भदोही में तीसरी बार खिलेगा कमल या इण्डिया लिखेगा इतिहास....?

डॉ विनोद को जाति, ललितेशपति को विरासत तो हरिशंकर को स्थानीय का भरोसा

मायावती का हाथी मारेगा दहाड़ या किसका होगा बेड़ापार

भदोही में 25 मई को छठवें चरण के लिए डाले जाएंगे वोट

भदोही, 24 मई । पूर्वांचल की सबसे हॉट सीट भदोही की चर्चा पूरे प्रदेश में हैं। इस सीट पर दिल्ली, लखनऊ और पश्चिम की निगाहें टिकी हैं। यहाँ सीधा मुकाबला भाजपा -निषाद और इण्डिया गठबंधन में है। बसपा को कम कर आंकना बड़ी भूल होगी। बदली सियासी स्थिति में भाजपा के लिए दिल्ली का सफर आसान नहीं है। मुकाबला कांटे का है। अब ऐसे में सवाल उठता है भाजपा क्या तीसरी बार जीत कर मिर्जापुर -भदोही में कांग्रेस के नाम तीन बार दर्ज जीत का इतिहास तोड़ेगी या मोदी के विकास और हिंदुत्व का इतिहास दुहराएगी।

भदोही में मतदान की सारी तैयारियां हो हो चुकी। 25 मई यानी शनिवार को यहां छठवें चरण के लिए मतदान होगा। पोलिंग पार्टियों रवाना किया जा रहा है। सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए हैं। पोलिंग बूथ और मतदाताओं की हर सुविधा का ख्याल रखा गया है। बुजुर्ग और विकलांग मतदाताओं के लिए आयोग के निर्देश पर जिलानिर्वाचन अधिकारी विशाल सिंह खास सुविधा उपलब्ध कराई गई। उन्होंने में क्लीन स्वीप के लिए अच्छी -ख़ासी मेहनत किया है।जनपद में कई स्थानों को मॉडल बूथ बनाए गए। भदोही में कुल 20,09,146 मतदाता है। इसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 11,29,245 है जबकि की महिला मतदाता 8,79,901 हैं। थर्ड जेंडर में 97 वोटर है।

भदोही में इस बार क्या भारतीय जनता पार्टी का हिंदुत्व कार्ड काम करेगा। मोदी का मैजिक क्या इतिहास रचने जा रहा है। राम मंदिर निर्माण का क्या मतदाताओं पर बड़ा असर पड़ेगा। बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में मोदी की जनकल्याणकारी योजनाओं जिसमें प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री स्वास्थ्य बीमा, जल जीवन मिशन, मुक्त राशन योजना, उज्जवला योजना और किसान पेंशन योजना का महिला मतदाताओं पर कितना जादू डाल पाएगा। लेकिन सरकार की इन योजनाओं ने महिलाओं को काफी प्रभावित किया है। भजपा क्या मिर्जापुर भदोही संसदीय सीट का  वह इतिहास तोड़ेगी जिसमें कांग्रेस ने लगातार तीन बार जीत दर्ज किया। 1952-57 -जाॅन एन विल्सन,1957-62 - जाॅन एन विल्सन, 1962-67 पं श्यामधर मिश्र मिर्जापुर -भदोही से निर्वाचित हुए। अगर तीसरी बार भदोही से भजपा जीतती है तो यह उसकी हैट्रिक होगी। क्योंकि वह 2014 से 2019 तक जीत दर्ज किया है। 

भदोही में साल साल 2014 में जब मोदी लहर का जलवा था तो वीरेंद्र सिंह मस्त 1,58,141 मत से जीत हासिल किया। उन्हें कुल 403695 वोट मिले। उन्होंने 41.12 मत हासिल किया। जबकि पूर्वमंत्री बसपा उमीदवार पंडित पंडित राकेशधर त्रिपाठी 245554 वोट मिले। उन्हें कुल 25.01 फीसदी वोट मिले। लेकिन साल 2019 में भाजपा चुनाव तो जीत गई लेकिन जीत का अंतराल बेहद कम था। लोकसभा के लिहाज से यह बेहतर प्रदर्शन नहीं कहा जा सकता।जितने वोटो के अंतराल से वीरेंद्र सिंह मस्त ने चुनाव जीता था वह करिश्मा रमेश चंद्र बिंद नहीं कर पाए।

