हमारे भारत देश में पर्वों का बहुत महत्व है। पूरे संसार के लोग भारत को पर्वों का देश मानते हैं। कहते हैं कि यहाँ हर दिन कोई न कोई पर्व होता है। किन्तु पर्व क्यों मनाया जाता है? कौन से पर्व की क्या विशेषता होती है? और पर्व किसे कहते हैं। ये हमें जानना चाहिए। जिससे हम अपने सन्तानों और शिष्यों को अच्छे से समझा सके। दीपावली पर्व को लेकर भी विश्व भर में फैले सनातन धर्म को मानने वाले हिन्दुओं में भ्रान्तियाँ फैली हुई है। सबसे बड़ी भ्रान्ति यह है कि दीपावली के दिन भगवान राम चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात् अयोध्या लौटे थे। तब अयोध्या वासियों ने भगवान राम के लौटने की खुशी में दीपक जलाए थे आनन्द, हर्ष और उत्सव मनाया था। और तब से दीपावली मनाई जाती हैं। किन्तु यह प्रमाण विरुद्ध बातें है। पूरे विश्व में जितनी भी प्रसिद्ध, प्राचीन या प्रामाणिक रामायण उपलब्ध है। उनमें किसी में यह नहीं लिखा कि भगवान राम कार्तिक की अमावस्या को लौटे थे। आज जब लोग अपने आप को पढे - लिखे, समझदार और शिक्षित मानते हैं। तो सुनी सुनाई अप्रमाणिक बातों पर विश्वास क्यों करते हैं? जो भगवान राम भारत की संस्कृति सभ्यता के प्राण हैं। पूरा भारत देश जिस भगवान की इतनी पूजा प्रतिष्ठा करता है उस महापुरुष के बारे में हम भारत के लोग सामान्य जानकारी भी नहीं रखते हैं। विश्व पटल पर बुद्धिमानों की सभा में हम भगवान राम को कैसे प्रतिस्थापित करेंगे? क्या हम भारत वासियों को राम के बारे में सामान्य जानकारी भी नहीं है। कि भगवान राम अयोध्या कब लौटे थे? ये हम राम के वंशजो के लिए कितनी हास्यास्पद और दुर्भाग्य की बात है। बस हम सुन लेते हैं और आगे बोलने लग जाते हैं एकबार हम अपने शास्त्रों को उठाकर देखने का प्रयास भी नही करते हैं।
आइये रामायण में देखते हैं -
पूर्णे चतुर्दशे वर्षे पञ्चम्यां लक्ष्मणाग्रजः। भरद्वाजाश्रमं प्राप्य ववन्दे नियतो मुनिम्॥
अर्थ - वनवास के चौदह वर्ष पूरे हो जाने पर चैत्र शुक्ल पञ्चमी के दिन श्रीराम भरद्वाज के आश्रम में पहुँचे और उन्हें यथाविधि प्रणाम किया।
देखिए क्या लिखा है, चैत्र मास शुक्ल पक्ष की पञ्चमी को भगवान राम अयोध्या पहुंचे हैं। फिर यह भ्रामक प्रचार कैसे हुआ कि दीपावली में आए थे। इसका कारण है ये टी वी, सीरियल और फिल्म वाले, वे बोल देते हैं और लोग वहीं से सुन लेते है, क्योंकि उनका प्रचार व्यापक है, तो उनकी बातें भी अधिक फैल जाती है। जबकि दीपावली तो भगवान राम के पूर्वज भी मनाते थे। इसलिए दीपावली पर्व कोई ऐतिहासिक पर्व नहीं है, इतिहास की किसी घटना के कारण दीपावली मनाना प्रारम्भ नहीं किया गया है। दीपावली भौगोलिक और सामाजिक पर्व है। भूगोल से मेरा तात्पर्य ऋतुओं से हैं। दीपावली का सम्बन्ध शरद ऋतु से है। क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ पर वर्षा ऋतु में मुख्य फसल उगाई जाती है और वह फसल शरद् ऋतु में प्राप्त होती है। उसी फसल की आगमन पर प्रसन्नता का पर्व है दीपावली।
