Sandeep Yadav  Journalist (पत्रकार)

अंबेडकर नगर, जलालपुर।    करमैनी गांव में खड़ंजे पर अवैध दीवार निर्माण का मामला अब नए भारतीय न्याय संहिता (BNS) के संदर्भ में कानूनी कार्रवाई का सटीक उदाहरण बन चुका है। नए कानूनों और प्रावधानों के अंतर्गत, ऐसे अवैध निर्माणों पर तुरंत सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। यह मामला ग्रामीण प्रशासनिक तंत्र की लापरवाही और कानूनी अधिकारों के उल्लंघन का है, जो BNS के प्रावधानों के तहत गंभीर कानूनी अपराध की श्रेणी में आता है।

धारा 145 और सार्वजनिक मार्गों की सुरक्षा

BNS की धारा 145 विशेष रूप से सार्वजनिक मार्गों, रास्तों और सम्पत्तियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करती है। इस धारा के अंतर्गत, किसी भी प्रकार का अवरोध या अतिक्रमण करने वाले व्यक्ति या संस्था पर तुरंत कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। करमैनी खड़ंजे पर बनाई गई अवैध दीवार न केवल इस धारा का उल्लंघन करती है, बल्कि जनता के आवागमन के अधिकार का भी सीधा हनन करती है। इस अवैध दीवार को हटाने के लिए पंचायत और जिला प्रशासन को धारा 145 के तहत तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।

नागरिकों के आवागमन के मौलिक अधिकार और धारा: 101

BNS की धारा 101, जो अनुच्छेद 19(1)(d) के तहत मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करती है, हर नागरिक को स्वतंत्र रूप से घूमने और कहीं भी निवास करने का अधिकार प्रदान करती है। करमैनी में खड़ंजे पर अवैध दीवार जनता के इस अधिकार का सीधा उल्लंघन करती है। प्रशासन का कर्तव्य है कि वह इस प्रकार के अवरोधों को तुरंत हटाकर जनता के मौलिक अधिकारों की रक्षा करे।

धारा 186 और 187 के तहत जिम्मेदारियों का निर्वहन

BNS की धारा 186 और 187 के अनुसार, सरकारी अधिकारी अगर अपनी जिम्मेदारियों का सही ढंग से निर्वहन नहीं करते हैं, तो उन पर अनुशासनात्मक और कानूनी कार्रवाई हो सकती है। इस प्रकरण में, सेक्रेटरी और प्रधान की लापरवाही स्पष्ट रूप से सामने आई है, जिन्होंने अवैध दीवार के निर्माण की सूचना देने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की। इस प्रकार की लापरवाही के खिलाफ धारा 186 के तहत कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।

संविधान और न्यायपालिका का हस्तक्षेप

अगर इस मामले में प्रशासन द्वारा उचित कार्रवाई नहीं की जाती है, तो प्रभावित पक्ष उच्च न्यायालय में जनहित याचिका (PIL) दाखिल कर सकते हैं। न्यायपालिका न केवल अवैध निर्माण को हटाने का आदेश दे सकती है, बल्कि संबंधित अधिकारियों के खिलाफ धारा 354 के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई भी कर सकती है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि जनता के अधिकारों की रक्षा हो और प्रशासनिक लापरवाही के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएं।

निष्कर्ष और सिफारिशें

करमैनी खड़ंजे पर बनी अवैध दीवार ने न केवल सार्वजनिक मार्ग को बाधित किया है, बल्कि प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही भी उजागर की है। नए भारतीय न्याय संहिता के तहत, इस प्रकार के अवैध निर्माण के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। धारा 145, 101 और 186 के तहत जिला प्रशासन और पंचायत को तुरंत इस दीवार को हटाने के आदेश दिए जाने चाहिए, ताकि कानून और संविधान के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा हो सके।

अंततः, अगर इस मामले में न्याय और पारदर्शिता को बनाए रखना है, तो अविलंब न्यायिक और प्रशासनिक कार्यवाही जरूरी है, ताकि भविष्य में इस प्रकार की लापरवाही और भ्रष्टाचार न हो।
            
