लखनऊ: 21 सितम्बर, 2024: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि यह उनका सौभाग्य है कि उन्हें पूज्य महंत अवेद्यनाथ जी महाराज के सान्निध्य में गोरक्षपीठ के माध्यम से लम्बे समय तक शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सेवा के विभिन्न प्रकल्पों से जुड़ने का अवसर प्राप्त हुआ था। वह एक धर्माचार्य, मार्गदर्शक तथा समाज सुधारक थे। उनमें सहज व सरल लोगों के प्रति वात्सल्य का भाव था। यदि कोई व्यक्ति धर्म विरोधी या राष्ट्र विरोधी आचरण करता था, तो वह बज्र जैसी कठोरता के साथ उसका प्रतिरोध करते थे। उस मामले में वह किसी बात की परवाह नहीं करते थे। उन्होंने गोरक्षपीठ, षड्दर्शन सम्प्रदाय व नाथपंथ के माध्यम से समाज को संगठित करते हुए जीवन के प्रत्येक पक्ष के सम्बन्ध में कार्य को आगे बढ़ाया।
मुख्यमंत्री जी आज श्री गोरक्षनाथ मन्दिर परिसर, गोरखपुर में युग पुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित सप्त दिवसीय पुण्यतिथि समारोह-2024 के अन्तर्गत महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की पुण्यतिथि के अवसर पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आज ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की दसवीं पुण्यतिथि है। परम्परागत रूप से इस अवसर पर पूज्य संतों का प्रतिवर्ष सान्निध्य प्राप्त होता है। पूज्य संतों तथा वक्ताओं ने अपनी वाणी के माध्यम से पूज्य गुरुदेव के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की है। संतों की पुण्यतिथि के आयोजन के साथ जुड़कर उनके व्यक्तित्व तथा कृतित्व को नई प्रेरणा के रूप में स्वीकार करना हमारे लिए उपादेय होगा तथा जीवन को नई दिशा प्रदान करेगा।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि गोरक्षपीठ की परम्परा जोड़ने की परम्परा है। इतिहास के कालखंडों के अध्ययन से हमें देश की गुलामी के कारण ज्ञात होते हैं। कुछ स्वार्थी तत्वों ने समाज की एकता को खंडित करने तथा विभाजन की खाई को चैड़ा करने का प्रयास किया। इसका दुष्परिणाम देश को लंबे समय तक भुगतना पड़ा। गुलामी की मानसिकता हावी होने के कारण तत्कालीन नेतृत्व देश की दिशा तय नहीं कर पाया। स्वतंत्र भारत में देश को जो नई दिशा मिलनी चाहिए थी, वह नहीं प्राप्त हुई। क्या स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने इसीलिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया था। देश के संतों के मन में इस उधेड़बुन को लेकर आक्रोश था।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि भारत आज सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। विगत 10 वर्षों में देश की प्रगति से सर्वांगीण विकास की रूपरेखा सामने आई है। यह रूपरेखा बहुत उत्साहित करने वाली व हम सबको आगे बढ़ाने वाली है। आज जब भारत आगे बढ़ रहा है, तो दुनिया की वह ताकतें जो भारत को आगे बढ़ते हुए नहीं देखना चाहती, नये नये षड्यंत्र कर रही हैं। ऐसे समय में महागुरु गोरखनाथ, आदि शंकर, जगद्गुरु रामानुजाचार्य आदि संतों द्वारा भारत की एकता के लिए दिया गया संदेश हम सब की प्राथमिकता में होना चाहिए। जब तक ‘जाति-पाति पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि के होई’ का भाव हमारे मन में नहीं आएगा तब तक हम सामाजिक एकता को मजबूती नहीं प्रदान कर पाएंगे। यदि सामाजिक एकता मजबूत नहीं है, तो राष्ट्रीय एकता को चुनौती उसी प्रकार मिलती रहेगी, जैसे वर्तमान में अनेक लोग निजी स्वार्थ के कारण जाने-अनजाने में देते हुए दिखाई दे रहे हैं। हम सबको सतर्क होकर कार्य करना होगा।
