेरणा देता है।"
वे कहते हैं कि वर्तमान पीढ़ी को चाहिए कि वे अपने कर्तव्यों के प्रति उतनी ही निष्ठा रखें, जितनी महाराणा सांगा ने अपने जीवनकाल में रखी थी। उनके जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि संघर्षों से भागने की बजाय उनका सामना करना चाहिए, और सच्चा योद्धा वही होता है जो कठिनाइयों के बावजूद हार नहीं मानता।
*एक युगपुरुष की अमर गाथा*
महाराणा सांगा का जीवन केवल युद्धों तक सीमित नहीं था, बल्कि वे एक उच्च आदर्शों वाले शासक थे। उनका जीवन हमें सिखाता है कि त्याग, वीरता और धर्म के प्रति समर्पण किसी भी व्यक्ति को महान बना सकता है।
संत सूर्य सागर महाराज के अनुसार,
"यदि हमें अपनी संस्कृति, परंपरा और धर्म की रक्षा करनी है, तो हमें महाराणा सांगा जैसे वीरों की कहानियों को सदैव स्मरण रखना होगा। उनका जीवन न केवल राजपूतों, बल्कि सम्पूर्ण भारत के लिए प्रेरणा है।"
*महाराणा सांगा की विरासत शौर्य की अमरगाथा*
आज भी महाराणा सांगा की गाथाएं हमें यह स्मरण कराती हैं कि सच्ची वीरता केवल युद्धभूमि में नहीं, बल्कि अपने कर्तव्यों और मूल्यों की रक्षा में भी होती है।
महाराणा सांगा भारतीय इतिहास के उन महान योद्धाओं में से एक थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन मातृभूमि और स्वाभिमान की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया।
इतिहास का गहन अध्ययन किए बिना, महापुरुषों पर अनर्गल आरोप लगाना अज्ञानता का परिचायक है। महाराणा सांगा कभी भी बाबर के सहयोगी नहीं थे, बल्कि वे भारत से विदेशी आक्रांताओं को खदेड़ने का संकल्प लेकर चले थे। उन्होंने दिल्ली सल्तनत, गुजरात सल्तनत और मालवा सल्तनत के सुल्तानों को परास्त किया था। उनकी वीरता का प्रमाण यह है कि खानवा के युद्ध में राजपूत वीरों ने एक लाख से अधिक बलिदान दिए, फिर भी वे लड़ते रहे, क्योंकि उनके लिए आत्मसम्मान और स्वतंत्रता सर्वोपरि थी।
बाबर द्वारा भारत पर की गई बार-बार घुसपैठ का कोई यह दावा नहीं कर सकता कि उसे हर बार किसी भारतीय शासक का न्योता मिला था। विदेशी आक्रमणकारियों की रणनीति ही यही थी—भीतरू लोगों को खरीदकर आपस में लड़वाना और फिर स्वयं सत्ता स्थापित करना। महाराणा सांगा ने तो मुगलों को देश से बाहर खदेड़ने का सपना देखा था, लेकिन दुर्भाग्यवश राजपूतों के आपसी संघर्ष और कुछ सामंतों के विश्वासघात ने भारत की स्वतंत्रता को कमजोर किया।
आज की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर, बिना ऐतिहासिक तथ्यों को समझे महापुरुषों का अपमान करना एक खतरनाक प्रवृत्ति बनती जा रही है। ऐसे नेताओं और कथित इतिहासकारों को इतिहास पढ़ने और समझने की जरूरत है, न कि अपनी अल्पज्ञता का प्रदर्शन करने की। महाराणा सांगा केवल एक शासक नहीं, बल्कि भारतीय अस्मिता और स्वाभिमान के प्रतीक थे।
उन पर सवाल उठाने वालों को यह भी जानना चाहिए कि जिस योद्धा के ध्वज तले हजारों वीर राजपूत बलिदान हुए, जिसने जीवनभर अन्याय और विदेशी शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी, उसके खिलाफ बोलने से पहले इतिहास और तथ्यों का अध्ययन करना चाहिए।
लेखक: रविंद्र आर्य 7838195666
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