मुख्यमंत्री ने दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर में ‘भारतीय योग परम्परा में योगिराज बाबा गम्भीरनाथ का अवदान’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी को सम्बोधित किया

‘अप्राप्य आयाम’ एवं ‘एथिक्स इण्टीग्रिटी एवं एप्टीट्यूड’ पुस्तकों का विमोचन तथा नाथ सम्प्रदाय के 20 गुरुओं के तैल चित्र प्रदर्शनी का अवलोकन किया

दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश, जिसने न केवल इस भौतिक जगत, बल्कि ब्रह्माण्ड के रहस्यों को भी उद्घाटित किया : मुख्यमंत्री

जब दुनिया अंधकार में थी, तब 5000 वर्ष पूर्व हमारे ऋषि भारत के ज्ञान को संहिताबद्ध कर रहे थे

आपने विगत 10 वर्षां में बदलते हुए भारत को देखा, भारत की योग परम्परा को दुनिया के 193 देशों ने अपनाया

प्रधानमंत्री जी का कहना है कि विरासत को विकास से जोड़कर ही सतत् विकास का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता

महाकुम्भ के कारण पूरे प्रयागराज शहर का कायाकल्प हुआ, 7,000 करोड़ रु0 खर्च करने बदले में उ0प्र0 को 03 लाख करोड़ रु0 रिटर्न के रूप में वापस मिले

एक अस्थाई शहर में 45 दिनों में 66 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं का आगमन, उन लोगों के लिए अकल्पनीय, जो वहां नहीं आए, लेकिन जो महाकुम्भ में आए, उनके लिए यह स्थिति अभिभूत करने वाली

भारत की नाथ पंथ की परम्परा देश की आध्यात्मिक विधा को आगे बढ़ाने वाली एक विशिष्ट साधना पद्धति

बाबा गम्भीर नाथ आध्यात्मिकता की चरम अवस्था पर पहुंचे, परन्तु उन्होंने इसका कभी प्रदर्शन नहीं किया

बाबा गम्भीर नाथ ने अनेक बार भौतिक सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए लोककल्याण का मार्ग प्रशस्त किया

योग की कोई भी विधा जैसे हठयोग, लययोग, राजयोग या मंत्रयोग सभी के लिए बाबा गम्भीर नाथ ने अपना बहुत बड़ा योगदान दिया

सभी सिद्ध एवं नाथ परम्परा के ग्रन्थों को अकादमिक विषयों का अंग अवश्य बनाना चाहिए, इन्साइक्लोपीडिया ऑफ नाथ पंथ सहित सभी कार्यक्रमों को आगे बढ़ाना चाहिए

