राजकुमार गुप्ता
मथुरा । दिल्ली में एस आई मनोज तोमर को इसलिए बर्खास्त कर दिया गया क्योंकि उन्होंने सड़क पर बैठे हुए नमाजियों को हटाना चाहा और नमाजियों के न हटने पर उन्होंने जबरदस्ती धक्का मारकर हटाना चाहा बो भी एक एम्बुलेंस को रास्ता देने के लिए।तो मैं पूछना चाहता हूं कि एम्बुलेंस को रास्ता देना, किसी की जान बचाने में मदद करना क्या गुनाह है? कहा जा रहा है कि मनोज तोमर ने लात मारी नमाज़ी को।लात ही तो मारी कोई गोली तो नहीं मार दी?जान से तो नहीं मार दिया? मैंने तो बचपन में पढ़ा था कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है।मनोज तोमर को लात मारने का कोई शौक तो था नहीं,और शायद ऐसा बो करते भी नहीं यदि एंबूलेन्स न आई होती। अब मैं तो बहुत कन्फ्यूज हो गया हूं कि किसी की जान बचाने में मदद करनी चाहिए कि नहीं। अभी तक तो मैं कथाओं में हमेशा यही श्रोताओं से कहता था कि तीन गाड़ियों को देखते ही रास्ता देना।एक एंबुलेंस को देखते ही रास्ता दो क्योंकि उसमें गंभीर अवस्था में मरीज हो सकता है आपके थोड़े सहयोग से उसकी जान बच सकती है, दूसरी सेना की गाड़ी को तुरन्त रास्ता दो क्योंकि बो आपकी सुरक्षा में रहते हैं और तीसरी डॉ की गाड़ी को, क्योंकि डॉ दूसरे भगवान का नाम है।अब रही बात लात मारने की तो बचपन में मैंने यह भी सुना है कि लात के भूत बात से नहीं मानते।जब बात ही इनके समझ में आ जाती तो फिर ये सड़क पर नमाज क्यों पढ़ते? सड़क अशुद्ध होती है नमाज़ क़बूल कैसे हो जाएगी? मस्जिद के अन्दर जब जगह थी तो सड़क पर क्यों? मैं इन बुद्धिजीवियों से पूछना चाहता हूं कि आप हिन्दुस्तान की तरह पाकिस्तान या सऊदी अरब में सड़क पर नमाज पढ़ सकते हो या कभी पढ़ते हुए देखी है? फिर यह सब भारत में ही क्यों? बात नमाज के पढ़ने की नहीं,इनका मकसद स्पष्ट है कि हम जो जी चाहे करेंगे आप रोक सको तो रोको । फिर इनके आका चिल्लाने लगते हैं अल्पसंख्यक खतरे में।अब यह मत कहना कि आचार संहिता लग गई ऐसा नहीं कहना चाहिए।यह मैं नहीं कह रहा हूं पाकिस्तान के ही दो बुद्धजीवी इस बात को कह रहे हैं ।उसकी भी वीडियो भेज रहा हूं।
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubts, please let me know