औरैया // 12 अगस्त का दिन औरैया जिलेवासियों के लिए गौरव का दिन है इसी दिन तहसील पर लगे गुलामी के प्रतीक ब्रिटिश यूनियन जैक को उतारकर तिरंगा फहराने वाले छह क्रांतिकारी शहीद और 50 से अधिक घायल हो गए थे। आंदोलन की कमान क्रांतिकारियों की तिकड़ी छक्कीलाल दुबे, बल्दू पहलवान और हाफिज करीम ने संभाली थी। बल्दू पहलवान के दिबियापुर में रहने वाले परिवारीजनों का सीना अपने पूर्वज के गौरवपूर्ण इतिहास को याद कर चौड़ा हो जाता है, औरैया दिबियापुर मार्ग पर ककराही पुलिया निकट रहने वाले सौरभ बताते हैं कि उनके परबाबा बल्दू पहलवान ने स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी। महात्मा गांधी के अंग्रेजों भारत छोड़ो के आह्वान पर 12 अगस्त 1942 को छह छात्रों, नौजवानों ने तहसील पर लगे गुलामी के प्रतीक ब्रिटिश यूनियन जैक को उतार दिया था। इस आंदोलन में छह क्रांतिकारी शहीद हुए थे। लगभग 50 घायल हुए थे, देशभक्ति बचपन से भरी थी बल्देव प्रसाद उर्फ बल्दू पहलवान का जन्म वर्ष 1886 में औरैया के पड़ोस के सनावली गढि़या गांव में हुआ था। पिता का नाम उदयभान और माता का नाम गंगादेवी था। गांव में तीन बार आग लगने से हुए नुकसान के कारण परबाबा के पिता औरैया के दयालगंज में आकर बस गए थे बल्दू पहलवान के अंदर अन्याय के खिलाफ लड़ने की भावना बचपन से ही थी, वे रात में टोली बनाकर, गश्त देकर, चोरों बदमाशों से जनता के जान माल की सुरक्षा करते थे बल्दू पहलवान ने जालौन तहसील, कानपुर की पुखरायां व डेरापुर तहसील, फर्रूखाबाद, कन्नौज आदि के कई गांवों में जनसभाएं कर जनजागरण किया था वर्ष 1930 में लगान बंदी आंदोलन में परबाबा की मौजा बदनपुर की 14 बीघा जमीन जब्त हो गई थी छह माह तक कठोर कारावास और आर्थिक दंड मिला था। देश सेवा में योगदान देते हुए मार्च 1971 में उन्होंने 86 वर्ष की अवस्था में शरीर त्याग दिया। सौरभ गुप्ता ने बताया परिवार के शेष सभी सदस्य औरैया के भीखमपुर (दयालपुर) में रह रहेे हैं, 75 कुश्तियां लड़ीं और सभी जीते, सौरभ गुप्ता का कहना है कि उनके परिवार के बुजुर्ग बताते हैं कि परबाबा बल्दू प्रसाद के सामने अखाड़े में कोई टिक नहीं पाता था। लोग दंगलों में ले जाकर सबसे पहले उन्हीं की कुश्ती कराते थे। उन्होंने लगभग 75 कुश्तियां बड़े पहलवानों से लड़ीं और कोई भी कुश्ती वह हारे नहीं। कुश्तियां जीतने पर मिला इनाम भी वह गरीबों में बांट दिया करते थे। वह 80 वर्ष की उम्र तक दंगलों में निर्णायक की भूमिका निभाते रहे। वह काकोरी कांड के नायक मुकुंदीलाल के भी सहयोगी रहे थे।
ये क्रांतिकारी अंग्रेजो से लोहा लेते हुए हो गए थे शहीद...
1- बाबू रामजी
2- भूरेलाल
3- दर्शन लाल
4- सुल्तान खां
5- मंगली प्रसाद
6- कल्याण चंद्र
सदर तहसील में बना है शहीदों का स्मारक सदर तहसील में लगे गुलामी के प्रतीक यूनियन जैक को उतारने के दौरान जान गवाने वाले छह क्रांतिकारियों की याद में तहसील परिसर में शहीद स्मारक बनाया गया है यहां पहुंचने पर आज भी इस घटना की यांदें ताजा हो जाती है। इसमें सभी के नाम भी अंकित हैं। 12 अगस्त को सभी लोग सदर तहसील व देवकली मंदिर समीप शहीद स्मारक पर जुटते हैं उन्हें श्रद्धांजलि भी दी जाती है।
ब्यूरो रिपोर्ट :- जितेन्द्र कुमार
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