लखनऊ : 25 मार्च, 2025

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने आज दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर में ‘भारतीय योग परम्परा में योगिराज बाबा गम्भीरनाथ का अवदान’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी को सम्बोधित किया। इस अवसर पर उन्होंने ‘अप्राप्य आयाम’ एवं ‘एथिक्स इण्टीग्रिटी एवं एप्टीट्यूड’ पुस्तकों का विमोचन किया। उन्होंने नाथ सम्प्रदाय के 20 गुरुओं के तैल चित्र प्रदर्शनी का अवलोकन भी किया।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि यह भारत की एक विशिष्ट विधा पर आधारित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी है। दुनिया में लगभग 200 देश हैं। उन सभी की अपनी अपनी पहचान, परम्पराएं और विशेषता है। अनेक देशों की उपासना विधियां लगभग समान है, लेकिन इसके बावजूद उनमें मतभिन्नता भी है। इसी तरह दुनिया के प्रभावशाली देशों की भी अपनी विशिष्ट पहचान है। किसी ने व्यापार में पारंगतता हासिल की है, किसी ने दुनिया में अपनी कला के माध्यम से पहचान बनाई है, किसी ने अपने नवाचारों के माध्यम से दुनिया में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की है और किसी ने अपनी विरासत के संरक्षण के माध्यम से दुनिया में अपनी पहचान बनाई है। यह सभी भौतिक जगत के आयाम है, लेकिन भौतिक जगत की अपनी एक सीमा होती है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है, जिसने इन भौतिक सीमाओं का अतिक्रमण करके, चेतना के उच्च आयाम तक पहुंचकर, न केवल इस भौतिक जगत के, बल्कि ब्रह्माण्ड के रहस्यों को भी उद्घाटित किया है। भारत की दुनिया में पहचान अपनी इसी विशिष्टता के कारण है। भारतीय मनीषा ने कहा है कि ‘एकम सत् विप्रा बहुधा वदन्ति। अर्थात सत्य एक है, विद्वानजन अलग-अलग मार्गों से उस सत्य की विवेचना करते हैं। रास्ते भले ही अलग हैं, लेकिन मंजिल एक है। उस मंजिल को ही सभी ने सत्य के रूप में परिभाषित किया है। किसी ने यह नहीं कहा है कि जो वह कह रहे हैं, वही सच है। आप भी सही हैं। हमारे मार्ग भले ही अलग-अलग हैं, लेकिन हमारी मंजिल एक ही है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि पूरी दुनिया ने हमारी इस विचारधारा को सम्मान दिया है, लेकिन हमारे अपने लोगों ने ही इसका विरोध किया है। हमारे ऋषियों ने कहा था कि मानो तो गंगा माँ हैं, न मानों तो बहता पानी। जब हमने अपनी परम्पराओं को महत्व दिया और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने गंगा जी की आरती कर जल का आचमन किया, तो पूरी दुनिया प्रयागराज महाकुम्भ-2025 में आने के लिए लालायित हो गई। 66 करोड़ श्रद्धालुओं ने मां गंगा में स्नान भी किया और आचमन भी किया। यही भारत के अध्यात्म की ताकत है। यह भौतिक जगत के बंधनों से बंधी नहीं है। भारत की ऋषि परम्परा ने अपनी चेतना के माध्यम से उसे विस्तार दिया है। यही भारत की सही पहचान भी है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि यह कहना कि भारत ने टेक्नोलॉजी पर ध्यान नहीं दिया, यह स्वयं के आकलन में की जाने वाली कमी है। जब दुनिया अंधकार में थी, तब 5000 वर्ष पूर्व हमारे ऋषि भारत के ज्ञान को संहिताबद्ध कर रहे थे। हम भगवान वेदव्यास का स्मरण करते हैं। प्रतिवर्ष गुरु पूर्णिमा का भव्य आयोजन करते हैं। हमनें कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास को गुरुओं का भी गुरु बनाया है, क्योंकि उन्होंने अपनी विशिष्ट विधा के माध्यम से भारत की ज्ञान परम्परा को लिपिबद्ध करके आने वाली पीढ़ी के लिए विस्तृत रूप में प्रस्तुत किया है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि महाभारत में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों से जुड़ी प्रत्येक बात मौजूद है। इस भौतिक जगत के साथ ही, यदि आपको ब्रह्माण्ड के रहस्य के बारे में जानकारी लेनी है, तो भारत के उपनिषद इसका सबसे बड़ा भण्डार है। जब हमने अपनी परम्पराओं से स्वयं को दूर कर लिया, तो इसका परिणाम हुआ कि जो दुनिया पहले हमारे पीछे भागती थी, अब हम उस दुनिया के पीछे भागने लग गए।