भाजपा की हार और रार का कारण मोदी शाह की नीति
“सबका साथ - अपनों का विकास”
- अनुज अग्रवाल, संपादक , डायलॉग इंडिया
१) अमित शाह टिकिट वितरण में मनमानी व पैसों का खेल - जानबूझकर लोकप्रिय व आंतरिक सर्वे में एक नंबर रहे नेताओं को टिकिट नहीं दी गई ताकि वे भविष्य में चुनौती न बन सकें)
२) पुराने भाजपाइयों को निपटाने की ज़िद व ज़मीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा व यस बॉस शैली वाले नेताओं को टिकिट बाँटे गए। मोदी - शाह की नई भाजपा खड़ा करने की ज़िद। ( इसीलिए संघ , योगी, वसुंधरा व गडकरी की टीम द्वारा सारे चुनावी समीकरण बिगाड़ दिए गए)
३) बाहरी दलों से आयातित उम्मीदवारों पर भरोसा और चुनाव प्रचार में ग़लत मुद्दों का चयन।
४) हिंदुत्व के मुद्दे व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को दरकिनार करना व अक्षम नडडा को पार्टी अध्यक्ष बनाना।
५) जाटों के बाद राजपूतों व मराठाओं को नाराज़ करना। बड़े स्तर पर कल्याणकारी कार्य करने के बाद भी मुस्लिम, सिख व ईसाइयों में मोदी से नफ़रत।
५) पिछले दस वर्षों में केंद्र व भाजपा शासित राज्यों में आधे से अधिक ठेके गुजरातियों को देना और फिर उनके द्वारा बिना कुछ किए आधे रेट पर आउटसोर्स कर देना
६) कमीशन व भ्रष्टाचार का बोलबाला
७) अश्लीलता, व्यभिचार, ड्रग्स, नशेबाजी, पोर्न , सट्टा आदि पर लगाम न लगा पाना
८) युवाओं के मुद्दे जैसे रोज़गार, पेपर लीक, प्रवेश परीक्षाओं में गड़बड़ी व दिशाहीनता, अग्निवीर, महँगी होती प्राइवेट शिक्षा आदि पर कोई प्रभावी नीति का अभाव
९) कोविड व उसके बाद के परिदृश्य में बीमारियों व आकस्मिक मौत से लगभग हर घर में उभरी परेशानियों व आर्थिक चुनौतियों का समाधान न दे पाना
१०) न्यायिक सुधार न लागू कर पाने के कारण न्यायपालिका की मनमानी और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ व्यापक अभियान चलाने के बीच पार्टी व सरकार के लोगों द्वारा आकंठ भ्रष्टाचार । केंद्र व भाजपा शासित राज्यों की नौकरशाही व जाँच एजेंसियो की मनमानी व लूट पर कोई नियंत्रण नहीं।
- अनुज अग्रवाल, संपादक , डायलॉग इंडिया
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