धर्म के नाम पर ठगी करने का फल आवश्य मिलता है - पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज
धर्म के नाम पर ठगी करने वालों को इस जीवन में ही उसका फल भोगना होता है। ठगी का शिकार होने वाले भक्तों का कुछ भी नहीं बिगड़ा है । क्योंकि भगवान के खाते में उसके सत्कर्म अपने आप जुड़ जाते हैं। इसलिए भगत को चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है । लेकिन भगत से ठगी करने वाले व्यक्ति को इसका फल हर हाल में चखना पड़ता है, खाना पड़ता है।
उक्त बातें लखनऊ के सुशांत गोल्फ सिटी , दयालबाग में चल रही नौ दिवसीय श्री राम कथा के पांचवें दिन पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कहीं।
सरस् श्रीराम कथा गायन के माध्यम से भारतीय और पूरी दुनिया के सनातन समाज में अलख जगाने के लिए जनप्रिय कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने श्री सीताराम विवाह के आगे के प्रसंगों का गायन करते हुए कहा कि भगवान की अपनी व्यवस्था है और इस व्यवस्था में कोई भी किसी को छल नहीं सकता है। धर्म के नाम पर जब किसी को कोई ठगता है तो भगवान भगत के भाव की रक्षा करते हैं। इसलिए भगत को अपने धर्म कर्म में कभी भी चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। सनातन धर्म का मूल भी यही है जो जैसा करता है वह वैसा ही पाता है।
पूज्य श्री ने कहा -
सनातन धर्म विश्वास पर ही टिका है। धरती का संसार भगवान की रचना है और इसकी हर रचना पर भगवान की ही दृष्टि है। भगवान को न मानने वाले या प्रकृति से छेड़छाड़ करने वाले लोगों को अगर यह लगता है कि उसका फल उन्हें नहीं भोगना होगा तो वह गलत सोचते हैं। अच्छे कर्म का अच्छा फल और बुरे कर्म का पूरा फल हर हाल में प्राप्त होता है। केवट जी को 17 जन्मों के बाद भगवान का पैर पखारने का अवसर मिला था।
पूज्य महाराज श्री ने बताया कि भगवान अपने अंशों सहित धरती पर आए और इसलिए वो अपने सभी कार्यों को सरलता से संपन्न कर पाए। हमें भी अपने जीवन में आसपास अपने अंशों की तलाश करनी चाहिए। यह आवश्यक नहीं है कि वह हमारे रक्त संबंधी हो। जिनसे मिलकर हमारे हृदय को हमारे मन को सुकून प्राप्त हो, वो हमारे अंशी हो सकते हैं।
महाराज जी ने कहा कि राम जी के जीवन से हमें यही शिक्षा मिलती है कि बिना तपस्या के कुछ भी प्राप्त नहीं होता है। मनुष्य को अपने जीवन में अगर कुछ चाहिए तो उसे तपना होगा। जब हमारी पीढ़ी में कोई तप करता है तो हमें कुछ प्राप्त होता है और जब कई पीढ़ियां तप करती चली जाती हैं तब राष्ट्र और समाज के लिए कुछ विशेष प्राप्त होता है।
भगवान को वही जान पाता है जिसे भगवान जनाना चाहते हैं। और भगवान को जान जाने वाला भगवान का होकर ही रह जाता है।
पूज्य महाराज श्री ने कहा कि जैसे गंगा जहां जहां प्रवाहित होती है, उस क्षेत्र को पावन कर देती है। ठीक उसी प्रकार जहां जहां कथा रस की वर्षा होती है, वहां के वातावरण को आलोकित कर देती है। भगवान भोलनाथ भी कथा को कामधेनु कहते हैं। रामकथा सुनने मात्र से सारे सुख प्रदान कर देती है,लेकिन कथा सत्संग का फल सत्कर्मों से मिलता है। बिना सत्संग के मनुष्य में विवेक जाग्रत नहीं होता है। जब विवेक जाग्रत हो जाता है तो साधक यजन में और भगत भजन में लीन हो जाता है। जितना विश्वास बढता जाता है, श्रद्धा भी उतनी ही बढ़ती जाती है। भगवत भक्ति भी श्रद्धा और विश्वास के परिणय से होती है। जीवन में जिसके प्रति हम श्रद्धा रखते हैं, उसका ही हम आदर करते हैं।
महाराजश्री ने कहा कि मनुष्य भी जब अपनी सहजावस्था में होता है तो समाधि में पहुंच जाता है। बिना शांत रहे भजन नहीं होता है। मन में यदि शांति नहीं हैं तो न चिंतन होता है और न कथा में मन लगता है। जब मन मस्तिष्क में बहुत सारे घटनाक्रम एक साथ चलते हैं तो मन शांत नहीं रहता है। फिर ऐसे में हम बच्चों को शांत रहने के लिए तो कह सकते हैं लेकिन खुद शांत नहीं रह सकते, क्योंकि शांति के लिए मन को एकाग्र करना बहुत जरूरी है। हमारे चित्त में जितनी निर्मलता रहेगी, मन भी उतना निर्मल हो जाता है। मन शुद्ध अन्न से बनता है। इसलिए कहते हैं जैसा खाओगे अन्न, वैसा बनेगा मन,जैसा पीओगे पानी, वैसी बनेगी वाणी।
इस कथा में उत्तर प्रदेश के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह की पूजनीया माता जी , आयोजक दयाल ग्रुप के चेयरमैन राजेश सिंह दयाल और खुशहाली फाउंडेशन के चेयरमैन सोनू सिंह ने व्यास पीठ पर उपस्थित भगवान का पूजन किया। कई विशिष्ट अतिथि कथा में उपस्थित रहे। बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोतागण को महाराज जी के द्वारा गाए गए दर्जनों भजनों पर झूमते हुए देखा गया।
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