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि आपने विगत 10 वर्षां में बदलते हुए भारत को देखा है। पहले भारत के लोगों को दुनिया में कोई नहीं पूछता था। हमारे सामने पहचान का संकट था। आज सभी भारत आना चाहते हैं और भारत से अपना सम्बन्ध अच्छा करना चाहते हैं। हम सभी भारत पर गौरव की अनुभूति करते हैं। भारत की योग परम्परा को आज दुनिया के 193 देशों ने अपनाया है। चीन जैसा नास्तिक देश भी अपने यहां योग के विशिष्ट आयोजन कर रहा है। जिस चीन का धर्म पर विश्वास नहीं है, जिसने धर्म की तुलना अफीम से की है, वह भी बौद्ध दर्शन पर शोध कर रहा है। यह भारत की विजय ही तो है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि हमारे यहां किसी भी कालखण्ड में किसी भी राजा ने जबरन किसी को गुलाम नहीं बनाया, दूसरों पर जबरन शासन नहीं किया। भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त की। लक्ष्मण जी को लंका के वैभव पर मोह हुआ, तो भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण जी को समझाया कि हमें सीता जी को मुक्त करना था, वह कार्य सम्पन्न हो गया है, अब हमें यहां से वापस चलना चाहिए। भगवान श्रीराम ने कहा कि ‘अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते, जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’। यही भारत की पहचान है। भगवान श्रीराम की सहायता से सुग्रीव विजयी हुए थे, लेकिन भगवान श्रीराम ने किष्किंधा पर सुग्रीव का अभिषेक किया। भगवान श्रीराम ने लंका जीती, लेकिन उन्होंने विभीषण का अभिषेक किया, स्वयं लंका के राजा नहीं बने, अयोध्या वापस आए।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि अयोध्या आने के पहले भगवान श्रीराम ने प्रयागराज में रुककर, हनुमान जी को छद्म भेष में यह देखने के लिए भेजा कि कहीं भरत के मन में सत्ता का मोह तो नहीं आ गया है। अगर भरत शासन करना चाहते हैं, तो उन्हें शासन करने दें और हम लोग कहीं अन्यत्र चले जाएं। लेकिन भरत जी का कहना था कि अगर श्रीराम निश्चित तिथि तक अयोध्या वापस नहीं आएंगे, तो वह आत्मदाह कर लेंगे। तब हनुमान जी ने भरत जी को अपना सही स्वरूप दिखाया और कहा कि भगवान श्रीराम प्रयागराज में आ चुके हैं और शीघ्र ही अयोध्या आने वाले हैं।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि यही भारत की पहचान है, जिसने अपनी भौतिक सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए, चेतना के विस्तृत आयाम के माध्यम से, ब्रह्माण्ड के रहस्यों को सबके सामने प्रस्तुत करने का कार्य किया है। यह भारत की ऋषि परम्परा का विशिष्ट योगदान है। भारत की सिद्ध साधना ने इसी परम्परा को आगे बढ़ाने का कार्य किया है। ऋषि-मुनियों की इसी परम्परा पर आज की यह राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि भौतिकता के पीछे भागने वाले वर्तमान समाज के लिए यह विषय रुचि का नहीं हो सकता है। लेकिन एक सच्चे भारतीय के लिए यह एक रुचि का विषय होना चाहिए, क्योंकि यह हमसे और हमारी विरासत तथा परम्परा से जुड़ा विषय है। इसी के बारे में प्रधानमंत्री जी का कहना है कि विरासत को विकास से जोड़कर ही सतत् विकास का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि उन्होंने महाकुम्भ प्रयागराज-2025 की तैयारियों के विषय में  पहली बैठक नवम्बर, 2022 में ली थी। हमें महाकुम्भ के विस्तार