*राजेंद्र शर्मा के तीन लघु व्यंग्य*
*1. ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे*
आखिरकार, डोनाल्ड ट्रंप जी की व्हाइट हाउस में वापसी हो गयी। क्यों न होती। आखिरकार, मोदी जी के दोस्त हैं और वह भी पक्के वाले। उनकी भी घर वापसी नहीं होती, तो किस की होती? उनका बस चलता, तो उन्होंने तो पिछली बार ही घर वापसी कर ली होती, चार साल पहले। तब तो मोदी जी ने भी उनकी घर वापसी के लिए पूरा जोर लगाया था ; वहां टिके भारतीयों से 'अब की बार ट्रंप सरकार' का नारा तक लगवाया था। दुर्भाग्य से, चुनाव के नतीजे के बाद ट्रंप साहब की घर वापसी, जोर-जबर्दस्ती की घर वापसी मानी गयी। कैपीटल हिल पर चढ़ाई करने के लिए उनके भक्त तो अब तक केस भुगत रहे हैं और खुद ट्रंप साहब को भी घर वापसी के लिए चार साल इंतजार करना पड़ा। खैर! ट्रंप जी आखिरकार घर वापसी कर के माने। घर वापसी के मोदी जी के नारे को सच जो करना था। दोस्ती हो तो ऐसी!
पर विरोधी इस दोस्ताने को भी बुरी नजर लगाने की कोशिश कर रहे हैं। और कुछ नहीं मिला, तो ट्रंप जी का दोस्ती का टांका कहीं और जुड़वाने पर उतर आए हैं। कह रहे हैं कि चार साल तो मोदी जी ने डियर फ्रैंड डोनाल्ड की कोई खास खबर-सुध नहीं ली। उल्टे बाइडेन को डियर फ्रैंड कहकर बुलाना शुरू कर दिया था। और इस बार चुनाव में भी अब की बार ट्रंप सरकार का नारा लगवाना तो दूर रहा, चुनाव के टैप पर अमरीका जाकर भी, फ्रैंड डोनाल्ड से मुलाकात तक नहीं की ; बचकर निकल आए। यहां-वहां अपने भक्तों से डोनाल्ड की जीत के लिए यज्ञ वगैरह करा दिए, बस। ट्रंप ने भी ठान लिया कि मोदी से भी पक्का दोस्त बनाकर दिखाऊंगा। ट्विटर वाले एलन मस्क से दोस्ती, अब ट्रंप जी नहीं छोड़ेंगे। मस्क की दोस्ती वैसे भी टू इन वन है, दोस्ती की दोस्ती और चंदे का चंदा!
लेकिन, ये सब दुश्मनों की फैलायी अफवाहें हैं। दुनिया देखेगी कि जय और वीरू की ये जोड़ी, कुर्सी कायम रहने तक कायम रहेगी। मस्क की दोस्ती, मोदी जी की दोस्ती जगह नहीं ले सकती है। फिर अगर ट्रंप के पास मस्क की यारी है, तो अपने मोदी जी को भी अडानी से दोस्ती प्यारी है। ज्यादा ही हुआ, तो दोस्ती में हम दो हमारे दो मान लेंगे। पर ट्रंप जी और मोदी जी, ये दोस्ती नहीं छोड़ेंगे।
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*2. समय बड़ा बलवान*
लगता है कि मोदी एंड कंपनी के दिन ही खराब चल रहे हैं। बताइए, इतनी बड़ी कंपनी के इतने बड़े प्रोपराइटर, यानी खुद मोदी जी ने, दुश्मन पार्टी के अध्यक्ष, खडगे को जरा सा लताड़ते हुए एक ट्वीट क्या कर दिया, विरोधी लट्ठ लेकर मोदी जी के पीछे ही पड़ गए। और यह सब तो तब है, जबकि बेचारे मोदी जी ने कुछ गलत भी नहीं कहा था। उल्टे खुद खडगे ने कर्नाटक में अपनी पार्टी के नेताओं को नसीहत दी थी कि चुनाव में पब्लिक से कोई ऐसा वादा नहीं करना चाहिए, जिसे बाद में पूरा करने