राजकुमार गुप्ता
 मथुरा। जनपद मै अपनी बेदाग छवि के रूप मै अलग पहचान बनाने वाले जिलाधिकारी शैलेंद्र कुमार सिंह और मथुरा जनपद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शैलेश कुमार पांडे अपनी कार्यशैली के दम पर मथुरा मैं टिके हुए है जिन्होंने अपने कुशल कार्यप्रणाली से मथुरा जनपद की अलग पहचान बनाई और प्रदेश मै सबसे महत्वपूर्ण जिले का कार्यभार संभाला शासन प्रशासन की जुगल बंदी से मथुरा के प्रशासनिक अधिकारियों मै ऊर्जा का संचार कर मथुरा को विकास की राह पर लेकर चलने का मार्ग प्रशस्त किया।

किंतु मथुरा वृंदावन में डालमिया बगीचे मै जो सघन वृक्षावली का संघार हुआ है ये मामला इनके कार्यकाल मै कलंक लगाने का काम कर गया , हरे पेड़ों के कटान के बाद प्रशासन हरकत मै तो आया है पर अभी शासन प्रशासन पर लगे कलंक को मिटाने के लिए ठोस कार्यवाही तक ले जाने का काम करना होगा ।

आपको मामले से अवगत कराते चलें कि शासन प्रशासन अपनी कार्यवाही को कर रहा है जिसका असर भी देखने को मिल रहा है इसी क्रम मैं जैंत थाना क्षेत्र स्थित छटीकरा रोड पर डालमिया फार्म हाउस में 300 से अधिक हरे पेडों पर आरा चलने के मामले में जांच टीम को महत्वपूर्ण सुराग हाथ लगे हैं। वन विभाग की पांच सदस्यीय विशेष जांच टीम ने दस ऐसे वीडियो फुटेज जुटाए हैं जो पूरे प्रकरण में खास सुबूत का काम करेंगे। ये फुटेज पुलिस और इंटेलीजेंस को उपलब्ध करा दिए गए हैं। इनमें दस ऐसे महत्वपूर्ण चेहरे सामने आए हैं जो अब टीम के रडार पर हैं।

इस फार्म हाउस में पेड़ कटने की गूंज शासन तक है। खास तौर पर वन विभाग की पांच सदस्यीय टीम ने पर काम किया और डालमिया फार्म हाउस के निकट के आश्रम, आईटीएमएस, धर्मशाला, निजी मकानों पर लगे सीसीटीवी कैमरों से बीस से ज्यादा सीसीटीवी फुटेज निकालीं। इनमें से दस फुटेज खास निकली हैं। इन फुटेज में यहां जेसीबी, पॉकलेन मशीनों की आवाजाही, मजदूरों एवं अन्य लोगों की आवाजाही तथ महंगी कारों का फार्म हाउस की तरफ आना जाना कैद हुआ है। ये फुटेज इस पूरे प्रकरण में अहम साबित होंगी।

उधर, मौके पर पहुंची पुलिस और वन विभाग कर्मी ने एक इलेक्ट्रॉनिक आरा मशीन बरामद की है। किसी वृक्ष प्रेमी ने कटान का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। दरअसल 18 सितंबर को इस फार्म हाउस में हरे पेड़ों को काट डाला गया था। पांच सौ करोड़ रुपये की जमीन के लिए यह सारा खेल खेला गया। कई विभागों ने इसमें विभिन्न मुकदमे दर्ज कराए हैं और आरोपियों को गिरफ्तार किया जा रहा है। हालांकि इस पूरे प्रकरण में सरकारी विभागों की मिलीभगत सामने आ रही है। अवैध कालोनी के लिए यह सारा खेल खेला गया। इसमें शहर के पांच निवेशक शामिल हैं।

हमारी टीम ने महत्वपूर्ण वीडियो फुटेज जुटाकर पुलिस को दी है। इन फुटेज में काफी अहम सुराग मिले हैं। ये जांच में महत्वपूर्ण साबित होंगे। - रजनीकांत मित्तल, *प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी*

प्रधान मुख्य वन संरक्षक को सौंपी गई जांच
इस पूरे प्रकरण की जांच प्रधान मुख्य वन संरक्षक को सौंप दी गई है। प्रमुख सचिव वन एवं पर्यावरण मनोज सिंह ने बताया कि यह मामला बेहद गंभीर है। इसमें किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। प्रधान मुख्य वन संरक्षक पूरे प्रकरण की जांच कर रहे हैं और शासन खुद इसमें संज्ञान ले रहा है।

एनजीटी में दायर हुई दो याचिकाएं
वृंदावन। हरे पेड़ काटने का मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में पहुंच गया है। इस मामले में दो याचिकाएं दायर हुई हैं। दोनों याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई होनी है। सोमवार को एनजीटी इस मामले में बड़ा फैसला दे सकती है।

इस मामले में पुलिस रिपोर्ट दर्ज कर अब तक छह लोगों की गिरफ्तारी कर चुकी है। सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता नरेंद्र कुमार गोस्वामी के बाद अब वृंदावन के पर्यावरणविद मधुमंगल शरण दास शुक्ला ने भी एनजीटी में याचिका दायर की है। पहली याचिका नंबर 1191/2024 अधिवक्ता नरेंद्र ने 6 प्रमुख बिंदु सुनवाई के लिए रखे हैं। उन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि इस मामले में कई संवैधानिक उल्लंघन किए हैं। मथुरा जनपद में चर्चाओं का बाजार गर्म है तथाकथित लोगों को कहते हुए सुना गया है कि मथुरा के जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, मथुरा वृन्दावन विकास प्राधिकरण, नगर निगम तथा वन विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत के बिना इतनी बड़ी संख्या में पेड़ों का कटान संभव नहीं है।

दूसरी याचिका संख्या 1192/2024 है जो मधुमंगल शरण दास शुक्ल ने दायर की हैं। इसमें कोर्ट से 14 बिंदुओं पर सुनवाई की मांग की है। उन्होंने बताया कि याचिका में वृंदावन एवं संपूर्ण ब्रजभूमि की वन संपदा को और क्षति न पहुंचे इसके लिए अंतरिम आदेश दिए जाएं। ताकि अवैध वृक्ष कटान को तुरंत रोका जा सके। भूमाफिया का यह कृत्य इलाहाबाद हाईकोर्ट की जनहित याचिका संख्या 36311/2010 के तहत दिए गए आदेश-निर्देशों का उल्लंघन है। डालमिया बगीचे को नष्ट करने वालों के खिलाफ वन संरक्षण अधिनियम 1980, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 तथा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 में दिए गए आदेशों के तहत रिपोर्ट दर्ज हो।

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