का पहले से ही अंदाजा था। इसी के अनुरूप हमने अपनी तैयारियां प्रारम्भ की। तब कुछ लोगों ने कहा कि यह सरकारी धन का अपव्यय किया जा रहा है। हम प्रयागराज आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सुविधा देना चाहते थे, तो इसमें भी ऐसे लोगों को बुराई नजर आती थी। ऐसे लोगों ने महाकुम्भ के आयोजन की आलोचना करना प्रारम्भ किया। लेकिन यह आलोचना तथ्यात्मक नहीं थी। हमने आलोचनाओं की परवाह किये बगैर अपने कार्य को आगे बढ़ाया। हमें यह अनुमान था कि 7,000 करोड़ रुपये खर्च करते हुए प्रयागराज और अस्थाई शहर का व्यवस्थित विकास करना होगा। महाकुम्भ के कारण पूरे प्रयागराज शहर का कायाकल्प हुआ है। महाकुम्भ के लिए रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन तथा एयरपोर्ट के नये कार्य किये गये। अयोध्या, गोरखपुर, काशी, लखनऊ, चित्रकूट तथा रीवा से प्रयागराज आने वाले सभी मार्गों का चौड़ीकरण, जगह-जगह पार्किंग और जन सुविधाओं की व्यवस्था एक समय सीमा के अन्दर पूरी की गई।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि यह 7,000 करोड़ रुपये उत्तर प्रदेश की जनता की गाढ़ी कमाई का धन था। इसके बदले में उत्तर प्रदेश को 03 लाख करोड़ रुपये रिटर्न के रूप में वापस मिले हैं। आस्था भी आर्थिकी का आधार बन सकती है, पहले लोगों ने इसकी ताकत को नहीं समझा था। यदि पहले की सरकारों ने इस बात को समझा होता, तो उत्तर प्रदेश, पहचान के संकट से नहीं गुजरता। हम अपने लक्ष्य में सफल रहे। महाकुम्भ प्रयागराज-2025 का आयोजन भव्य व दिव्य रूप से सम्पन्न हुआ। महाकुम्भ के लिए प्रधानमंत्री जी द्वारा दिया गया विजन पूर्ण हुआ। पूरी दुनिया भारत के इस आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आयोजन को देखकर अभिभूत और अचम्भित थी। एक अस्थाई शहर में 45 दिनों में 66 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं का आगमन, उन लोगों के लिए अकल्पनीय था, जो वहां नहीं आए, लेकिन जो महाकुम्भ में आए, उनके लिए यह स्थिति अभिभूत करने वाली भी थी।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि भारत की नाथ पंथ की परम्परा देश की आध्यात्मिक विधा को आगे बढ़ाने वाली एक विशिष्ट साधना पद्धति है। यह परम्परा भगवान शिव से आगे बढ़ती है। योगीराज मत्स्येंद्र नाथ से आगे बढ़कर महायोगी गोरखनाथ ने इस परम्परा को व्यवस्थित स्वरूप दिया। यह कहा जाता है कि महायोगी गोरखनाथ भगवान शिव का ही एक स्वरूप है। किसी भी जाति, क्षेत्र, उम्र तथा लिंग के व्यक्तियों के लिए उस प्रकार की साधना पद्धति महायोगी गोरखनाथ ने दी। उत्तर में तिब्बत से लेकर सुदूर दक्षिण में श्रीलंका तक और पूर्व में बांग्लादेश व इण्डोनेशिया से लेकर पश्चिम में अफगानिस्तान तक भारत की तीन आध्यात्मिक साधनाओं के चिन्ह दिखाई देते हैं। इनमें बौद्ध परम्परा, आदि शंकराचार्य की परम्परा और महायोगी गुरु गोरखनाथ की परम्परा शामिल हैं।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि तिब्बत की पूरी परम्परा महायोगी गुरु गोरखनाथ द्वारा प्रस्तुत नवनाथ और 84 सिद्धों से जुड़ी हुई है। देश में भी अलग-अलग स्थान पर इनसे जुड़े हुए मंदिर, मठ, खोह, गुफा, धूना आदि आज भी देखने को मिलते हैं। अलग-अलग कालखण्डों में उनकी विद्यमानता रही है। एक लम्बे समय तक महायोगी गुरु गोरखनाथ ने गोरखपुर को अपनी साधना स्थली के रूप में उपकृत किया था। उन्हीं की साधना भूमि होने के कारण इस शहर का नाम गोरखपुर पड़ा।