दीपावली का सनातन और वैदिक नाम है - "शारदीय नवशस्येष्टि दीपावली पर्व" है। जिसका शाब्दिक अर्थ है "शरद् ऋतु की नई फसल का यज्ञ"। शरद् ऋतु में आई हुई फसल को सामूहिक रुप से एक निश्चित तिथि पर अर्थात् कार्तिक अमावस्या के दिन हवन करके, उसमें नई फसल को हवन सामग्री में मिलाकर, पहला भाग देवताओं को देने और भोग लगाने का नाम है "शारदीय नवशस्येष्टि"। इसलिए आप देखते होंगे दीपावली में बाजार में खोई, नया धान, बताशा, तेल और भिन्न प्रकार के दलहनों की धूम रहती है। यही शस्य (फसल) नवीन अनाज दीपावली "शारदीय नवशस्येष्टि" के प्रतीक हैं।
दूसरी बात दीपावली एक सामाजिक पर्व है। हमारा समाज योग्यता और कर्म के आधार पर चारों भागों में विभक्त है। इनमें एक महत्वपूर्ण भाग है वैश्य। वैश्य समाज में दो भाग है व्यापारी और कृषक। दीपावली पर्व धन धान्य समृद्धि का पर्व है। व्यापारी और कृषक मिलकर समाज को समृद्ध बनाते हैं। जब व्यापारी लोग वस्तुओं का उत्तमता से उत्पादन, विनिमय, क्रय-विक्रय, आयात-निर्यात करते हैं तब वह वस्तु सर्वसामान्य तक पहुँचती है। इस प्रकार से समाज में समृद्धि आती है। वैश्य का कर्त्तव्य है कि वह समाज से अभाव को दूर करे।
दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन की महिमा है। लक्ष्मी, धन-धान्य की प्रतीक है। रुपये, पैसे, सोना, चाँदी, हीरे, आभूषण, मूल्यवान वस्तुएं, घर, जमीन, जायदाद, दुकान, व्यापार उद्योग आदि सब लक्ष्मी ही के रुप है। इसके अतिरिक्त स्त्री रुप धारण की हुई कोई और सत्ता नहीं होती जिसकी मूर्ति बनाकर उससे कुछ मांगा जाए। देने वाला वह ईश्वर है, जो हमारे पुरुषार्थ, प्रारब्ध और कर्मों के आधार पर हमें देता है। वेदों में अनेक मन्त्र मिलते हैं जिसमें लक्ष्मी शब्द आता है वहाँ पर धन धान्य, सुख साधन और पदार्थों को ही लक्ष्मी कहा है, लक्ष्मी का शाब्दिक अर्थ है जो लक्ष्य सिद्धि में सहायक हो। जिससे हमारे पारिवारिक, शारीरिक, सांसारिक, सामाजिक और धार्मिक लक्ष्य सिद्ध हों, उन सारे भौतिक पदार्थों का नाम ही 'लक्ष्मी' है। मनुष्य इन पदार्थों को परिश्रम से प्राप्त करके लक्ष्मी पति या लक्ष्मीवान् कहाता है। किन्तु, मनुष्य को प्राप्त और अप्राप्त जो कुछ इस संसार में है, पहले था, और आगे होगा। उन सबका वास्तविक स्वामी परमात्मा है। इसलिए परमेश्वर का नाम "लक्ष्मी" भी है। वैसे भौतिक पदार्थों में सबसे पहाली लक्ष्मी होती है शस्य (फसल) यही लक्ष्मी का सबसे पहला रुप है। क्योंकि उसके बिना जीवन सम्भव नहीं है, लोग आजकल (करेन्सी) रुपये को लक्ष्मी मानते हैं। मैं पूछता हूँ? जब नोट चलन में नहीं थे तब लक्ष्मी नहीं होती थी क्या? तब सिक्के चलन में होते थे। जब सिक्के भी प्रचलन में नहीं होते थे तब लक्ष्मी नही होती थी क्या? होती थी? तब घर से धान ले जाते गेहूँ ले जाते और बदले में दुकान से तेल, शक्कर इत्यादि लाते थे। उस हिसाब से धान और गेहूँ आदि अनाज ही 'लक्ष्मी' हुए। इसलिए उस अन्न रुपी लक्ष्मी को अपने दुकान में खोई, बताशा, धान, दलहन इत्यादि के रुप में हवन के द्वारा देवताओं को भोग लगाना ही 'लक्ष्मी पूजा' है।
