मथुरा/ कृषि प्रधान देश में किसानों की जो दशा है, वह किसी से छुपी नहीं है, फिर भी उस पर न तो सरकार का ध्यान है और न ही उस वर्ग का जो लगभग कृषि पर निर्भर है। वर्तमान सरकार से किसानों को उम्मीद थी कि किसानों की समस्याएं पूरी तरह खत्म नहीं तो कुछ कम जरूर हो जायेंगी, हैरत की बात यह है कि किसानों की समस्याएं घटने के बजाय बढ़ती ही जा रही हैं। चाहे वो किसी भी प्रकार की फसल उगाने वाले किसान हों। यह कहना है भाकियू चढूनी के मंडल अध्यक्ष रामवीर सिंह तोमर का। श्री तोमर ने कहा कि 75 सालों बाद भी किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी नहीं मिल सकी है। आलू किसानों का तो हाल यह है कि वह जब अपने आलू बेचता है तो खुद को ठगा महसूस करता है। आलू किसानों को कभी भी फसल का सही भाव नहीं मिलता। किसानों के आलू की उचित बोली तक नहीं लगती, जिसके चलते किसानों का आलू सही रेट में नहीं बिक पाता। आलू व्यापारी और आलू से जुड़े लोग मालामाल होते जा रहे हैं और आलू उगाने वाले किसान तबाह होते जा रहे हैं। आलू किसानों के सामने कम कीमत मिलने की ही समस्या नहीं है, उसे 50 किलो के एक पैकेट पर 2.5 किलो आलू छीजन के रूप में अतिरिक्त मार दिया जाता है यानी किसान यदि एक क्विंटल आलू बेचता है तो उससे व्यापारी 105 किलो आलू लेता है। किसान से 5 किलो आलू छीज़न के नाम लेना परंपरा सी बन गई है। बेचारा आलू किसान इस शोषण को अपना भाग्य समझकर चूं तक नहीं करता।
इसके अलावा आलू बिकने के बाद भी किसानों को एक महीने बाद कोल्ड स्टोरेज मालिक उसके बैंक एकाउंट में रकम ट्रांसफर करता है।
यदि किसान को आलू बिकने के बाद तुरंत पैसा चाहिए, तो कोल्ड स्टोरेज मालिक एक निर्धारित राशि काटकर ही भुगतान करता है। या मैनेजर द्वारा किसानों से उस रकम की एक महीने की ब्याज बसूली की जाती है। कोल्ड स्टोरेज मालिक को लगता है कि आलू सस्ता है और किसान ने आलू की बोरी (पैकेट) के रखने के एवज में कोल्ड से लोन लिया हुआ है, तो कोल्ड स्टोरेज मालिक किसान को बिना बताए उसके आलू ओने पौने दाम में बेच देता है। जिसके खिलाफ कोई कार्रवाही न तो कोल्ड स्टोरेज के मालिक पर होती है और न ही कोल्ड स्टोरेज के मैनेजर पर। इसके अलावा यदि किसान कोल्ड स्टोरेज से बारदाना उधार लेते हैं, तो उन्हें डेढ़ से दो रुपये सैकड़ा ब्याज पर बारदाना मिलता है। केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2018-19 के बजट में 26 कृषि उत्पादों को एमएसपी देने का वायदा किया था। इसमें इन तीनों फसलों आलू, टमाटर और प्याज को शामिल किया गया था, लेकिन वादे हैं वादों का क्या, बाली बात चरितार्थ साबित हो गई। तत्कालीन कृषि मंत्री स्व चौधरी अजित सिंह ने आगरा में आलू से बियर बनाने की फैक्ट्री लगाने की बात कही थी, लेकिन वह योजना जमीन पर नहीं उतर सकी और उसका लाभ आलू किसानों को नहीं मिल सका। दिसंबर जनवरी के महीनों में हजारों बोरा आलू आगरा और आसपास के कोल्ड स्टोरेजों से या तो फिक गया या कौड़ियों के भाव में बिका है। किसान कड़ी मेहनत के बाद एक एकड़ खेत में 200 से 240 बोरा आलू पैदा कर पाता है, जिसमें 50 से 52 किलोग्राम आलू होता है। यानि एक एकड़ खेत में करीब 100 से 120 कुंटल तक आलू पैदा होते हैं। इसमें भी हर साइज का आलू होता है, मोटे आलू, गुल्ला और किररी मतलब महीन आलू यानि तीन से चार साइज के आलू निकलते हैं, जिनके रेट भी अलग-अलग होते हैं।बाजार में सिर्फ मोटे आलू को लोग सब्जियों के लिए खरीदते हैं। आलू जरा भी सस्ता हुआ तो गुल्ला और महीन आलू तो कोडियों के भाव भी नहीं बिक पाता। अगर महंगाई हो, तो गुल्ला और किर्री आलू बीज में बिक जाता है। किसानों की मेहनत का फायदा सब उठाते हैं और किसान बेचारा कड़ी मेहनत करके भी फटेहाल ही रहता है। बीच बीच में सरकार आलू का समर्थन मूल्य तय कर खरीदने की बात करती रही है, लेकिन सरकारी खरीद कंही होती है, कभी जमीन पर ऐसा नहीं दिखा। अगर बाज़ार मूल्य, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी), सरकारी खरीद मूल्य के अनुसार होता तो वे भी अच्छी कमाई कर सकते हैं। आगरा के खंदौली को आलू की केपिटल कहा जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा ख़राब हालात आलू किसानों की यही है। आलू के घाटे से किसानों को शहरी लोगों जैसी बीमारियां जैसे कार्डिक डिसीज, हाइपरटेंशन, सुगर, डिप्रेशन मिलना आम हो गया है। कई युवा किसानों को मैं जानता हूँ, जिनको कोलेस्ट्रॉल बढ़ने के कारण नशों में छल्ले पड़ गए हैं। घाटे से हार्ट अटैक हो कर मर गए हैं। आलू किसानों का भला तभी हो सकता है जब कोल्ड स्टोरेज भाड़ा कोल्ड मालिक तय करने की बजाय सरकार करे। हर जनपद में जिलाधिकारी, जिला उद्यान अधिकारी की उपस्थिति किसान संगठन के प्रतिनिधियों को शामिल कर भाड़ा तय हो। गन्ना किसानों की तर्ज पर आलू किसानों के लिए भी आलू का निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य तय हो। किसानों को आलू बिक्री के बाद दो से तीन दिनों में बिक्री का पैसा मिल जाए, छीजन के नाम पर किसानों से एक क्विंटल आलू पर अतिरिक्त 5 किलो आलू लेने की परंपरा बंद हो। बहरहाल, उम्मीद है कि आलू किसानों की इन समस्याओं को न सिर्फ उत्तर प्रदेश सरकार, बल्कि आलू की पैदावार करने वाले बाकी प्रदेशों की सरकारें और केंद्र सरकार भी अपने संज्ञान में लेते हुए उनकी समस्याओं का हल करने का काम करेंगी।
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