संवाददाता रणजीत जीनगर
नागौर:- संत भजनाराम ने सर्व समाज के साथ मिल कर दिया नागौर में ज्ञापन संत श्री ने बताया में आप को याद दिलाना चाहता हूं आप के राजस्थान में आपसी अराजकता के बीच, राजनीतिक तौर पर जातियों के बंटवारे के बीच, कभी दलितों की नृसंश हत्या होने पर उन्हें सर्वप्रथम संबल देने वाले तो कभी गरीब बेटियो की शादी हेतु आगे आने वाले और कभी विधवा महिलाओं के मददगार बनने वाले, तो कभी बालिका शिक्षा हेतु नए आयाम स्थापित करने वाले, तो कभी आम गरीब राजपूत को रोजगार देकर लाखो परिवारों को संबल देने वाले, सामाजिक न्याय व सामाजिक समरसता की नई बुलंद आवाज पूरे प्रदेश में खड़ी करने वाले कोन थे वो मेघराज सिंह जी शेखावत ही थे जिनको आज राजनीतिक ताकतों ने साजिशपूर्वक फंसाने का प्रयास किया तो ये सर्व समाज किसी भी हद तक बर्दाश्त नही करेगा।
ये कारवाई आम और गरीब राजपूत की मदद में सदैव चट्टान की तरह खड़े रहने वाले, राजपूत समाज के सबसे बड़े भामाशाह मेघराज सिंह शेखावत पर नही बल्कि सीधे सीधे राजपूत समाज को ललकारना है।
राजनीती खेल कर गंभीर मामले को गुमराह करने का प्रयास है। जो नाकाबिल ए बर्दाश्त हैं।
राजपूत समाज जिस तरह से बीजेपी के साथ खड़ा है उसका समय समय पर इस रूप में प्रतिफल दिया जाएगा तो ये तय मान के चलना की राजपूत समाज इतना लाचार और बेचारा नही है।
संत भजनाराम ने बताया याद करो वह घटना नागौर जिले की राणासर गांव की तब गरीबों का मसीहा बन कर कौन आया था जब गांव के एक दलित परिवार को गांव के दबंगो ने कुचलकर मार डाला। वह भी चुनावी साल था लिहाजा वोटबैंक और जातीय राजनीतिक समीकरणों के चलते ना कोई नेता उस दलित परिवार के पक्ष में खड़ा हुआ और ना कोई राजनीतिक पार्टी बल्कि पुलिस और प्रशासन के हाथ भी बांध दिए गए। न्याय और कानून खुलेआम राणासर में दम तोड रहा था और दलित अधिकार की लंबी - लंबी बातें करने वाले सफेदपोश लोगों की भी हिम्मत एक शब्द बोलने की नही हुई। तभी दलित अत्याचार के तांडव के बीच एक मर्दाना आवाज ने साबित कर दिया कि भले न्याय के आवाज में बोलने की कीमत जो भी हो लेकिन न्याय के गले को नही दबाने दिया जायेगा। उस बुलंद आवाज का नाम मेघराज सिंह रॉयल था। याद करो
उस घटना से सबक लेकर अपने व्यापार और भविष्य के नुकसान की परवाह किए बगैर ही मेघराज सिंह रॉयल ने दलित, वंचित और पिछड़ों की आवाज को चुनावों के बीच अपनी जुबान दे दी। मेघराज सिंह रॉयल जानते थे कि उन्होंने जो जोखिम लिया है वह व्यापारिक तौर पर उनके लिए घाटे का सौदा है और कोई व्यापारी आदमी घाटे का सौदा करे तो समझ जाना चाहिए कि इसके मन में समाज को लेकर कितने पीड़ा है। तमाम तरह की बातों की बिना परवाह किए मेघराज सिंह रॉयल ने राजस्थान में सामाजिक न्याय और दलितों, वंचितों के हक में ऐसी आवाज बुलंद कर डाली की राजनीतिक पार्टियों के पांव उखड़ने की नौबत आ गई।
चुनावों के बाद राजस्थान में सरकार बदली बदले की नियत नहीं बदल पाई और दलितों के पक्ष में आवाज उठाने वाले भामाशाह मेघराज सिंह रॉयल को टारगेट किया जाने लगा। पहले उनके बजरी के स्टॉक को सीज करके दबाने की कोशिश हुई लेकिन जब मेघराज सिंह रॉयल ने झुकना सीकर नहीं किया तो सरकार ने अपनी सबसे बड़ी तोप ईडी का मुंह उनकी तरफ खोल दिया। एक दो नहीं बल्कि 40 ठिकानों पर ईडी की रेड से साबित होता है कि न्याय के पक्ष में आवाज उठाना आज मेघराज सिंह रॉयल को कितना भारी पड़ गया है। यह मेघराज सिंह रॉयल को नहीं बल्कि उन सभी दलित परिवार के लिए लड़ी जाने वाली न्याय की लड़ाई को खत्म करने की कोशिश है। ईडी ने एक भामाशाह को नही बल्कि प्रदेश के दलितों और वंचितों की भावनाओं को कुचलने का काम किया है जिनके लिए मेघराज सिंह रॉयल लड़ रहे थे।
यह लड़ाई ईडी और मेघराज सिंह रॉयल के बीच की नहीं बल्कि न्याय और अन्याय के बीच की है। राजस्थान की स्वाभिमानी धरती पर जब जब किसी को ताकत से दबाने की कोशिश हुई है तब शाके और जौहर हुए हैं। ईडी को मेघराज सिंह रॉयल के ठिकानों से गरीबों और पीड़ितों की गुहारों के सिवाय कुछ भी नही मिलेगा। लेकिन आज राजस्थान भर का दलित,वंचित और शोषित मेघराज सिंह रॉयल के साथ भी उसी तरह खड़ा है जैसे घर में दादा के लिए बेटे व पोते व पुरे घर वाले मेघराज सिंह रॉयल उनके लिए खड़े थे।
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