में सरकार को तकलीफ हो। मोदी जी ने बस उसी नसीहत को उनकी ही पार्टी और सरकार के खिलाफ उल्टा कर दिया था -- दुश्मनों का धोखा बेनकाब हो गया -- पब्लिक से न जाने क्या-क्या वादे किए हैं, पूरे कर ही नहीं सकते हैं। पर बेचारे मोदी जी का इतना कहना था कि दुश्मनों ने खुद मोदी जी के और उनकी पार्टी के ऐसे वादों का अंबार लगा दिया, जो पूरे नहीं हुए। अब दुष्ट एक-एक कर मोदी जी पर ही उनके वादों के तीर चला रहे हैं और क्या हुआ फलां वादा और फलां वादा और फलां वादा, के ताने बरसा रहे हैं। सुना है कि मोदी जी तो सोच रहे थे कि इतनी छीछालेदर से तो अपना ट्वीट ही वापस ले लें। पर दुश्मनों को इसकी खबर लग गयी और दुश्मनों ने इस पर भी यह कहकर हंगामा खड़ा कर दिया कि मोदी जी तो विश्व गुरु बन गए -- प्रधानमंत्री के पद पर रहकर ट्वीट वापस लेने में।
और जब मोटा भाई तक के दिन खराब चल रहे हों, तो छोटा भाई के दिनों का तो खैर कहना ही क्या? कनाडा वाले मामले में बात मर्डर के आरोप तक पहुंच गयी है। मर्डर भी विदेशी धरती पर। कनाडा सरकार के मंत्री ने बकायदा छोटा भाई का नाम ले दिया है, मर्डर का आर्डर देने के लिए। उस पर तुर्रा यह कि यह सिर्फ अकेले निज्जर के मर्डर के मामला नहीं है। विदेशी धरती पर कई-कई मर्डरों का मामला है। हद्द तो यह है कि अमरीका वालेे भी तोता चश्म हो गए, मोटा भाई की दोस्ती का भी ख्याल नहीं किया। कह रहे हैं कि छोटा भाई के खिलाफ कनाडा के मंत्री के आरोपों पर गौर कर रहे हैं। इनके गौर करने के चक्कर में किसी दिन छोटा भाई की जान ही आफत में न आ जाए। अभी तक बस इतनी गनीमत है कि पन्नू वाले मामले में अमरीका वालों ने छोटा भाई तो छोटा भाई, मोदी जी के जेम्स बांड तक का नाम नहीं लिया है। सिर्फ किसी यादव के लपेटने पर मामला रुका हुआ है और मोदी जी ने भी यादव को बलि का बकरा बना दिया है कि चाहिए, तो इसे ले जाओ। मगर अमरीकियों क्या भरोसा, किसी भी दिन मामला आगे बढ़ा दें? बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी!
जब मोटा भाई और छोटा भाई के दिन खराब चल रहे हैं, तो उनकी पार्टी के दिन अच्छे कैसे चल सकते हैं। बेचारों की पार्टी की जान सांसत में आयी हुई है और वह भी उस मुए केरल में, जहां वैसे भी उनके खास नाम लेवा और पानी देवा नहीं हैं। पहली सांसत, बेचारों को अपना पैसा हवाला के रास्ते से केरल भेजना पड़ा। सांसत में सांसत यह कि कुछ करोड़ रुपया रास्ते में लुट गया। चोर की मां की गति हो गयी, रोये भी तो रुलाई दबा के। न शिकायत करते बने, न चोरी का शोर मचाते। अब आफत ये कि अपने ही एक बंदे ने पोल खोल दी कि चोरी गया करोड़ों रुपया तो चुनाव के लिए आया था, चोरी छुपे। चोरी में चोरी हो गयी। अब शोर मच रहा है कि साठ करोड़ रूपये आए थे, चोरी हुए सो हुए, बाकी कैसे-कैसे बंटे। सुना है, मामला दोबारा खुलेगा। समय बड़ा बलवान -- कुत्ता मूते कान!
