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नई लोकसभा के लिए चल रहे चुनाव के बाद किस पार्टी का राम नाम सत्य होगा ,ये कहना कठिन है ? इस समय देश में जनता से जुड़े मुद्दे नदारद हैं। सरकार की उपलब्धियों पर कोई चर्चा नहीं हो रही। केवल और केवल राम विमर्श के केंद्र में हैं। सत्तारूढ़ भाजपा राम की हिजगरी है और पूरे दमखम से दूसरे राजनीतिक दलों को राम विरोधी बता रही है। मजे की बात ये है कि राम जी खामोश के साथ मंदिर से ही तमाशा देख रहे हैं।
देश में तीसरे चरण का मतदान आसमान से बरसती आग के बीच हुआ है। पहले दो चरणों के मतदान से निराश सत्तारूढ़ दल ने मतदान का प्रतिशत बढ़ने के लिए अपने तमाम मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों,विधायकों और सांसदों के साथ ही पदाधिकारियों की कान -कुच्ची की थी लेकिन नतीजा ' 'ढाक ' के तीन पात ही रहा।देश के दो-दो मुख्यमंत्रियों को जेल में डालने के बाद भी हालात बदलते नहीं दिखाई दे रहे । सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ असंतोष अब खुलकर प्रकट हो रहा है ,हालाँकि आज भी झारखंड में मंत्री के कारिंदों के घर से करोड़ों रुपया बरामद हो रहा है। मध्यप्रदेश में जब शिवराज सिंह चौहान की सरकार थी तब इसी तरह जल संसाधन विभाग के एक प्रमुख सचिव के घर से भी नोटों की बरामदगी हुई थी । एक मंत्री के बच्चे के स्कूली बस्ते से नोटों की बरसात सबने देखी थी ,लेकिन किसी का कुछ नहीं बिगड़ा। कम से कम मंत्री और मुख्यमंत्री तो जेल नहीं गए।
इस चुनाव का सबसे महत्वपूर्ण पहलू ये है कि सत्तारूढ़ दल की और से ये चुनाव संघ परिवार के बजाय मोदी परिवार लड़ रहा है । मोदी परिवार अचानक संघ परिवार से बड़ा हो गया है। पार्टी का संघ दीक्षित कार्यकर्ता भी अब अपने आपको संघ परिवार का सदस्य कहने के बजाय मोदी परिवार का सदस्य कहने में गर्व अनुभव करता है। अचानक बौने हुए संघ परिवार ने इसी हताशा की वजह से अगले साल होने वाले संघ की स्थापना के शताब्दी समारोह का आयोजन रद्द कर दिया है। अब संघी घर बैठे हैं या संघ छोड़कर मोशा के तलवे सहला रहे हैं। खुद संघ प्रमुख को समझ में नहीं आ रहा कि वे इस स्थिति में क्या करें ? संघ भाजपा के कांग्रेसीकरण को लेकर भी खिन्न है ,लेकिन करे तो क्या करे ?
