बलदेव/ भरतपुर नरेश महाराजा सूरजमल का 260 वा बलिदान दिवस भाकियू चढूनी के कैंप कार्यालय पर मनाया गया। मंडल अध्यक्ष रामवीर सिंह तोमर ने महाराजा सूरजमल के चित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजली अर्पित कर कहा कि वीर योद्धाओं की शहादत और बलिदान से युवाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए। रामवीर सिंह तोमर ने कहा कि महाराजा सूरजमल ने अपने जीवन में 80 युद्ध लड़े और सभी में अजेय रहे। उन्होंने मुगलों को दिल्ली में घुसकर पीटा। महाराजा सूरजमल ने ब्रजवासियों को मुगलों के अत्याचार से बचा कर धार्मिक स्थलों की रक्षा की।
इतिहास में महाराजा सूरजमल का नाम पराक्रम, रणनीति और युद्ध कौशल स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। त्रेता युग में जिस तरह से महाराज दशरथ के साथ उनकी रानी कैकई युद्ध के मैदान में जाती थीं, उसी तरह महाराजा सूरजमल की धर्मपत्नी महारानी किशोरी भी उनके साथ युद्ध मैदान में दुश्मन से लड़ाई लड़ती थीं। एक ब्राह्मण कन्या की आबरू बचाने के लिए जब महाराजा सूरजमल ने अपना बलिदान दे दिया तो उनकी वीर पराक्रमी धर्मपत्नी महारानी किशोरी ने अपने बेटे महाराजा जवाहर सिंह के साथ मिलकर दिल्ली फतेह कर महाराजा सूरजमल के बलिदान का बदला लिया था। रामवीर सिंह तोमर ने बताया कि दिल्ली के वजीर के सेनापति ने एक ब्राह्मण कन्या को अपहरण कर लिया था। ब्राह्मण कन्या ने महाराजा सूरजमल को पत्र लिखकर खुद की इज्जत और धर्म की रक्षा की गुहार लगाई थी।इसके बाद महाराजा सूरजमल ने दिल्ली के इमाद नजीबुद्दौला के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। साथ में महारानी किशोरी भी युद्ध मैदान में थीं। इस युद्ध में महाराजा सूरजमल ने ब्राह्मण कन्या की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। महाराजा सूरजमल के बलिदान के बाद उनके बेटे महाराजा जवाहर सिंह को गद्दी पर बैठाया गया। अपने पिता महाराजा सूरजमल के बलिदान का बदला लेने के लिए महाराजा जवाहर सिंह ने अक्टूबर 1764 में 100 तोप और 60 हजार सैनिकों के साथ दिल्ली पर चढ़ाई कर दी। जाट सैनिकों ने नजीबुद्दौला की सेना में हाहाकार मचा दिया, लेकिन दिल्ली के किले पर लगा नुकीली कीलों वाला गेट नहीं टूटने की वजह से जाट सेना किले में दाखिल नहीं हो पाई। वीर सैनिक पुष्कर सिंह भकरिया को किले के गेट पर खड़ा होने को बोला गया। उसके बाद महाराजा जवाहर सिंह और महारानी किशोरी के हाथी ने गेट में टक्कर मार कर उसे तोड़ दिया। महाराजा जवाहर सिंह के नेतृत्व में जाट सैनिक दिल्ली के किले पर लगे हुए गेट को उखाड़ कर भरतपुर ले आए। यह गेट आज भी भरतपुर के लोहागढ़ किले में लगा है। कार्यक्रम में नरेंद्र उपाध्याय , जगदीश पांडेय, विपिन कुमार, मोहन सिंह, लविस पांडेय, मदन पांडेय, लोकेश, समीम चौधरी, प्रिंस सिकरवार, सलीम खान, शिवराम सिंह, अकबर खान, रवीश कुमार, अजीत सिंह चौधरी, देवेंद्र सिंह, अमित शर्मा, भुल्ली सिकरवार, जितेंद्र पांडेय, दीपक शर्मा, विष्णु, राघवेंद्र आदि मौजूद रहे।
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