एम एल के पी जी कॉलेज सभागार में भारतीय भाषा समिति शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार द्वारा अनुदानित एम एल के पी जी कॉलेज बलरामपुर तथा महाविद्यालय के बीएड एवं शिक्षाशास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में गुरुवार को एकदिवसीय जगद्गुरू श्री शंकराचार्य व्याख्यान माला का आयोजन किया गया। व्याख्यान माला में वक्ताओं ने जगद्गुरू श्री शंकराचार्य के दर्शन एवं जीवन कार्य मे संस्कृत एव भारतीय भाषाओं की भूमिका पर विस्तृत जानकारी दी।
व्याख्यान माला का शुभारंभ मुख्य व्याख्याता प्रो0 द्वारकानाथ वरिष्ठ आचार्य एव पूर्व विभागाध्यक्ष दर्शनशास्त्र विभाग दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय ,पूर्व अध्यक्ष संस्कृत विभाग एम एल के कॉलेज डॉ माधवराज द्विवेदी ,डॉ श्रीनिवास मिश्र सहायक आचार्य दर्शनशास्त्र देवरिया, कार्यक्रम अध्यक्ष प्राचार्य प्रो0 जे पी पाण्डेय, आई क्यू ए सी समन्वयक प्रो0 तबस्सुम फरखी, संयोजक प्रो0 राघवेंद्र सिंह,सह संयोजक डॉ दिनेश मौर्य, आयोजन सचिव प्रो0 श्रीप्रकाश मिश्र ने दीप प्रज्वलित एव मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण करके किया। इसके पश्चात बीएड की छात्राओं ने सरस्वती वंदना व स्वागत गीत प्रस्तुत कर व्याख्यान माला की औपचारिक शुरुआत की। उपस्थित छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते हुए प्रो द्वारकानाथ ने जगद्गुरू श्री शंकराचार्य के आध्यात्मिक एवं भाषाई एकता के वाहक विषय के उद्देश्य को बताते हुए कहा कि ईश्वर सर्वत्र है, वह सभी मे व्याप्त है। शंकराचार्य धार्मिक आकाश के चमकते सितारे होने के साथ साथ विश्वमानव थे।आदि शंकराचार्य ने मात्र 32 वर्ष की अल्पायु में संपूर्ण भारतवर्ष का तीन बार पैदल भ्रमण कर बख़ूबी समझा और सतत साधना के बल पर प्रत्यक्ष अनुभव किया था। कदाचित यही कारण रहा कि वे राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के स्थाई, मान्य एवं व्यावहारिक सूत्र देने में सफल रहे। पूरब से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण तक राष्ट्र को एकता एवं अखंडता के सूत्र में पिरोने में उन्हें अभूतपूर्व सफलता मिली। डॉ माधवराज द्विवेदी ने भारत की एकता और एकात्मता में जगद्गुरू श्री शंकराचार्य के योगदान को बताया। डॉ श्रीनिवास मिश्र ने एकात्म मानववाद को समझाते हुए कहा कि मानव अभेद नहीं है। भारतीय ज्ञान परम्परा वैश्विक परंपरा है, एकत्व व अखंड परंपरा है। अद्वैतवाद पर ही चलकर विश्वगुरू बना जा सकता है। व्याख्यान माला के अध्यक्ष प्राचार्य प्रो0 पाण्डेय ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि भारत की संप्रभुता जन में निहित है। यह राज्य (स्टेट) में न होकर धर्म, समाज और संस्कृति में है। ध्यान रहे कि भारत के लिए धर्म कर्त्तव्य-बोध या आचरणगत सदाचार है। एकता एवं अखंडता के सूत्र व तत्त्व हमने राज्य एवं राजनीति में नहीं, अपितु धर्म, अध्यात्म एवं संस्कृति में खोजे और पाए हैं। धर्म एवं संस्कृति ही हमारी चेतना को झंकृत करती है। वही हमारी प्रेरणा के अजस्र स्रोत हैं। इसीलिए हमारे यहां आम धारणा है कि धर्म व संस्कृति जोड़ती हैं, राजनीति तोड़ती है। आयोजन सचिव प्रो0 श्रीप्रकाश मिश्र ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। सह आयोजन सचिव डॉ राम रहीस ने संक्षिप्त रिपोर्ट प्रस्तुत किया। व्याख्यान माला का संचालन समन्वय सह सचिव महाविद्यालय के एसोसिएट एन सी सी ऑफिसर लेफ्टिनेंट(डॉ) देवेन्द्र कुमार चौहान ने किया। इसके पूर्व प्राचार्य ,संयोजक व आयोजन सचिव के द्वारा अतिथियों को स्मृति चिन्ह व अंगवस्त्र भेटकर सम्मानित किया गया। समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।
इस अवसर पर प्रो0 अरुण कुमार सिंह, प्रो0 पी सी गिरि, प्रो0 मोहिउद्दीन अंसारी,प्रो0 वीणा सिंह,प्रो0 रेखा विश्वकर्मा,डॉ विमल प्रकाश,डॉ तारिक कबीर,डॉ प्रखर त्रिपाठी,डॉ आज़ाद प्रताप सिंह, डॉ सद्गुरु प्रकाश,डॉ आलोक शुक्ल, डॉ आशीष लाल,डॉ एस के त्रिपाठी, डॉ अनुज सिंह,सीमा सिन्हा, प्रतीची सिंह,श्रीनारायण सिंह,सीमा श्रीवास्तव, सीमा पांडेय,अविनाश मिश्र सहित कई लोग मौजूद रहे।
हिन्दी संवाद न्यूज़ से
वी. संघर्ष✍️
9140451846
बलरामपुर l
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubts, please let me know