आज करेंगी महिलाएं करवा चौथ का व्रत करके पति की आयु की कामना ।।
  संवत् २०८१ कार्तिक कृष्ण तृतीया परि चतुर्थी 20 अक्टूवर 2024 रविवार ।।
बहराइच मे चंद्रोदय रात्रि 07 : 46
              -=करवा चौथ व्रत: परंपरा और स्वरूप=-
पं.अनन्त पाठक :-
        -कार्तिक माह की कृष्ण चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन किया जाने वाला करक चतुर्थी यानी करवा चौथ का व्रत स्त्रियां अपने अखंड सौभाग्य की कामना और अपने पति की दीर्घायु के लिए रखती हैं। इस व्रत में शिव-पार्वती, गणेश और चन्द्रमा का पूजन किया जाता है। इस शुभ दिवस के उपलक्ष्य पर सुहागन स्त्रियां पति की लंबी आयु की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। पति-पत्नी के आत्मिक रिश्ते और अटूटबंधन का प्रतीक यह करवा चौथ या करक चतुर्थी व्रत संबंधों में नई ताजगी एवं मिठास लाता है। करवा चौथ में सरगी का काफी महत्व है। सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाने वाली आशीर्वाद रूपी अमूल्य भेंट होती है।
परंपरा के तौर पर यह व्रत पर्व वैसे तो पूरे भारत में मनाया जाता है, परन्तु उत्तर-मध्य भारत में यह बहुत अधिक उत्साह व शौक से विवाहित स्त्रियों द्वारा मनाया जाता है। हालांकि भारत में ही कई ऐसे क्षेत्र भी हैं, जहां इसे बिल्कुल नहीं मनाया जाता है, जैसे कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, दक्षिण भारत इस व्रत से अनभिज्ञ और उदासीन है। हां, यह जरुर है कि इन क्षेत्रों में जेष्ठ में पड़ने वाले तीन दिन केवट सावित्री व्रत  की अनिवार्यता जरूर है, जिसमें सुहागन स्त्री के व्रत का वही उद्देश्य होता है, जो करवा चौथ के व्रत का। भारतीय दर्शन की पौराणिक परंपरा के अनुसार यह पर्व उन स्त्री जातकों के लिए भी बहुत अधिक महत्वपूर्ण है, जिनके वैवाहिक संबंध ठीक नहीं चल रहे हैं या जिनके जीवन साथी का स्वास्थ्य ठीक न रहता हो। यदि ऐसी स्त्रियां इस पर्व पर विधि-विधान से उपवास करके पूजा-अर्चना व कामना करती हैं तो पति-पत्नी के संबंधों में निश्चित रूप से मधुरता बढ़ेगी, आपसी सामंजस्य बढ़ेगा तथा उनके वैवाहिक जीवन से कष्ट दूर हो जाएंगे और खुशहाली आएगी। 
इस व्रत की एक गहन पौराणिक मान्यता है।इस व्रत की शुरुआत प्रातःकाल सूर्योदय से पहले ही हो जाती है, जब सरगी के रूप मेंसास अपनी बहू को विभिन्न खाद्य पदार्थ एवं वस्त्र इत्यादि देती हैं। यह सरगी, सौभाग्य और समृद्धि का रूप होती है। सरगी के रूप में खाने की वस्तुओं को जैसे फल,मिठाई आदि को व्रती महिलाएं व्रत वाले दिन सूर्योदय से पूर्व प्रातः काल में तारों की छांव में ग्रहण कर लेती हैं। तत्पश्चात व्रत आरंभ होता है। इस दिन स्त्रियां साज-श्रृंगार करती हैं, हाथों में मेहंदी रचाती हैं और पूजा के समय नएवस्त्र पहनती हैं।दोपहर में सभी सुहागन स्त्रियां एक जगह एकत्रित होती हैं, शगुन के गीत आदि गाती हैं। इसके बाद शाम को कथा सुनने के बाद अपनी सासू मां के पैर छूकर आशीर्वाद लेतीहैं और उन्हें करवा समेत अनेक उपहार भेंट करती हैं। रात के वक्त चांद निकलने के बाद अनेक पकवानों से करवा चौथ की पूजा की जाती है तथा चांद को अर्घ्य देकर उसकी पूजा करते हैं। चंद्र दर्शन के बाद छलनी से आर-पार पति का चेहरा देखकर पति के हाथों से पत्नी जल पीती है और अपने व्रत को पूर्ण करती है।
पुराणों के अनुसार देवी अनुसुईया के द्वारा चलाई गई कर्क चौथ व्रत की परंपरा आज के समय में करवा चौथ व्रत परंपरा बन गई है। तब देवी अनुसुईया ने सुंदर और सुशील पति की प्राप्ति के लिए यह व्रत रखा था। आज यह सुहागिनों के प्रमुख व्रत के रूप में जाना जाता है।
               -=करवा चौथ व्रत: परंपरा और स्वरूप=-
 करवा चौथ का पौराणिक महत्व है। स्कंद पुराण के कुमारिका खंड में इस व्रत का उल्लेख मिलता है। उस समय इस व्रत को कर्क व्रत के रूप में जाना गया। लेकिन, कालांतर में इसका नाम करवा चौथ व्रत पड़ गया है। वहीं इस बार इस व्रत पर बहुत ही शुभ संयोग बन रहे हैं। इस बार पूरे सत्तर सालों बाद यह करवा चौथ रोहिणी नक्षत्र में आ रहा है। इसलिए, इस व्रत को सुहागिनों के लिए अति शुभ बताया जा रहा है। मान्यता है कि रोहिणी नक्षत्र चंद्रमा को अति प्रिय है। रोहिणी नक्षत्र को प्रीति नक्षत्र भी कहा जाता है। चंद्र दर्शन करने के बाद ही सुहागिनें अपने पति का मुख देखकर इस व्रत का पारण करती हैं।
धर्म ग्रंथों में महाभारत से संबंधित एक और पौराणिक कथा का भी उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार पांडवपुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं व दूसरी ओर बाकी पांडवों पर कई प्रकार के संकट आन पड़ते हैं। यह सब देख द्रौपदी चिंता में पड़ जाती हैं। वह भगवान श्रीकृष्ण से इन सभी समस्याओं से मुक्त होने का उपाय पूछती हैं।महाभारत काल में पांडवों के दुख के दिनों में श्रीकृष्ण द्रौपदी से कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करक चतुर्थी अर्थात करवा चौथ का व्रत रखें तो उन्हें इन सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है। भगवान कृष्ण के कथनानुसार द्रौपदी विधि-विधान समेत करवा चौथ का व्रत रखती हैं, जिससे उनके सभी कष्ट दूर हो गऐ।
