केंद्र व राज्य सरकार संस्थागत प्रसव के लिए जन जागरूकता अभियान चला रही है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में शोषण की स्थिति के कारण गर्भवती महिलाओं को निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ रहा है। निजी अस्पतालों के माध्यम से पैथोलाजी केंद्र डाक्टर की मर्जी का रिपोर्ट तैयार करते हैं। मरीजों के आर्थिक दोहन का दौर भी शुरू हो जाता है। सी एच सी के जच्चा-बच्चा वार्ड में गर्भवती महिलाओं को शोषण रजिस्ट्रेशन के साथ शुरू हो जाता है। सबसे पहले सेंटो इंजेक्शन की तीन सुइयां व ग्लब्स खरीदने के लिए पांच सौ रुपये खर्च करने पड़ते हैं। हर डिलीवरी बिना आपरेशन के नहीं होती हैं। टांके के लिए ईपी बाहर से मंगाई जाती है जिसकी कीमत डेढ़ सौ रुपये है। नवजात बच्चों के रजिस्ट्रेशन के लिए दस रुपये का आवेदन पत्र बाहर से मंगाया जाता है। डिलीवरी के बाद बच्चों की नाल काटने व आपरेशन के लिए डेढ हजार रुपये वसूले जाते हैं। यही नहीं एंबुलेंस से प्रसूता को घर तक छोड़ने के बाद एंबुलेंस कर्मी कम से कम दो सौ रुपयों की वसूली कर लेते हैं। अधिकारियों से की गई शिकायत बेअसर होती है। अनेक आशा कार्यकत्रियों की शिकायत है कि इन सभी अव्यवस्थाओं के कारण मरीज सीएचसी के बजाय निजी अस्पतालों में जाना ज्यादा पसंद करते हैं।
अधीक्षक डाक्टर. चन्द्र प्रकाश सिंह का कहना है कि ऐसी शिकायत लिखित रूप में नहीं मिली है लेकिन प्रसूताओं से इस मामले की जानकारी ली जाएगी। अगर मामले सही पाए गये तो विभागीय कार्रवाई की जाएगी।
असगर अली
उतरौला
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