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*3. हिंदू बम*
भागवत जी गलत नहीं कहते हैं, ये तो हिंदुओं के साथ सरासर अन्याय है। और वह भी उनके अपने देश में। बताइए, दीवाली पर पटाखे नहीं चला सकते। देश हिंदुओं का। दीवाली हिंदुओं की। पटाखे भी हिंदू चलाते तो अपनी जेब से खरीदकर ही चलाते यानी पटाखे भी हिंदुओं के। पर पटाखे चला नहीं सकते। दिल्ली की हिंदू-विरोधी सरकार ने पटाखे चलाने पर रोक लगा दी है। बेशक, रोक हिंदुओं के अलावा बाकी सब के पटाखे चलाने पर भी है। पर हिंदुओं की दीवाली पर, दूसरे क्यों पटाखे चलाने लगे? यानी पाबंदी तो हिंदुओं के पटाखे चलाने पर ही हुई। हुआ न अन्याय!
और ये जो प्रदूषण वगैरह की बातें हैं, ये सब हिंदू-विरोधी बहाने हैं। ये सारे साधन हैं, हिंदुओं को परेशान करने के। इन्हें तो यह चाहिए कि हिंदू अपना त्यौहार अच्छी तरह से नहीं मना सकें। वर्ना प्रदूषण का शोर हिंदुओं के इस पवित्र त्यौहार के पटाखों पर ही नहीं मचाया जाता। आखिर, प्रदूषण क्या पटाखों से ही बढ़ता है? और चीजों से भी तो प्रदूषण होता है! मोटर गाडिय़ों से क्या प्रदूषण नहीं होता है? क्या इमारतें, सड़कें वगैरह बनती हैं, उनसे प्रदूषण नहीं होता है? क्या कारखाने चलते हैं उनसे प्रदूषण नहीं होता है? और हां, क्या पराली जलती है, उससे प्रदूषण नहीं होता है? फिर इन सब पर रोक क्यों नहीं? और सबसे बढ़कर अक्टूबर-नवंबर में जो मौसम पल्टी मारता है और हवा ठंडी होने लगती है, वायु प्रदूषण तो उससे बढ़ता है। फिर मौसम की पल्टी पर रोक क्यों नहीं? दलबदल पर न सही, मौसम की पल्टी पर तो रोक लगा ही सकते हैं। पर रोक लगेगी सिर्फ हिंदुओं के पटाखों पर। यह हिंदुओं के साथ अन्याय नहीं तो और क्या है?
अब हिंदुओं को यह कहकर बहलाने की कोशिश कोई नहीं करे कि पटाखों पर रोक भी हिंदुओं के लिए है। 80 फीसद हिंदुओं के देश में वायु प्रदूषण से अगर फेफड़े फुंकेंगे, तो हिंदुओं के ही ज्यादा फुंकेेंगे। बम के धमाकों से कान फूटेंगे, तो हिंदुओं के ही ज्यादा फूटेंगे। ये सब झूठी दलीलें हैं। हिंदू फेफड़े हजारों साल से यज्ञ के धुंए से ट्रेन्ड होते आ रहे हैं और कान मंदिरों के घंटों-घंटियों, शंख वगैरह के शोर से। पटाखों के बारूद की पैदाइश चीनी-मुस्लिम हुई तो क्या हुआ, हिंदू तो प्रदूषण प्रूफ हैं। बल्कि हमारे तो पटाखे भी प्रदूषण प्रूफ हैं। चलने दो हिंदू बम!
*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और 'लोकलहर' के संपादक हैं।)*
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