इस संसार में समुद्र को कोई भी व्यक्ति मथ नहीं सकता। समुद्र का मन्थन हास्यास्पद है कभी कोई ऐसी मशीन बन ही नही सकती जो हजारों कि.मी फैले हुए सात समुद्र को मथ सके, मथने से वही चीज बाहर आती है जो पहले से विद्यमान होती है, समुद्र की नीचे भी पहाड और जमीन है और समुद्री जीव है। वहाँ कोई अमृत और विष नहीं होता। मथने से कोई स्त्री (लक्ष्मी) प्रकट नहीं हो सकती। यदि आपको विश्वास नहीं हो तो एक ड्रम पानी समुद्र का लाकर मथ के देख लो कोई अमृत, विष कुछ नहीं निकलेगा। न लक्ष्मी प्रकट होगी। लक्ष्मी तो तब प्रकट होती है, जब व्यक्ति दिन रात भाग दौड करता है, परिश्रम करता है, पसीना बहाता है, पढाई लिखाई पर मेहनत करता है और बुद्धिमत्ता से कार्य करता है। तब व्यक्ति अच्छे पद पर पहुँचता है, लक्ष्मीवान और धनवान बनता है। सम्पूर्ण संसार में लोग धनवान होने और सफल होने का यही तरीका मानते हैं।
दीपावली का शाब्दिक अर्थ है 'दीपों की अवली' माने 'दीपों की पंक्ति' अधिक मात्रा में दीपक लगाना या सजावट करना 'दीपावली' कहलाती है। दीपावली के दिन दीपक क्यों जलाते हैं? क्योंकि यह पर्व अमावस्या को मनाया जाता है। अमावस्या 'रात्रि और अन्धकार' का प्रतीक है और दीपक 'प्रकाश' का प्रतीक है। इसलिए "तमसो मा ज्योतिर्गमय"
हम अन्धकार से प्रकाश की ओर चलें। दीपावली का यही सन्देश है कि हमारे मन, परिवार, व्यापार, समाज से अन्धकार, अज्ञान का नाश हो और प्रकाश अर्थात् ज्ञान का विस्तार हो। किन्तु यज्ञ सबसे बडा देवपूजा का साधन है। यज्ञ (हवन) प्रकाश, सुगन्धी, पुष्टि और शुद्धि का आधार है, यज्ञ से ही सभी देवताओं को भोग लगाना और उनकी पूजा सम्भव है। इसलिए हम दीपावली में *'शारदीय नवशस्येष्टि'* का यज्ञ करके बडे हर्षोल्लास के साथ दीपावली मनाएँ। क्योंकि "पर्वति पूरयति जनान् आनन्देन स पर्वः" जो हमें पूर्ण करे और हमें आनन्द से भर दे, उसे ही 'पर्व' कहते हैं।
ईश्वर की सन्ध्या, उपासाना, ध्यान, स्वाध्याय, अपने दैनिक कार्य, व्यापार, नौकरी आदि को प्रसन्नता, परिश्रम और पुरुषार्थ पूर्वक करना। पर्वों को यज्ञ पूर्वक मनाना। यही श्रेष्ठ भारतीय की पहचान है, जो पूर्ण तार्किक और वैज्ञानिक रुप से अपने पर्वो को मनाते हैं। और सम्पूर्ण विश्व को मानवता, सद्भावना, प्रेम, शान्ति और सौहार्द का सन्देश देते हैं। यही ईश्वर का आदेश और वेद का विधान है।
तो आइए! सही और तार्किक ज्ञान का प्रचार करें। भारतीय पर्व और संस्कृति के सही अर्थ को समझें और अपनी विरासत पर गर्व करें। इस बार happy Diwali की जगह शुभ दीपावली कहें।
🪔शुभ दीपावली 🪔
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