विधर्मियों के अनर्गल प्रलाप से नहीं रुकेगा हमारे आराध्य रामलला की प्राण प्रतिष्ठा-डॉ.कौशलेंद्र कृष्ण शास्त्री जी महाराज
कथा वाचक डां. कौशलेंद्र कृष्ण शास्त्री जी महाराज ने कहा कि मनुष्य जीवन में जाने अनजाने प्रतिदिन कई पाप होते है। उनका ईश्वर के समक्ष प्रायश्चित्त करना ही एक मात्र मुक्ति पाने का उपाय है। उन्होंने ईश्वर आराधना के साथ अच्छे कर्म करने का आव्हान किया। उन्होंने कहा कि व्यक्तियों को अपने जीवन में क्रोध, लोभ, मोह, हिंसा व संग्रह आदि का त्यागकर विवेक के साथ श्रेष्ठ कर्म करने चाहिए। कौशलेंद्र जी कथा के दौरान कहा जब आक्रमणकारी हमारे देश में आए तो उन्होंने मठों और मंदिरों को नष्ट करके हिंदू समुदाय को नष्ट करने का प्रयास किया। उदाहरणों में बाबर द्वारा अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण करना और औरंगजेब द्वारा काशी विश्वनाथ और मथुरा में मंदिर को नष्ट करना शामिल है। मुस्लिम आक्रांताओं ने इन मंदिरों के स्थान पर जो निर्माण कराये वे हमारे लिए अत्यंत अपमानजनक नही हैं क्या?विधर्मियों के अनर्गल प्रलाप से नहीं रुकेगा हमारे आराध्य रामलला की प्राण प्रतिष्ठा। व्यासपीठ से महाराज जी ने भागवत कथा के दौरान सती चरित्र आदि प्रसंगों पर प्रवचन करते हुए कहा कि भगवान के नाम मात्र से ही व्यक्ति भवसागर से पार उतर जाता है। महाराज जी ने मीरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है, तेरी मंद मुस्कनिया, कर्म प्रधान जैसे भजनों के माध्यम से लोगों को भाव विभोर कर दिया।उसके बाद शिव-पार्वती विवाह का प्रसंग बताते हुए कहा कि, यह पवित्र संस्कार है, लेकिन आधुनिक समय में लोग संस्कारों से दूर भाग रहे है। जीव के बिना शरीर निरर्थक होता है, ऐसे ही संस्कारों के बिना जीवन का कोई मूल्य नहीं होता। भक्ति में दिखावा नहीं होना चाहिए। जब सती के विरह में भगवान शंकर की दशा दयनीय हो गई, सती ने भी संकल्प के अनुसार राजा हिमालय के घर पर्वतराज की पुत्री होने पर पार्वती के रुप में जन्म लिया। पार्वती जब बड़ी हुईं तो हिमालय को उनकी शादी की चिंता सताने लगी। एक दिन देवर्षि नारद हिमालय के महल पहुंचे और पार्वती को देखकर उन्हें भगवान शिव के योग्य बताया। इसके बाद सारी वार्ता शुरु तो हो गई, लेकिन शिव अब भी सती के विरह में ही रहे। ऐसे में शिव को पार्वती के प्रति अनुरक्त करने कामदेव को उनके पास भेजा गया, लेकिन वे भी शिव को विचलित नहीं कर सके और उनकी क्रोध की अग्नि में कामदेव भस्म हो गए। इसके बाद वे कैलाश पर्वत चले गए। तीन हजार सालों तक उन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या की। खूशबू दिनेशानंद ज्योतिष गुरू पंडित अतुल शास्त्री सूरज शास्त्री ने महाआरती की बाद में महाप्रसादी का वितरण किया । कथा में तीसरे दिन बड़ी संख्या में महिला-पुरुष कथा श्रवण करने पहुंचे।
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