        
        सेक्रेटरी और प्रधान की संलिप्तता उजागर,                             प्रशासनिक कार्रवाई की मांग

करमैनी गांव में खड़ंजे पर अवैध दीवार निर्माण के प्रकरण ने न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर किया है, बल्कि सेक्रेटरी कमलेश रंजन और प्रधान की भूमिका पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस मामले में एडीओ पंचायत बृजेश तिवारी द्वारा की गई जांच ने इस अवैध निर्माण की पुष्टि की है, और उन्होंने अतिक्रमणकारी रमाकांत मौर्य समेत अन्य संबंधित व्यक्तियों को सख्त निर्देश दिए हैं कि दीवार को तुरंत हटाया जाए, अन्यथा कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

सेक्रेटरी और प्रधान की भूमिका पर सवाल:

इस प्रकरण में सेक्रेटरी कमलेश रंजन की भूमिका बेहद संदिग्ध रही है। स्थानीय निवासियों और मीडिया द्वारा बार-बार सूचना दिए जाने के बावजूद, उन्होंने दीवार के अस्तित्व को लगातार नकारा। यहां तक कि जब प्रधान ने लिखित रूप में दिया कि खड़ंजे पर अवैध दीवार है और इसे हटाया जाना चाहिए, तब भी सेक्रेटरी ने यह कहते हुए अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया कि "मेरे हिसाब से खड़ंजे पर दीवार नहीं है, और मेरे द्वारा कोई भी कार्यवाही नहीं बनती है।" सेक्रेटरी की यह प्रतिक्रिया इस बात की ओर संकेत करती है कि वह इस अवैध निर्माण के भ्रष्टाचार में सीधे तौर पर शामिल हो सकते हैं।

मीडिया और ग्रामीणों का खुलासा:

हिंदी संवाद न्यूज़ की टीम द्वारा जब इस मामले पर गहन जांच की गई, तो पाया गया कि प्रधान पहले ही लिखित रूप में यह स्वीकार कर चुके हैं कि खड़ंजे पर अवैध दीवार का निर्माण किया गया है और इससे पीड़ित बजरंग कुमार मौर्य का रास्ता अवरुद्ध हो रहा है। इसके बावजूद, सेक्रेटरी कमलेश रंजन ने दीवार के अस्तित्व को नकारते हुए अपनी लापरवाही को बार-बार दोहराया। इस स्थिति से न केवल सेक्रेटरी की संलिप्तता पर सवाल खड़े होते हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट होता है कि वह अवैध निर्माण को दबाने के प्रयास में भ्रष्टाचार का हिस्सा हैं।

            कानूनी कार्रवाई की आवश्यकता:

अब सवाल यह उठता है कि प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा इस गंभीर प्रकरण में उचित और सख्त कार्रवाई कब की जाएगी। सेक्रेटरी और प्रधान की इस लापरवाही और भ्रष्टाचार की जांच होनी चाहिए, और दोषी पाए जाने पर उनके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। ग्राम पंचायत अधिनियम और अन्य कानूनी प्रावधानों के तहत सार्वजनिक रास्तों पर अवैध निर्माण पूरी तरह से अवैध है, और इसे जल्द से जल्द हटाया जाना चाहिए।

                            निष्कर्ष:

करमैनी खड़ंजे पर अवैध दीवार निर्माण का यह मामला प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार का बड़ा उदाहरण है। एडीओ पंचायत बृजेश तिवारी ने मामले की गंभीरता को समझते हुए सख्त कदम उठाए हैं, लेकिन अब यह आवश्यक है कि सेक्रेटरी और प्रधान की भूमिका की गहन जांच की जाए और दोषियों पर कानूनी कार्रवाई की जाए। प्रशासन की निष्पक्षता और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि खड़ंजे से अवैध दीवार को हटाया जाए और पीड़ितों को न्याय दिलाया जाए।।
                       पीड़ित बजरंग मौर्य 


हिंदी संवाद न्यूज़।
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