मथुरा । जनपद का चुनावी इतिहास उठाकर देखा जाय तो बसपा कभी चुनाव जीती नही है, फिर भी मजबूत दल के रूप मै जानी जाती रही है। अभी हाल के नगर निगम चुनावों मैं बसपा कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को पछाड़ कर दूसरे नंबर पर रही। बसपा का कोर वोटर हर बार मायावती के नाम पर वोट देता रहा है । बहिन मायावती ने समाज का नाम रोशन किया है। अब धीरे- धीरे दलित समाज का मायावती से मोह भंग होता जा रहा है। बसपा सिर्फ नाम की दलितों की पार्टी रह गई है। इस बार भी सतीश चन्द्र मिश्रा ने मायावती को गुमराह कर दलितों को किनारे कर सवर्णों को टिकट वांट दी दलित समाज के लोगों को नजरंदाज किया। क्या मथुरा हो या आगरा की फतेहपुर सीकरी की सीट जिस पर हाथी का हमेशा मजबूत वोट बैंक रहा है फिर भी टिकट चंद लोगों के कहने पर दलित समाज को अपनामित करने का काम बसपा मै सवर्ण सिपहसालारों के द्वारा किया जाता रहा है। हमेशा से दलित के साथ मुस्लिम समाज का वोट मिलता रहा है।
मथुरा जनपद की लोकसभा सीट पर कमलकांत को टिकट देना बसपा के दलित नेताओं को रास नहीं आ रहा। कुछ दलित नेताओं ने नाम ना छापने की शर्त पर कहना हैं । कमलकांत को पहले भी पार्टी ने टिकट देकर अपना भरोसा जताया किंतु कमल कांत कभी भी दलितों के साथ खड़े नहीं रहे और न भरोसे पर खरे नहीं उतरे।
बहन मायावती को बसपा की टिकट पर किसी नए चेहरे को उतारकर चुनाव लड़ाना चाहिए था। जिस प्रकार नगर निगम मै नए चेहरे को उतारकर सब को चौकाया था जिसका परिणाम बसपा दूसरे नंबर की पार्टी बन कर उभरी थी। दलित मतदाता ने एक बार और बीएसपी सुप्रीमो को मथुरा जनपद की लोकसभा टिकट पर विचार करने की सलाह देते हुए कहा अभी वक्त है कि बसपा सुप्रीमो किसी नए ईमानदार छवि के उम्मीदवार को मैदान में लड़ने के लिए उतारे अभी बसपा वोटर को लगता है कि कमलकांत को उतारना बसपा सुप्रीमो की बढ़ी भूल है। ब स पा का बेस वोट इस बात पर भी नाराज है हाथरस से अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट पर पाल बघेल गडरिया जाति के व्यक्ति जिसने कथित तौर पर अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र धनगर जाति का प्राप्त कर धनवल से बहुजन समाज पार्टी का टिकट को हासिल कर लिया है लेकिन इसका विरोध तमाम अनुसूचित जातियों के अलावा जाटव जाति का बीएसपी को झेलना पड़ेगा जिसके परिणाम सुखद दिखाई नहीं दे रहे हैं बहुजन समाज पार्टी की मुखिया को टिकट वितरण को लेकर लिए गए निर्णय को पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। सरकार का मानना है धनगर अनुसूचित जाति उत्तर प्रदेश में पाई ही नहीं जाती तो ऐसे में बसपा प्रमुख किस नियम और कानून के तहत धनगर को अनुसूचित जाति का मानकर लोकसभा की टिकट वितरण कर तमाम अनुसूचित जाति के लोगों के हितों पर कुठाराघात करने का काम आखिर किसके कहने पर किया गया है यह आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है।
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