उतरौला बलरामपुर उतरौला नगर सहित आस पास के ग्रामीण अंचलों में छठ पूजा की तैयारियाँ जोरों पर चल रहा हैं। श्रद्धालु पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ इस चार दिवसीय पर्व को मनाने की तैयारी में जुटे हुए हैं। छठ पूजा सूर्य देव की आराधना का पर्व है,जो शुद्धता,पवित्रता और भक्ति का प्रतीक है। यह पर्व जीवन के सबसे महत्व पूर्ण प्राकृतिक तत्वों में से एक सूर्य को समर्पित करता है, जिसे ऊर्जा और प्रकाश का स्रोत माना जाता है। इस महा पर्व के दौरान भक्तगण सूर्य देव से अपने परिवार की समृद्धि, स्वास्थ्य और खुश हाली की कामना करते हैं। विशेष कर पूर्वांचल और बिहार में इसका आयोजन बड़े ही पैमाने पर किया जाता है, और अब देश के विभिन्न हिस्सों में भी यह त्योहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
*छठ पूजा के चार दिवसीय अनुष्ठान*
*1. नहाय-खाय (05 नवम्बर 2024)*
पहले दिन,जिसे नहाय-खाय के नाम से जाना जाता है,श्रद्धालु पवित्रता और स्वच्छता के साथ छठ पूजा की शुरुआत करते हैं। इस दिन भक्त अपने घर और वातावरण को भी साफ करते हैं, और स्वयं को पवित्र कर पर्व की शुद्ध शुरुआत करते हैं। नहाय-खाय में पवित्र गंगा या किसी नदी के जल का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन विशेष रूप से लौकी और चने की दाल का सेवन किया जाता है, जो पवित्र और सात्विक भोजन का प्रतीक होता है। इस भोजन के माध्यम से शुद्धता का संदेश भी दिया जाता है। *2. खरना (06 नवम्बर 2024)*
दूसरे दिन,जिसे खरना कहा जाता है,श्रद्धालु पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम के समय पूजा-अर्चना के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं। खरना में विशेष भोग के रूप में गुड़ की खीर और गेहूँ की रोटी का प्रसाद तैयार किया जाता है,जिसे पूर्ण पवित्रता और स्वच्छता के साथ बनाना आव श्यक होता है। खरना का प्रसाद ही भक्तों का एक मात्र भोजन होता है और इसे ग्रहण करने के बाद अगले 36 घंटे तक निर्जला व्रत का संकल्प लिया जाता है। यह उपवास भक्तों की दृढ़ता और अनुशासन का प्रतीक माना जाता है। *3. संध्या अर्घ्य (07 नवंबर 2024)*
तीसरे दिन को संध्या अर्घ्य कहा जाता है, जिसमें भक्त गण सूर्यास्त के समय डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तालाब, नदियों या किसी अन्य जलाशय के किनारे एकत्रित होते हैं। इस अनुष्ठान में महिलाएं विशेष रूप से भी शामिल होती हैं, और पानी में खड़े होकर बांस की टोकरियों में फल, ठेकुआ,और अन्य पारम्परिक प्रसाद अर्पित करती हैं। संध्या अर्घ्य के समय का वातावरण अत्यंत आध्यात्मिक और भक्ति मय होता है,और चारों ओर छठ के गीतों की गूंज भक्तों की आस्था को और गहरा कर देती है। *4. सूर्योदय अर्घ्य (08 नवम्बर 2024)*
अन्तिम दिन,सूर्योदय अर्घ्य के साथ इस पर्व का समापन होता है। इस दिन भक्त उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं, जो इस त्योहार का सबसे बड़ा महत्व पूर्ण अनुष्ठान है। उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद भक्त अपनी प्रतिज्ञा पूरी मानते हैं और सुख- समृद्धि की कामना भी करते हैं। सूर्योदय के समय का यह अनुष्ठान समर्पण और कृतज्ञता का प्रतीक है, जहां भक्त अपनी मनोकामना ओं की पूर्ति के लिए आभार व्यक्त करते हैं।
छठ पूजा का यह चार दिवसीय अनुष्ठान न केवल आस्था का पर्व है बल्कि जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टि कोण, प्रकृति के प्रति सम्मान, और पारिवारिक मूल्यों की प्रेरणा भी प्रदान करता है। उतरौला में इस पावन पर्व के अवसर पर हर वर्ष भक्त गण अपने घरों,घाटों, और मन्दिरों में इस महा पर्व का आयोजन करते हैं,जिससे क्षेत्र में भक्ति और उल्लास कामाहौल छा जाता है।
हिन्दी संवाद न्यूज से
असगर अली की रिपोर्ट
उतरौला बलरामपुर।
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