गोरक्षपीठ से जुड़े हुए भक्तगणों, शुभचिंतकों तथा यहां से संचालित शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थाओं व समाज के प्रत्येक वर्ग से जुड़े हुए व्यक्तियों का भी दायित्व बनता है कि वह प्रेरक महापुरुषों के व्यक्तित्व और कृतित्व से प्रेरणा लें। सप्त दिवसीय आयोजन इन्हीं मूल्यों व आदर्शों को आधार बनाकर किया जाता है। जैसा कि स्वामी दिनेशाचार्य जी उल्लेख कर रहे थे कि उनके पूज्य गुरु जगद्गुरु स्वामी हरि आचार्य जी महाराज भी यहां सामाजिक समरसता सम्मेलन जैसे कार्यक्रमों में भाग लेते थे।
इस सम्मेलन के साथ-साथ व्यावहारिक धरातल पर भी पूज्य महंत अवेद्यनाथ जी महाराज तथा महंत दिग्विजय नाथ जी महाराज सामाजिक समरसता के लिए निरन्तर प्रयासरत रहे। वह सेवा के विभिन्न प्रकल्पों को आगे बढ़ाने के साथ ही संस्कृत शिक्षा, सामाजिक एकता तथा गोरक्षा के लिए अनवरत कार्य करते रहे। गोरक्षा का केवल उपदेश ही नहीं देना है, बल्कि इससे व्यावहारिक धरातल पर भी उतारना है। अन्य लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करना है। हमारी बातों का वजन तब होता है जब हम स्वयं भी इस अनुरूप आचरण करते हैं। स्वयं की कथनी के अनुसार आचरण करना प्रभावकारी होता है। जब यह सभी कार्यक्रम एक साथ चलेंगे तो इसके अच्छे परिणाम सामने आएंगे। इन दोनों आचार्यों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालने पर यह चीजें आपको साफ दिखाई पड़ेंगी। उन्होंने जो बोला, वही किया तथा जो किया, वही बोला। यही कारण था कि उनका पूरा जीवन समाज और देश के लिए समर्पित था। उन्होंने संन्यासी के रूप में लोक कल्याण के लिए अपने स्तर पर प्रयास किये। लेकिन देश और धर्म उनकी प्राथमिकता के विषय थे।
इस अवसर पर कौशल्या सदन अयोध्याधाम के जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी वासुदेवाचार्य जी महाराज, जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी राघवाचार्य जी महाराज, श्रीमद् जगतगुरु काशीपीठाधीश्वर स्वामी रामकमलदास वेदांत जी महाराज, बाबा मस्तनाथ पीठ रोहतक, हरियाणा के महन्त स्वामी बालकनाथ जी महाराज, योगी महासभा के महामंत्री योगी चेताईनाथ जी महाराज, जूनागढ़ गुजरात से पधारे महंत शेरनाथजी महाराज, दिगंबर अखाड़ा अयोध्या के महंत सुरेश दास जी महाराज, महंत धर्मदास जी महाराज, दूधेश्वर मंदिर गाजियाबाद से पधारे स्वामी नारायणगिरी जी महाराज, जगद्गुरु स्वामी रामदिनेशाचार्य जी महाराज सहित अन्य सन्तजन, केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री श्री कमलेश पासवान, प्रदेश के जल शक्ति मंत्री श्री स्वतंत्र देव सिंह, सांसद श्री रवि किशन, महापौर डाॅ0 मंगलेश श्रीवास्तव सहित अन्य जनप्रतिनिधिगण, मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 जय प्रकाश सैनी, महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 ए0के0 सिंह, सामाजिक व सांस्कृतिक संगठनों के पदाधिकारीगण, महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद से संबद्ध संस्थाओं के प्रधानाचार्य, आचार्यगण, विद्यार्थी तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
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