बलरामपुर नगर अतिक्रमण से कराह रहा है आम आदमी सड़क पर चलने के बावजूद सड़क ढूंढ रहा है क्योंकि पटरियों पर ही दुकानदारों ने अपनी दुकानें लगा रखी है और ये बकायदा किराया भी दे रहे है अब आप सोच रहे है कि किसको किराया दे रहे है अरे जनाब किसी सरकारी संस्थान को नहीं क्योंकि उसके लिए ये गरीब बन जाते है ।सूत्र बताते है ये प्रतिदिन दुकान लगाने का 80 से 100रुपए जिस दुकानदार के सामने लगाते है उसको खुशी खुशी देते है।ये प्रक्रिया देखनी है तो आप बलरामपुर नगर के मुख्यालय पर वीर विनय चौक से सब्जी मंडी पर देख सकते है।लोकप्रिय चेयरमैन धीरू सिंह पूरी ताकत के साथ नगरपालिका की आय किसी तरह बढ़ जाए का सफल प्रयास कर रहे है पर जो नगर पालिका के पास उपलब्ध अधिकारी है वो बेचारे नगर भ्रमण करना ही नहीं चाहते और न ही चेयरमैन के सम्मुख अतिक्रमण हटाने का कोई ब्लू प्रिंट पेश कर पाते है।बहुत हो हल्ला हुआ तो मंगलवार को अतिक्रमण हटाने का ढिंढोरा पीट कर चले जाते  है जबकि बलरामपुर में बाजारों की साप्ताहिक बंदी मंगलवार होती है।और अतिक्रमण का सबसे बड़ा प्रभाव दोपहर 3बजे से रात्रि आठ बजे तक है।वैसे भी इतने लोकप्रिय चेयरमैन और सदर विधायक के होने के बावजूद अधिकारी अतिक्रमण हटाने का सही ब्ल्यूप्रिंट पेश कर कार्यवाही शुरू करे तो इन्हें चेयरमैन और सदर विधायक और जनता का भी सहयोग मिल सकता है।पर ऑफिस में बैठकर तनख्वाह लेने में जो सुख है उसको अतिक्रमण जैसे माथापच्ची कार्यों को करने में कौन सर खपाए।आय बढ़ाने का आलम ये है कि पूर्व चेयरमैन के समय पेपर में विज्ञापन द्वारा नगरपालिका के कार्यों का बखान किया जाता था वर्तमान में चेयरमैन ने उस पर भी सख्ती से रोक लगा कर यानी खर्चे कम कर आय बढ़ाने का फार्मूला दिया पर अधिकारियों को बाजार  में जाकर अतिक्रमण,पालीथीन रोक,पर कार्यवाही के लिए कार्यालय से निकालने में सफल प्रतीत होते नहीं दिखाई पड़ रहे है।छोटी काशी से गली गली में मीट बेचने वाले नगर के रूप अपनी पहचान बना चुके इस नगर के निवासीयो ने इसी को अपना हाल मानकर चुप रहना सीख लिया है क्या?

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