मथुरा। वृंदावन मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष पंचमी ये तिथि बहुत खास है। इस तिथि को बिहार पंचमी और विवाह पंचमी भी कहते है आज ही के दिन भक्तों के अनुरोध पर स्वामी श्री हरिदास जी ने कठोर साधना करके बांके बिहारी जी को प्रकट किया था तभी से बृज भूमि पर इस दिन को बिहार पंचमी के रूप में मनाया जाता है बिहार पंचमी यानी बांके बिहारी जी के प्रकट होने का दिन है बांके बिहारी जी के प्राकट्य के साथ-साथ स्वामी हरिदास जी के अनन्य भक्ति की याद को भी ताजा करता है वृन्दावन जहां की कुंज गलियों में श्री राधा-कृष्ण का अनोखा प्रेम परवान चढ़ा ब्रज भूमि में आने वाला हर भक्त कृष्ण प्रेम के धागे से बंधा है आस्था और भक्ति एक ऐसा संगम है जिसमें हर कोई डुबकी लगाना चाहता है स्वामी श्री हरिदास जी की गोद में बैठे हुए श्री कृष्ण की छवि इस कहावत को चरितार्थ करती है भक्त के वश में भगवान कहते हैं कि अगर कोई बांके बिहारी जी की छवि को एक टक लगातार देख लेता है तो भगवान उसके साथ चल देते है। बांके बिहारी जी को थोड़ी थोड़ी देर पे परदे से ढक दिया जाता है। जिससे एक टक लगतार नहीं देख सकते है जब भक्तों को जिज्ञासा हुए बिहारी जी को देखने तो सभी रसिक संत जनो ने स्वामी हरिदास जी महाराज से प्रार्थना की महाराज आप तो नित्य बिहारी जी के दर्शन करते है उनको रिझाते ,लीला करते है। आम जनमानस , भक्त कैसे बिहारी जी को देख पाएंगे। उनको प्रकट कीजिये जिनसे सभी पर उनकी कृपा बरस सके उनका दर्शन कर सके वृंदावन की कुंज गलियों में भी एक हरा भरा क्षेत्र है जिसे निधिवन कहते हैं। जो स्वामी हरिदास जी की साधना स्थली हैं इसी स्थान पर तानपुरा की तान पर स्वामी हरिदास जी ने कृष्ण भक्ति की ऐसी अलक जगाई जिसकी मिसाल दुनिया में कहीं और नहीं मिलती तानसेन के गुरु संत स्वामी श्री हरिदास जी का गायन सुनने सम्राट अकबर निधिवन में आए थे गायन को सुनकर सम्राट अकबर ने कहा था कि संगीत की ऐसी जीवंत साधना उन्होंने कहीं नहीं देखी ये संगीत रूह को छूती है जो की अपने आप में अद्भुत चमत्कार है स्वामी हरिदास जी के भतीजे एवं परम भक्त विट्ठल जी ने एक बार बहुत आग्रह किया कि वह नित्य बिहार को अपनी आंखों से देखना चाहते हैं।एक दिन वो मौका भी आया जब स्वामी जी ने अन्य भक्तों के साथ उन्हें निधिवन में बुलाया जब वह निधिवन में पहुंचे वहां इतनी तेज रोशनी हुई सबकी आंखें चौंधिया गई तब स्वामी जी ने आकर उन्हें संभाला फिर उन्होंने संगीत की कठोरता साधना शुरू की जिसके प्रभाव से बांके बिहारी जी के रूप में श्री कृष्ण ने उन्हें अपने साक्षात दर्शन दिए यह छवि इतनी अलौलिक थी उसकी ओर देखना भी संभव नहीं था तब स्वामी जी के आग्रह पर बांके बिहारी जी ने अपने स्वरुप को एक आधार प्रतिमा के रूप में कर लिया यही प्रतिमा श्री विग्रह श्री बांके बिहारी जी के मंदिर में स्थापित की गई मार्घशीष शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन स्वामी हरिदास की संगीत साधना से प्रसन्न होकर ठा. बांकेबिहारीजी निधिवन राज मंदिर में प्रकट हुए थे डेढ़ सौ साल से भी अधिक समय पहले बने मंदिर में विराजमान ठा. बांकेबिहारी के प्राकट्योत्सव बिहार पंचमी के दिन निधिवन राज मंदिर से शोभायात्रा बांकेबिहारी मंदिर जाती है। मान्यता है कि शोभायात्रा में डोले में विराजमान होकर स्वामीजी अपने लढ़ैते बांकेबिहारीजी को बधाई देने के लिए मंदिर जाते हैं श्री बांके बिहारी जी के प्रकट होने पर स्वामी जी का यह प्रथम पद भी प्रकट हुआ
माई री सहज जोरी प्रगट भई, जू रंग कि गौर श्याम घन दामिनी जैसे,प्रथम हूँ हुती अब हूँ आगे हूँ रही है, न तरिहहिं जैसें,अंग अंग कि उजराई सुघराई चतुराई सुंदरता ऐसें, श्री हरिदास के स्वामी श्यामा कुंजबिहारी सम वस् वैसें,
जिस प्रकार आकाश में बिजली और मेघ विलसें है इसी प्रकार यह जोरी कितनी सुन्दर लग रही है यह जोरी पहले भी थी ,अब भी है ,,और आगे भी रहेगी जोरी नित्य हीं रहती है स्वामी श्री हरिदास जी कहते हैं प्रिया प्रियतम तुम दोनों एक दुसरे से कम नहीं हो ,समान वेश है तुम्हारो स्वामी जी कहते हैं यह जोरी अजन्मा ,नित्य किशोर है यह नित्य वृन्दावन में निकुंज महल में विराजमान है ,,यही जोरी स्वामी श्री हरिदास जी के अनुरोध से धरा पर रहने को राजी हो गयी हमारे बहुत बड़ा सौभाग्य है कि हमें इतनी सहजता से श्री ठाकुर बाँकेबिहारी जी के दर्शन हो जाते हैं उनका सुन्दर मोहक स्वरूप का तो क्या कहें ,जो एक बार देखता है ,वह उन्हें निहारते थकता हीं नहीं उनके विशाल नेत्रों में जिसने एक बार भी डुबकी लगा ली ,वो उन्हीं में डूब जाता है उनके मुख कि मुस्कान ,नाक कि बेसर,ठोढ़ी का हीरा,,कानों के कुण्डल, माथे का पाग .टिपारे ,चन्द्रिका ,मोर-पंख आदि मिलकर ऐसी मोहित कर देते हैं कि भक्त अपने आप को उन पर प्राण निछावर करने को तैयार रहता है
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