राजकुमार गुप्ता
मथुरा। हमलोग पत्रकारों से उम्मीद करते हैं कि वो सच लिखें, अन्याय के खिलाफ लड़ेगे,सत्ता से सवाल पूछें, गुंडे, अपराधियों और माफियाओं का काला चिट्ठा खोल के रख दें और लोकतंत्र ज़िंदाबाद रहे। लेकिन कभी किसी ने पूछा की आप के जीवन यापन की समस्याएं क्या हैं? सभी उम्मीद करते हैं कि पत्रकार हमारा समाचार अख़बार में प्रकाशित कर दें लेकिन राष्ट्रवादी लोगों को छोड़ कर ज्यादातर उनकी सहायता कोई नहीं करता। बल्कि उनका इस्तेमाल अक्सर सयाने लोग कर ही लेते हैं। इसलिए सर्वसमाज एवं देशहित में सभी से निवेदन हैं कि अगर लोकतंत्र को मजबूत बनाना हैं तो राष्ट्रहित में काम करने बाले पत्रकारों का साथ दीजिए।

कभी पत्रकारों से पूछिए की उनकी सैलरी क्या है ? क्या कभी पूछा की पत्रकारों के घर का खर्च कैसे चलता है? कभी पूछिए की माता पिता की मेहंगी मेहंगी  दबाईया और इंजेक्शन कैसे आते हैं? कभी पूछिए उनके रोज के खर्चे कैसे चलते हैं ? कभी पूछिए  उनके बच्चों के स्कूल की पढाई कैसे होती है? कभी मिलिए उनके बच्चों से और पूछिए उनके कितने शौक पूरे कर पाते है?

कभी पूछिए की अगर कोई खबर ज़रा सी भी इधर उधर लिख जाएं और कोई नेता, विभाग, सरकार या कोई रसूखदार व्यक्ति मांग लें स्पष्टीकरण तो कितने मीडिया हाउस अपने पत्रकारों का साथ दे पाते हैं? अगर मुकदमा लिख जाये तो कितने लोग उसकी कोर्ट में जमानत देने आते हैं? कितने संघठन उसके साथ होते हैं? कभी पूछिए की अगर पत्रकार को जान से मारने कि धमकी मिलती है तो प्रशासन उसे कितनी सुरक्षा दे पाता है?

कभी पूछिए की अगर कोई पत्रकार दुर्घटना का शिकार हो जाता है और नौकरी लायक नहीं बचता तो उसका मीडिया हाउस या वो लोग जो उससे सत्य खबरों की उम्मीद करते हैं वो कितने काम आते हैं और अगर किसी पत्रकार की हत्या हो जाती है तो कितना एक्टिव होता है शासन - प्रशासन एवं कानून पुलिस और फलाने ढिकाने बड़े - बड़े संगठन? कभी पूछिएगा प्रिंट मीडिया के पत्रकारों का रूटीन, दिनभर फील्ड और शाम को ऑफिस आकर खबर लिखते लिखते घर पहुंचते पहुंचते बजते हैं रात के 09, 10, 11, 12 ... सोचिए कितना समय मिलता होगा उनके पास अपने माता - पिता बच्चों, बीबी और परिवार के लिए।

कोविड जैसी महामारी में भी पत्रकार ख़ासकर फोटो जर्नलिस्ट अपनी जान पर खेलकर न्यूज कवर कर रहे थे सोचिएगा। बबाल हों,आग लग जाए, भूकंप आ जाएं, गोलीबारी हो रही हो, घटना, दुर्घटना हो जाएं सब जगह उसे पहुंच कर न्यूज कवरेज करनी होती है। वहीं, पत्रकारिता की चकाचौध देख कर आपको लगता होगा कि पत्रकारों के बहुत जलवे होते हैं ? लेकिन ऐसा नहीं है। कुछ गिने चुने पत्रकारों की ही मौज है, बाकी ज़्यादातर अभी भी संघर्ष में ही जी रहे हैं। क्या आप जानते हैं कि कितने पत्रकार दो पहिया वाहनों से चल रहे हैं ? कितने पत्रकारों के पास चार पहिया वाहन हैं ? पेट्रोल और गाड़ी का मेंटिंन्स का खर्चा कहा से आता हैं?

कितने पत्रकारों के पास बड़े - बड़े घर हैं? और कितने पत्रकार किराये के मकान में रहते हैं? और अपना और अपने अपनों का इलाज़ कराने के लिए कितने पत्रकारों के पास जमा पूंजी है? लेकिन आजकल अक्सर लोगों द्वारा सभी पत्रकारों को ग़लत कहा जाता हैं लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं हैं। कुछ बहुत अच्छा और बेहतरीन काम कर करें हैं। अगर पार्ट टाइम कहीं जॉब करने बाले किसी पत्रकार के पास अच्छा फोन, घड़ी, कपड़े, घर, गाड़ी दिख जाए तो उसके लिए लोग कहने लगते हैं कि ग़लत काम से बहुत पैसा कमा रहा है'।

भाई साहब क्यों नहीं करें, पार्ट टाइम जॉब। उसे हक हैं दूसरी जगह काम करके अच्छे कपडे, फोन, घर, गाड़ी इस्तेमाल करने का आराम से सोचिएगा फिर चर्चा करिये। और हां, इस महंगाई के दौर में जो पत्रकार बेहतरीन काम कर रहे हैं, जूझ रहे हैं, एक - एक खबर के लिए वो न सिर्फ बधाई के पात्र हैं, बल्कि उन्हें प्रणाम कीजिए और एक बार उनके बारे में आराम से विचार अवश्य कीजिए। अतः सभी से विनम्र निवेदन हैं कि समाज और राष्ट्रहित में समाचार लिखने बाले पत्रकारों का साथ दें तभी हमलोग लोकतंत्र को और मजबूत बना सके और लोकतंत्र ज़िंदाबाद रहे।

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