पशु पक्षी और कीट पतंगे : क्यों बन रहे बीमारी और मौत के वाहक

- अनुज अग्रवाल , संपादक, डायलॉग इंडिया

पिछले एक साल में देश में 30 लाख से अधिक लोगों को कुत्तों ने काटा। तो बंदरों   का आतंक भी कम नहीं। रेबीज़ की बीमारी अब आम है। इन दिनों भेड़िए आदमखोर हो रहे हैं तो कहीं चीते , बाघ, तेंदुए और गुलदार जंगल छोड़ गाँव, क़स्बों और शहरों में घुस रहे हैं। मगरमच्छ और घड़ियाल अब कहीं भी बहकर आ जाते हैं तो यही हाल साँपों का भी है। ये सब अपने साथ अनेक वायरस और बेक्टीरिया भी ला रहे हैं और नई नई बीमारियों को फैला रहे हैं जो अब तक इंसानों में नहीं मिलती थीं। इधर स्वाइन फ्लू (सुअर से इंसान में फैलने वाली बीमारी ) , मंकी पिक (बंदर से इंसान में फैलने वाली बीमारी) , चिकन पॉक्स( मुर्गी - मुर्ग़ों से इंसान में फैलने वाली बीमारी) , चाँदीपूरा वाइरस, डेंगू , चिकनगुनिया, मलेरिया आदि मच्छर जनित बीमारियों लगातार क़हर ढा ही रही हैं। इन सब बीमारियों के कारण हज़ारों लाखों लोग असमय मर भी रहे हैं। 

   ऐसा क्यों हो रहा है क्या आप जानते हैं ?

क्योंकि - 

१) हम इंसान इन जानवरों के घर यानि जंगल को लीलते जा रहे हैं। जब उनको जंगल में जगह नहीं मिलेगी , उनकी हैबिटेट छिनेगी तो वो बस्तियों में घुसेंगे ही क्या हम तैयार हैं जंगलों को नहीं काटने के लिए?

२) जो वायरस और बेक्टीरिया जानवरों के शरीर में रहते हैं वो अब उनके साथ बस्तियों में पहुँच रहे हैं। किंतु उनसे लड़ने की हमारे स्वास्थ्य विभागों की कोई तैयारी है ही नहीं। ऐसे में ये बड़ी बड़ी महामारियों को जन्म देने में सक्षम हैं।

३) जलवायु परिवर्तन के कारण धरती के बढ़ते तापमान ने इंसानों को तरह जानवरों , जलचरों और कीट पतंगों को बैचेन कर दिया है। ठंडी जगह की तलाश में मछली ,जानवर और पक्षी सब भाग रहे हैं और यह भागदौड़ इंसानों से कई गुना ज़्यादा है। ऐसे में आने वाले भविष्य में चुनौतियाँ और बड़ी होने जा रही हैं।

४) हम लगातार देख रहे हैं कि गर्मी बढ़ते जाने से छोटे छोटे कीट पतंगे और पशु पक्षी व मछलियों की प्रजातियाँ समाप्त होती जा रही हैं जिससे ईकोतंत्र बिगड़ रहा है और हम संकटों में घिरते जा रहे हैं।

५) धरती का तापमान हमारे पेट्रोल, डीज़ल, गैस, कोयला और मांस के अत्यधिक उपयोग करते जाने के कारण बढ़ रहा है। उस पर बढ़ती जनसंख्या सभी संसाधनों को लील रही है। बस एक दो दशकों की बात है और हम पायेंगे कि प्रकृति बहुत तेज़ी से सिमट रही है और जल प्रलय बढ़ रही है। क्या हम और आप रोक पायेंगे इसे या समा जाएँगे बढ़ते जल प्रवाह में ?


अनुज अग्रवाल

संपादक , डायलॉग इंडिया

www.dialogueindia.in

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