इस समय देश चौराहे पर खड़ा है। मुद्दे नदारद हैं और चारों तरफ सिर्फ रामलीला दिखाई जा रही है । सवाल किये जा रहे हैं की किसने रामलीला देखी और किसने नहीं। किसने मंदिर जाकर लंबलेट होकर तस्वीर खिंचवाई और किसने नहीं।अब तिरंगे राष्ट्रिय ध्वज की नहीं केसरिया या भगवा ध्वज की फ़िक्र की जा रही है। राम को लेकर इतनी दुकानदारी तो त्रेता में भी नहीं की गयी थी । राम का जिस तरह से वनवास हुया था ,उसी तरह राजतिलक भी हो गया था। कोई हल्ला-हंगामा नहीं हुआ था । किसी को राम भक्त होने या न होने का प्रमाण-पत्र नहीं दिया गय। लेकिन कलियुग के मौजूदा कालखंड में राम मंदिर के बजाय भाजपा की मुठ्ठी में कैद हो गए हैं। राम चरित गाने वाले गोस्वामी तुलसीदास और सबसे बड़े राम रसिया हनुमान जी भौंचक हैं राम के नए ठेकेदारों को देखकर। उन्हें लगता है कि जैसे भारत का मतदाता दस साल पहले भ्रमित हो गया था वैसे ही कहीं राम जी भी भ्रमित न हो जाएँ।
अजीब बात ये है कि जो सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ बोलने की हिमाकत दिखा रहा है उसे लगातार जेल में रखने के पुख्ता बंदोबस्त किये जा रहे है। मिस्टर अरविंद केजरीवाल पर अब आरोप है कि उन्होंने आतंकी संगठन से 134 करोड़ रूपये लिए। राजभवन ने इस शिकायत की जांच एनआईए से करने के लिए खतो-किताबत की है। मुमकिन है कि आरोप सच हों और मुमकिन है कि न भी सच हो। मनगढ़ंत हों ताकि केजरीवाल को जेल से बाहर आने से रोका जा सके। भाजपा झारखण्ड से लेकर पूरे देश में आलमगीर आलम और उनके सचिवों तथा उनके नौकरों की तलाश में लगी है। ताकि चुनाव के बाकी चार चरणों में कुछ खेला किया जा सके।
कांग्रेसी से भाजपाई हुए आचार्य प्रमोद कृष्णम की मानें तो चार जून के बाद कांग्रेस का विभाजन हो जाएगा। आचार्य जी को कांग्रेस की बड़ी चिंता है। कांग्रेस विभाजित होगी ,इसका इल्हाम उनके आराध्य ने शायद उन्हें कराया है। उन्हें ये पता नहीं है कि 4 जून के बाद संघ परिवार और मोदी परिवार का क्या होगा ?दोनों का विलय होगा या विभाजन, प्रमोद सर नहीं बता सकते ,क्योंकि वे सचमुच कुछ जानते ही नहीं है। वे अब राम से ज्यादा मोदी जी के भक्त हैं। मोदी भक्तों कि संख्या में इजाफा होने का मतलब ये बिलकुल नहीं है कि देश में राम जी की सेना भी बढ़ रही है। बल्कि राम जी चिंतित होंगे कि कहैं मोदी जी के साथ उनके भक्तों कि मण्डली भी तो कहीं 4 जून के बाद झोला उठाकर हिमालय न निकल जाये।
आइए ये समय देश का भविष्य चुनने के लिए मतदान करने का है। मोदी जी को चुनने या न चुनने का नहीं। मोदी जी प्रधानमंत्री बनें या न बनें इससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है । आखिर कोई तो प्रधानमंत्री बनेगा ही ? किसी और की किस्मत में भी राजयोग तो होगा ही। प्रधानमंत्री किसी दल का हो इससे कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ता है कि वो मोदी जी जैसा है या नेहरू जी जैसा। नायक होगा या अधिनायक ? राम-राम ही जपेगा या कभी जन-गण-मन की भी बात करेगा। देश को भी बदलेगा या अपने कपडे ही बदलता रहेगा ? राजधर्म को [पहचानेगा भी या नहीं ?
देश कि जनता को मंथरा दर्शन से बाहर निकलकर फैसला करना चाहिए। कुमति को सुमति में बदलना चाहिए ,क्योंकि नाना प्रकार की सम्पत्ति वहीं होती है जहाँ सुमति हो। जहाँ कुमति होती है वहाँ विपत्तियां होतीं है । 85 करोड़ भूखे होते हैं। 20 करोड़ वे लोग होते हैं जिन्हें मोदी जी और उनकी पार्टी भारतीय मानती ही नहीं। ये 20 करोड़ लोग आज हौआ बनाकर बहुसंख्यकक हिन्दुओं के सामने खड़े किये जा रहे हैं। इनके नाम पर हिन्दू महिलाओं को मंगलसूत्रों के लूटने का भय दिखाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि यदि भाजपा सत्ता में न रही तो ये देश मिट जाएग। बर्बाद हो जाएगा। जबकि हकीकत ये नहीं है । भाजपा 1980 में जन्मी है । सत्ता में दूसरी बार 2014 में आयी है। उसके जन्म से पहले भी ये देश था ,आगे भी रहने वाला है । इसलिए देश की फ़िक्र कीजिये व्यक्तियों की नहीं।
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