*बलरामपुर में राज्य विश्व विद्यालय निर्माण रोकने को लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में दायर दो याचिकाओं में से एक खारिज* 
 *दूसरी याचिका में जिला मजिस्ट्रेट द्वारा प्रभावी विधि विशेषज्ञों की राय लेकर हाईकोर्ट में की गई प्रभावी पैरवी* 
 *जिला मजिस्ट्रेट ने स्वयं विधि के तहत मा0 उच्च न्यायालय में सारभूत अनुदेश दायर किया* 
 *विश्व विद्यालय बलरामपुर से नहीं जाने दिया जाएगा, इसके लिए प्रशासन कटिबद्ध-डीएम*
निर्माणाधीन मां पाटेश्वरी देवी राज्य विश्व विद्यालय को जनपद बलरामपुर से निरस्त कर मण्डल मुख्यालय के जनपद में बनवाये जाने को लेकर मा0 सुप्रीम कोर्ट एवं मा0 उच्च न्यायालय में  दायर की गई दो याचिकाओं में से एक मा0 सुप्रीम कोर्ट में खारिज है तथा दूसरी याचिका मा0 हाई कोर्ट लखनऊ खण्डपीठ में विचाराधीन है।
   बताते चलें कि मा0 उच्चतम न्यायालय के एक अधिवक्ता द्वारा मा0 सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर मांग की गई थी कि जनपद बलरामपुर में बन रहे राज्य विश्वविद्यालय को निरस्त कर मण्डल मुख्यालय के जनपद में बनवाया जाये। मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा याचिका को खारिज करते हुए विपक्षियों को निर्देशित किया कि वे मा0 उच्च न्यायालय इलाहाबाद में वाद योजित कर अपनी पैरवी करें जिसके क्रम में विपक्षियों ने मा0 उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। मामले मेें प्रभावी कानूनी विशेषज्ञों एवं मजिस्ट्रेटों की राय एवं स्वयं के विवेक से जिला मजिस्ट्रेट श्री अरविन्द सिंह द्वारा माननीय उच्च न्यायालय में पुरजोर पैरवी की जा रही है।
 माननीय उच्च न्यायालय में जिला मजिस्ट्रेट श्री अरविन्द सिंह द्वारा कानूनी बिंदुओं और भौतिक तथ्यों के आधार पर मां पाटेश्वरी देवी विश्वविद्यालय बलरामपुर का बचाव करते हुए एक बहुत ही तीखा तर्क दायर किया गया है जिसमें यह तथ्य माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करते हुए कहा गया है कि संविधान के तीन अंश यथा-कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका अच्छी तरह से स्थापित संवैधानिक सिद्धांत, जनादेश और तीन विंगों की सीमाओं को परिभाषित करते हैं। एक क़ानून जब तक कि वह संविधान के किसी भी प्रावधान के दायरे से बाहर न हो, रिट कोर्ट की समीक्षा का विषय नहीं हो सकता। 
  दिसंबर 2023 में इसे प्रभावी बनाने के लिए यूपी विधानसभा द्वारा एक कानून पारित/संशोधित किया गया था। इसी प्रकार कार्यकारी सार्वजनिक नीति न्यायपालिका का क्षेत्र नहीं है जब तक कि नीति संविधान के किसी प्रावधान के दायरे से बाहर न हो या इसमें किसी गलत इरादे की बू न आती हो। यहां ऐसा कुछ नहीं हुआ। जिला प्रशासन द्वारा अपना पक्ष रखते हुए कहा गया कि भारत संघ की सार्वजनिक नीति के अनुसार, बलरामपुर एक आकांक्षी जिला है और रजिस्ट्रार की नियुक्ति के बाद विश्वविद्यालय अब एक पूर्ण उपलब्धि बन गया है।
मण्डल मुख्यालय के जनपद में एक विश्वविद्यालय और बलरामपुर में एक विश्वविद्यालय ‘‘जीरो सम गेम’’ नहीं है। उच्च शिक्षा का अधिकार संविधान या सुप्रीम कोर्ट के किसी भी केस कानून के अनुसार मौलिक अधिकार *(Fundamental Right)* नहीं है। इसलिए यह रिट सुनवाई योग्य नहीं है क्योंकि यह याचिकाकर्ता के किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है। याचिकाकर्ता का इस मामले में कोई अधिकार नहीं है तथा यह एक जनहित याचिका नहीं बल्कि एक निजी हित याचिका है।
  जिला मजिस्ट्रेट एवं जिला प्रशासन द्वारा कहा गया कि जनपद में माँ पाटेश्वरी देवी राज्य विश्वविद्यालय, बलरामपुर के निर्माण स्थल से जनपद गोण्डा की सीमा की दूरी लगभग 5 कि0मी0 एवं जनपद श्रावस्ती की सीमा की दूरी लगभग 14 कि0मी0 है, क्रमशः लगभग 5 मिनट में गोण्डा बार्डर एवं 15 मिनट में श्रावस्ती बार्डर स्थित है। इस प्रकार देवी पाटन मण्डल में स्थापित किया जा रहा राज्य विश्वविद्यालय, मण्डल के अन्य तीनों जनपदों के मध्य में होने के साथ-साथ उनसे निकटतम जुड़ा हुआ है। इसलिए विपक्षियों द्वारा सस्ती लोकप्रियता के लिए याचिका दायर की गई है जो कि निरस्त किये जाने योग्य है। जिलाधिकारी ने बताया कि मा0 न्यायालय में प्रभावी पैरवी की जा रही है जिससे ताकि कुत्सित प्रयास कुचला जा सके। उन्होंने कहा कि विश्व विद्यालय मण्डल मुख्यालय के जनपद में भी बने, इससे उन्हें कोई आपत्ति नहीं है परन्तु बलरामपुर की पहचान बन चुके मां पाटेश्वरी देवी विश्व विद्यालय को यहां से किसी भी दशा में नहीं जाने दिया जाएगा।


           हिन्दी संवाद न्यूज़ से
               वी. संघर्ष✍️
           9140451846
                बलरामपुर। 

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