अरबी कालेज उतरौला के प्रिंसिपल मौलाना मुफ्ती बैतुल्लाह ने बताया कि जिसने किसी रोज़ेदार को रोज़ा इफ्तार कराया उसे भी उतना ही सवाब मिलेगा जितना सवाब रोज़ेदार के लिए होगा,और रोज़ेदार के सवाब में से कोई चीज़ कमीं नही होगी।
जिसने किसी रोज़ेदार का रोज़ा इफ्तार कराया या किसी मुज़ाहिद को समान दिया,व दिलवाया तो उसको भी उसके बराबर सवाब मिलेगा। श्री मौलाना ने बताया कि
रोजेदार को इफ्तार कराना, एक गरीब और बे सहारा की मदद करने से अल्लाह तआला बहुत खुश होता है। और अपने बंदों को इसका इनाम देता है। यूं तो रमजान का पूरा महीना ही बरकतों वाला महीना है। मगर कुछ खास चीजों का एहतराम किया जाए, तो रोजेदारों को बे शुमार सवाब मिलता है।जो शख्स रोजेदार को इफ्तार कराता है अल्लाह उसे बे शुमार सवाब देता है। हदीस शरीफ़ में इस बात का जिक्र किया गया है, कि जो लोग रोजेदारों को खुशी से इफ्तार कराते हैं तो कयामत के दिन नबी ए करीम उसके इनाम के लिए सिफारिश भी करता है। उन्होंने यह भी कहा कि एक दफा कुछ लोग अल्लाह के रसूल के पास आए और पूछा कि जो गरीब हैं और रोजेदार को इफ्तार कराने की हैसियत में नहीं हैं वे कयामत के दिन आपके सिफारिशों से महरूम रह जाएंगे। इसका फायदा उन्हें भी होगा,जो अमीर होंगे, वह ज्यादा से ज्यादा रोजेदारों को इफ्तार कराकर सिफारिशों के हकदार बन जाएंगे। जवाब में मोहम्मद सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वसल्लम ने कहा कि इफ्तार का मतलब यह नहीं है कि किसी को भर पेट खिलाया जाए बल्कि रोजेदार को एक खजूर या एक घूंट पानी पिला देगा तब भी उसे वही दर्जा मिलेगा। मैं तो उसकी सिफारिश करूंगा ही साथ ही साथ अल्लाह तआला भी उसे बेशुमार सवाब से नवाजेगा।अल्लाह तआला के दरबार में कोई अमीर गरीब नहीं होगा। बल्कि उनका कद ज्यादा ऊंचा होगा जिसने अल्लाह और उनके रसूल के बताए हुए रास्ते पर चला होगा।जब लोग रोजा रखते हैं तो ईमान की पुख्तगी ही खाने पीने से बचाती है। किसी को पता नहीं चल सकता कि आप रोजा रखते हुए कुल्ली करते वक्त पानी हलक के नीचे उतार लें। या छिपकर कोई चीज खा लें। यह ईमान की पुख्तगी है कि रोजेदार खुद ही खाना पीना छोड़ देता है और उसका जेहन खुद ब खुद अल्लाह की तरफ हो जाता है। रोजेदार की पूरी कोशिश होनी चाहिए कि रमजान के महीने में ज्यादा से ज्यादा इबादत करें और झूठी बातोें से बचें।
इसके साथ ही गरीब, मजबूर और बेसहारा लोगों की मदद के लिए भी आगे आएं। रोजेदार भूखे प्यासे इंसान की हालत बेहतर समझ सकता है। इसलिए उसके अंदर गरीबों एवं मुफलिसों के प्रति हमदर्दी का जज्बा पैदा होता है।
असगर अली
उतरौला
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