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि इसी परम्परा में अनेक सिद्ध और योगियों ने अलग-अलग कालखण्ड में गोरखपुर और देश के अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी साधना व तपस्या से आम जनमानस को उपकृत किया है। योगिराज बाबा गम्भीर नाथ जी ने भी गोरखपुर को एक लम्बे समय तक अपनी साधना का केन्द्र बनाया था। यह मान्यता है कि वर्ष 1870 के दशक में उनका गोरखपुर में आगमन हुआ था। तत्कालीन गोरक्ष पीठाधीश्वर योगीराज बाबा गोपाल नाथ जी से उन्होंने योग दीक्षा ली थी। कुछ समय तक वह गोरखनाथ मंदिर में रहकर सेवा कार्यों से जुड़े। पहली सेवा मठ के साथ जुड़ना होता है, जिससे कोई व्यक्ति किसी भी अहंकार में न रहे। इस सेवा के उपरान्त योगिराज बाबा गम्भीर नाथ जी ने द्वितीय चरण की सेवा के लिए अलग-अलग स्थानों पर प्रस्थान किया।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि योगिराज बाबा गम्भीर नाथ जी कुछ वर्षों तक काशी में रुके, फिर प्रयागराज गए। इसके बाद मां नर्मदा की पवित्र परिक्रमा में 04 वर्ष समर्पित किए। कहा जाता है कि नर्मदा नदी एक कुंवारी नदी है, उनकी देवी के रूप में परिक्रमा की जाती है। यह नदी अमरकंटक से निकलकर खंभात की खाड़ी तक पहुंचती है। दुनिया को यदि नदी परम्परा के प्रति सम्मान देखना है, तो उन्हें भारत आना चाहिए। नर्मदा की परिक्रमा बहुत ही पवित्र मानी जाती है। वर्ष भर बहुत से साधु-संत एवं गृहस्थ नर्मदा जी की परिक्रमा करते हैं। नर्मदा के समीप बहुत से सिद्ध संत, मुनि व ऋषि कुटिया में रहकर साधना में लीन भी रहते हैं।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि नर्मदा जी की परिक्रमा के उपरान्त बाबा गम्भीर नाथ गोरखपुर वापस आए। यहां से वह ‘गया’ गए। वहां उन्होंने लम्बे समय तक साधना की। इसके उपरान्त वह पुनः गोरखपुर आए और यहां रुक कर गोरखपुर की व्यवस्थाओं को ठीक करने में अपना योगदान दिया। इसके बाद वह फिर ‘गया’ गए। वर्ष 1906 से लेकर 1917 तक 11 वर्षों तक गोरखपुर में रहे और अपनी अन्तिम यात्रा उन्होंने गोरखपुर में ही तिरोहित की।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि महाराणा प्रताप कॉलेज के पहले प्रधानाचार्य श्री अक्षय कुमार बनर्जी थे। श्री बनर्जी कोलकाता विश्वविद्यालय में फिलॉसफी के हेड थे। वह योगिराज बाबा गम्भीर नाथ के शिष्य बन गए थे और उन्हीं के साथ गोरखपुर गए थे। श्री बनर्जी महाराणा प्रताप कॉलेज के प्रधानाचार्य बने और यही महाराणा प्रताप कॉलेज गोरखपुर विश्वविद्यालय की आधारशिला बना। कोलकाता विश्वविद्यालय के ही फिलॉसफी के एक और प्रोफेसर बाबा गम्भीर नाथ के शिष्य बने। यह योगी शान्तिनाथ के रूप में प्रसिद्ध हुए। योगी शान्तिनाथ जी ही महंत अवैद्यनाथ जी को गोरखपुर लेकर आए थे।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि योगी निवृत्ति नाथ भी बाबा गम्भीर नाथ जी के शिष्य थे। गोरखपुर विश्वविद्यालय के निर्माण में अपना योगदान देने वाले तत्कालीन गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत दिग्विजय नाथ जी महाराज को योगिराज बाबा गम्भीर नाथ जी ने गोरखनाथ मंदिर का दायित्व दिया था। भारत सेवाश्रम संघ के संस्थापक स्वामी प्रणवानंद जी ने सन 1912 में मात्र 12 से 13 वर्ष की उम्र में बाबा गम्भीर नाथ से दीक्षा ली थी। वह अपने समय के बहुत प्रख्यात संत थे। भारत सेवाश्रम संघ एक आध्यात्मिक संगठन है। इसने राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने में बड़ी भूमिका का निर्वहन भी किया है। देशभर में और दुनिया के अनेक देशों में भारत सेवाश्रम संघ ने अभिनंदनीय कार्य किया है। संगठन अपने राष्ट्रीय मूल्यों से कभी विचलित नहीं हुआ। स्वामी प्रणवानंद जी बाबा गम्भीर नाथ के ही शिष्य थे।