 भाजपा उम्मीदवार डॉक्टर रमेश चंद बिंद सिर्फ  43615 और से जीत हासिल किया। उन्हें कुल 510029 यानी 49.5 फीसदी वोट मिले। जबकि पूर्वमंत्री पंडित रंगनाथ मिश्र जिन्हें बसपा ने चुनावी मैदान में उतारा था उन्हें 466414 यानी 45.27 फीसदी वोट मिले। 2014 के मुकाबले जीत का अंतर तकरीबन 1 लाख 10 हजार कम हो गया। 2014 और 19 के मुकाबले  इंडिया गठबंधन एनडीए को कड़ा मुकाबला दे रहा है। ऐसी स्थिति में कहां नहीं जा सकता है कि ऊंट किस करवट बैठेगा। भदोही में बेहद कड़ा मुकाबला है।

स्वतंत्र लोकसभा भदोही में साल 2014 और साल 2019 में बहुजन समाज पार्टी सेकंड फाइटर रही है। यह स्थित दलित और ब्राह्मण वोटो को मिलकर बनी है। लिहाजत चुनावी मैदान में  भदोही के वर्तमान सांसद रमेशचंद्र बिंद जहां समाजवादी पार्टी की बाहों में है। वह अनुप्रिया पटेल के सामने मिर्जापुर से चुनाव लड़ रहे हैं। जबकि भदोही में भाजपा ने डॉक्टर विनोद बिंद को चुनावी मैदान में उतारा है। इस बार भाजपा ने जाति पर ही दाँव लगाया है। जबकि इंडिया गठबंधन की तरफ से तृणमूल कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी के परपोते ललितेश  त्रिपाठी को चुनावी जंग में उतारा है। इंडिया गठबंधन की तरफ से ब्राह्मण चेहरा उतरने से चुनावी स्थितियां बदल गई है।

क्योंकि दलित और ब्राह्मण मिलकर भदोही में दूसरी पायदान पर रहे हैं। मुस्लिम यादव और अन्य ओबीसी के साथ अगर ब्राह्मण आधे पर विभाजित हुआ तो चुनावी गणित बदल सकती है। क्योंकि भाजपा के डॉ रमेश चंद्र बिंद सिर्फ 4.2 फ़ीसदी होठों से जीत हासिल किया था। भाजपा और बसपा के बीच वोट फीसद का अंतर देखें तो यह बहुत बड़ा नहीं था। ऐसी हालत में भाजपा को कड़ा मुकाबला करना पड़ रहा है।

भाजपा के डॉक्टर विनोद बिंद जहां बाहरी उम्मीदवार हैं वही ललितेश त्रिपाठी भी बाहरी। जबकि बसपा के हरिशंकर चौहान स्थानीय उम्मीदवार। जिसका लाभ उन्हें अधिक से अधिक मिलेगा। लेकिन बहुजन समाज पार्टी को कम कर आंकना यह भूल होगी।  बसपा यहां मोदी लहर में भी साल 2014 और 2019 में दूसरे पायदान पर रही है। हालांकि इस उसने ब्राह्मण उम्मीदवार नहीं उतारा है। ब्राह्मण उम्मीदवार न होने से उसके साथ ब्राह्मण न के बराबर दिखता है। इस पूरे चुनाव में ब्राह्मण निर्णायक भूमिका में होगा। अब वह शंख बजाएगा किसके लिए। मोदी के विकास और हिंदुत्व लिए, ममता यानी ललितेश त्रिपाठी की विरासत और विकासवादी सोच के लिए या फिर मायावती के दलित उत्थान या सामाजिक बदलाव के लिए। फिलहाल यह ब्राह्मण पर निर्भर करेगा। लेकिन आसान नहीं है डगर पघट की। दिल्ली सबके लिए दूर है, लेकिन कोई तो जाएगा।

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