3-बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहनकरवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भीखाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथका निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है,इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो।इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसेअर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है।वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभीउसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वहतुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुमउसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कहकर वह चली जाती है।सबसे अंत में छोटी भाभी आती है।करवाउनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देखकरवाउन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिनकरवानहीं छोड़ती है।अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है।करवाका पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है।इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम सेकरवाको अपना सुहाग वापस मिल जाता है।हे श्री गणेश-मां गौरी जिस प्रकारकरवाको चिर सुहागन का वरदानआपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।
करक चतुर्थी संदर्भ में कई कथाएं प्रचलित है, जिसके अनुसार करवा नाम की एक स्त्री थी। वह बहुत पतिव्रता थी। वह अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के पास एक गांव में रहती थी। एक बार करवा का पति नदी के किनारे कपड़े धो रहा होता है। तभी अचानक वहां एक मगरमच्छ आता है। वह उसके पति का पांव अपने मुंह में दबा लेता है और उसे नदी में खींचकर ले जाने लगता है। तब उसका पति जोर-जोर से अपनी पत्नी को करवा-करवा कहके मदद के लिए पुकारने लगता है। पति की आवाज सुन कर करवा भागी-भागी वहां पहुंचती है। इसी दौरान वह अपने पति को फंसा देख मगरमच्छ को कच्चेधागे से बांध देती है। फिर वह यमराज से अपने पति के जीवन की रक्षा करने को कहती है। करवा की करुण व्यथा देख कर यमराज उससे कहते हैं कि वह मगर को मृत्यु नहीं दे सकते क्योंकि उसकी आयु शेष है, परंतु करवा के पति-धर्म को देख यमराज मगरमच्छ को यमपुरी भेज देते हैं। करवा के पति को दीर्घायु प्राप्त होती है और यमराज करवा से प्रसन्न हो उसे वरदान देते हैं कि जो भी स्त्री कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को व्रत का पालन करेगी, वह सौभाग्यवती होगी। तब से करवा-चौथ व्रत को मनाने की परंपरा चली आ रही है।
आज इस आधुनिकता मे ब्रत मात्र रस्म अदायगी हो गया हैआज के समय में हर छोटे-बड़े शहर से लेकर महानगरों में करवा चौथ व्रत का आधुनिक स्वरूप बिल्कुल बदल गया है। इस व्रत पर भी बाजार कल्चर हावी हो गया है। सरगी के रूप में किस्म किस्म के महंगे रेडिमेड फूड और गिफ्ट पैक चल पड़े हैं, जो कि सास अपनी बहू को देती हैं। सुहागन की साज-सज्जा अब पार्लर आधारित हो गई है और पहनावाडिजाइनर ड्रेसों, साड़ियों, लहंगों और आधुनिक चाइनीज़ करवों तक जा पहुंचा है। यहां तक कि चांद देखने के बाद पति दर्शन की छलनी भी अब चांदी की हो गई है। रही बात मेकअप की तो उसके लिए अमीरी और दिखावे की होड़ ने सभी परंपरागत स्वरूपों पर पानी फेर दिया है। ऐसे में लगता है कि यह त्योहार मध्यवर्गीय सम्पन्नता का आडंम्बर मात्र रह गया है। लेकिन इसके विपरीत देहातों में आज भी इसका परंपरागत वजूद कायम है और वहां पर लगता है कि वास्तव में यह व्रत सुहागनों द्वारा की जानेवाली एक उपयुक्त साधना है, जिसे अधिकांश महिलाएं आज भी श्रद्धापूर्वक निभा रही हैं।

करवा चौथ की पूजा सामग्री:क
मां पार्वती, भगवान शंकर और गणपति की एक फोटो
कच्चा दूध
कुमकुम
अगरबत्ती
शक्कर
शहद
पुष्प
शद्ध घी
दही
मेहंदी
मिठाई
गंगा जल
चंदन
चावल
सिंदूर
महावर
कंघा
मेहंदी
चुनरी
बिंदी
बिछुआ
चूड़ी
धातु या मिट्टी का टोंटीदार करवा ढक्कन सहित
दीपक और बाती के लिए रूई
गेंहू
शक्कर का बूरा
पानी का लोटा
गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी
लकड़ी का आसन
छन्नी
सींक 7 या 5
आठ पूरियों की अठवारी
हलवा और दक्षिणा के लिए पैसे

जानिये पूजन का शुभ मुहूर्त, चंद्रोदय का समय :- रात्री 07 : 46 पर इसके के बाद पूजन का समय है।


     हिन्दी संवाद न्यूज से
      रिपोर्टर वी. संघर्ष

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