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि बाबा गम्भीर नाथ की अनेक चमत्कृत घटनाओं का अवलोकन स्वामी प्रणवानंद जी के ‘बाबा योगिराज गम्भीर नाथ ग्रंथ से कर सकते हैं। बाबा गम्भीर नाथ आध्यात्मिकता की चरम अवस्था पर पहुंचे, परन्तु उन्होंने इसका कभी प्रदर्शन नहीं किया। कभी किसी असहाय की मदद के लिए उन्होंने चमत्कार करने में कोई कोताही भी नहीं की। बाबा गम्भीर नाथ ने अनेक बार भौतिक सीमाओं अर्थात विज्ञान की सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए लोककल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने गोरखनाथ मंदिर में ही वर्ष 1917 में समाधि ली थी। बाबा गम्भीर नाथ की समाधि लेने के 108 वर्षां के पश्चात आज भी मंदिर में कोई कार्यक्रम होने पर उनके शिष्य देश के विभिन्न स्थानों से यहां आते हैं।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि आज विश्वविद्यालय प्रांगण में बाबा योगिराज गम्भीर नाथ के अवदान विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया है। यह अत्यन्त प्रासंगिक विषय है। इस संगोष्ठी का पूर्ण आधार भारत की सिद्ध साधना होनी चाहिए। योग की कोई भी विधा जैसे हठयोग, लययोग, राजयोग या मंत्रयोग सभी के लिए बाबा गम्भीर नाथ ने अपना बहुत बड़ा योगदान दिया था। साधना के माध्यम से किसी साधक को सत्य तक पहुंचाने का कार्य योगीराज गम्भीर नाथ ने किया था। यह सारी बातें अकादमिक चर्चा का विषय बननी चाहिए। मुख्यमंत्री जी ने कहा कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में उपस्थित सिद्धों का कभी ना कभी गोरखपुर से सम्बन्ध अवश्य रहा है। संत ज्ञानेश्वर ने अपने ज्ञानेश्वरी ग्रंथ को नाथ सम्प्रदाय के संत निवृत्ति नाथ की प्रेरणा से लिखा था। महाराष्ट्र की परम्परा में ज्ञानेश्वरी का वही महत्व है, जो उत्तर भारत में सुन्दरकाण्ड का है। इन सभी सिद्ध एवं नाथ परम्परा के ग्रन्थों को अकादमिक विषयों का अंग अवश्य बनाना चाहिए। योगीराज बाबा गम्भीर नाथ की पूरी साधना और जीवन गोरखपुर के लिए समर्पित था। गोरखपुर से उनका अनोखा सम्बन्ध था। यहां स्थित उनकी समाधि आज भी हम सबको आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत करती है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि यह गोष्ठी बहुत महत्वपूर्ण है। इसके माध्यम से हम भावी पीढ़ी को अपनी विरासत से अवगत करा सकेंगे। आज अध्ययन-अध्यापन में बहुत सी चुनौतियां हैं। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें अपने आध्यात्मिक ग्रन्थों का अवलोकन करना चाहिए और उनसे शिक्षाएं लेनी चाहिए। विश्वविद्यालय में बाबा गम्भीर नाथ चेयर सिद्ध साधना से जुड़ी विशिष्ट ज्ञान पद्धति एवं साधना पद्धति को देश एवं दुनिया से एकत्र करें, जिससे भावी पीढ़ी को इसे विरासत में सौंपा जा सके। इससे आने वाले समय में उनका मार्गदर्शन होगा।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि विश्वविद्यालय में महायोगी गोरखनाथ शोधपीठ भी है। शोध पीठ को भी इन्साइक्लोपीडिया ऑफ नाथ पंथ सहित सभी कार्यक्रमों को आगे बढ़ाना चाहिए। इसके लिए हमें दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जाकर उन बिखरे हुए ग्रन्थों को एकत्र करना होगा और उन पर शोध करना होगा। महाराष्ट्र के सुदूर क्षेत्रों में आज भी सिद्ध परम्परा के अनेक अवशेष मौजूद हैं। हमें इन सभी तत्वों को एकत्र करना होगा और उसे संहिताबद्ध करना होगा। आज सभी साधन उपलब्ध हैं। इसको डिजिटल रूप में प्रस्तुत कर हम भावी पीढ़ी को प्रदान कर सकते हैं। आने वाले समय में यह हमारी एक धरोहर होगी, जिसके लिए आने वाली पीढ़ी हमारे प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करेगी।
कार्यक्रम को विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर पूनम टण्डन ने भी सम्बोधित किया। संगोष्ठी में गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
-------


Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने