मेरी कल्पना
मेरी कल्पना बहुत सुंदर, मनमोहक।
मेरी कल्पना सबसे प्यारी, राजदुलारी।
मेरी कल्पना परिवार में रहते लोगों की तरह एकजुट।
मेरी कल्पना नहीं सोच सकते, उससे कहीं ज्यादा मासूम है।
मेरी कल्पना बिना कहें सब कुछ बयाँ कर देती हैं।
मेरी कल्पना किसी को कहां? समझ आती है।
मेरी कल्पना चांद-चकोर जैसी है।
मेरी कल्पना सूरज की तरह तेज़ है।
मेरी कल्पना समुंदर की तरह गहरी है।
मेरी कल्पना धरती माँ की तरह गोल-मटोल है।
मेरी कल्पना नीले आकाश की तरह नशीली है।
मेरी कल्पना अग्नि की लौ जैसी है।
मेरी कल्पना गंगा मां की तरह पवित्र है।
मेरी कल्पना नैसर्गिक हवाओं की तरह साफ़ है।
मेरी कल्पना ऐनक की तरह स्पष्ट है।
मेरी कल्पना कई लोगों से परेह है।
मेरी कल्पना विचार बद्ध है।
मेरी कल्पना मानों तो समीक्षक है।
मेरी कल्पना बुरे लोगों को सही राह दिखाने योग्य है।
मेरी कल्पना मां की तरह ममतामय है।
स्वरचित, मौलिक
दुर्वा दुर्गेश वारिक 'गोदावरी'
गोआ
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