मथुरा। थाना जमुना पार क्षेत्र में राया रोड पर स्थित दुकान में तोड़फोड़ लूटपाट और मारपीट की घटना को लेकर पुलिस ने मुकदमा दर्ज नहीं करके अपनी उस कहावत को सच कर दिया है।" खाता न वही पुलिस कहे वही सही" इस घटना के आरोपियों को मुकदमे से बचाने के लिए पुलिस एक पूर्व प्रधान और वर्तमान पार्षद के इशारे पर पीड़ित की रिपोर्ट भी दर्ज नहीं की है वहीं पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को और इस संबंध में जानकारी करने वाले पत्रकारों को गुमराह किया जा रहा है।
जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार से स्वतंत्र पत्रकार की मान्यता प्राप्त थाना जमुनापार क्षेत्र के गांव लोहवन निवासी निरंजन प्रसाद धुरंधर के पुत्र नीरज की राया रोड पर जनरल स्टोर की दुकान है। 4 दिन पूर्व कुछ नामजदौ और अज्ञात लोगों को दुकान के सामने शराब पीकर , गाली गलौज करने से मना करने पर नीरज के साथ मारपीट करते हुए गंभीर रूप से घायल कर दिया। इतना ही नहीं उसकी दुकान में भी तोड़फोड़ कर क्षतिग्रस्त कर दिया दुकान मैं रखे गलले को भी अपने साथ ले गए । सूचना पर पहुंची पुलिस ने घायल को उपचार के लिए जिला अस्पताल में भर्ती कराया ।
इस मामले में घायल पीड़ित नीरज के भाई ने थाने पर तहरीर देकर मुकदमा दर्ज करने के लिए प्रभारी निरीक्षक और क्षेत्रीय उपनिरीक्षक का आग्रह किया गया।
बताया जाता है आरोपी नामजद और उनके साथियों की ओर से पुलिस के कारखास बने हुए पूर्व प्रधान और पार्षद के द्वारा लायजिंग बनाए जाने के बाद मुकदमा दर्ज नहीं किया गया। पत्रकारों के पूछने पर प्रभारी निरीक्षक के द्वारा यह कहा जाना मुकदमा दर्ज करने से घायल नीरज के पिता पत्रकार निरंजन प्रसाद धुरंधर ने मना किया है। वह वैसे ही कार्रवाई करने के लिए कह रहे हैं ।
मजे की बात यह है पुलिस के पास ऐसी कौन सी करवाई है जो बिना मुकदमा दर्ज किये दोषियों को दंडित करा सकती है।
इस संबंध में घायल नीरज के पिता अपने सीनियर पत्रकार साथियों के साथ पुलिस अधीक्षक नगर डॉक्टर अरविंद कुमार से मिले जिन्होंने प्रभारी निरीक्षक को फोन किया तो उन्हें भी गुमराह करने का प्रयास किया गया हालांकि पुलिस अधीक्षक नगर के द्वारा प्रभारी निरीक्षक को मुकदमा दर्ज कर गुण दोष के आधार पर विवेचना के निर्देश दिए हैं।
यहां प्रश्न यह उठता है जो पत्रकार पुलिस को उनके कथित गुडवर्क के पीछे की कहानी को छुपाते हुए पुलिस और पुलिस के अधिकारियों को महिमा मंडित करते हैं लेकिन जब पत्रकार या उसके अपनों के साथ कोई घटना होती है तो उसको पहले तो दर्ज ही नहीं करती और यदि दर्ज करना पड़े तो उसे मिनिमाइज करने का प्रयास पुलिस के द्वारा किया जाता है ।
पुलिस का रवैया पत्रकारों के प्रति गंभीर नहीं रहता है तो ऐसी स्थिति में पत्रकारों को पुलिस के संरक्षण में हो रहे गैर कानूनी कार्यों को उजागर कर के पीड़ितों की आवाज बुलंद करने का कार्य करने को वाद्य हो सकते हैं।
शासन और प्रशासन में बैठे तथा स्थानीय पुलिस अधिकारियों को पत्रकारों की पीड़ा को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubts, please let me know