_यात्रावृतान्तकार- खुशवंत कुमार माली_        

गाड़ियां आगे बढ़ती जा रही थी रात घनी और हल्की बारिश, सुहाना मौसम और शीतल समीर संग धीरे-धीरे हम उँचाई की ओर बढ़ रहे थे| सिलीगुड़ी जलपाईगुडी से कुछ अधिक ऊँचाई पर हैं और वहाँ और अधिक ऊँचाई पर पहाड़ी छोटे कस्बे फिर खरसाङग उससेे भी ऊंचाई पर दार्जिलिंग शहर है| जिसकी खूबसूरती के किस्से बचपन से सुनते आए थे| वैसे चाय के बड़े बड़े बागान सिलीगुड़ी में भी खूब हैं जो वापसी में अपलक निहारे पर जाते समय रात के घने अंधेरे और संकरे हाईवे से उपर के पहाड़ी शहरों में बत्तियों की रोशनी टिमटीमाते तारों सी लग रही थी| बीच में दो दिन की रेल यात्रा में बाहर का भोजन न मिला सो सभी ने एक रेस्त्रा पर गाड़ियां रुकवाई पर वहाँ चावल राजमा ही था सो सभी आगे बढ चले बीच में एक दूसरे रेस्टोरेंट पर रोकी गई वहाँ गोभी और चपाती मिल रही| सभी ने ओर्डर दिया पर वहां आमलेट, अंडा और बाकी भी साथ था पियोर वेज न था मैनें फ्रूटी ली और गाड़ी में बैठ गया| पिछली नेपाल यात्रा में वेज न मिलना बहुत दुखी कर गया था| मुझे मांसाहार वालों से घृणा नहीं पर मेरे परिवेश और संस्कार में उसके लिए कोई स्थान न होने से सर्वदा सर्वथा अप्रिय ही रहा| पर जिनका भोजन हैं वो खुब खाये चाव से हमें क्या? सभी ने गोभी और चपाती ली और फिर वापस गाड़ियों में सवार हो बढ़ चले बादलों में तैरते शहर   कुर्सीयोंग की ओर, थोड़ी देर में करीब 9.30 के आसपास हम कैंप पॉइंट थे| कैंप हेड और आर्गनाइजेर विवेक सर ने वार्म वेलकम किया| रुकने के लिए बढ़िया हॉल, मैट्रेस, गद्दे और ओढ़ने को शानदार स्लीपिंग बेग जो ठंड को छुमंतर करने वाले थे, सभी को दिए गए| विवेक सर के निर्देशन में आगे बढ़ता संवरता नेशनल एडवेंचर इंस्टिट्यूट कुर्सीयोंग कल्पना से परे सुंदर और आकर्षक था| स्काय साईकलिंग,शूटिंग,आर्चरी,पर्वतारोहन, टायर लूम्ब, टायर रेस आदि की व्यवस्था बहुत आकर्षक थी| विवेक सर और उनकी पूरी टीम बधाई की पात्र हैं जिसने इस संस्थान को सजाने में कोई कसर नहीं छोड़ी हैं| अगली सुबह जल्दी में नहाए धोये ग्रीन टी फिर फ्लेग होस्टिंग होनी थी| अब हम भारत के उत्तर पूर्व के एक हिमालययी क्षेत्र मे थे भारत के पूर्वी भाग में सूर्योदय का जल्दी होना एक प्रमुख कारण था कि सुबह 5 बजे भोर और 5.30 तक पुरा उजाला हो जाता था| मैं राजस्थान के सिरोही से हूं यदि वहा से तुलना करे तो पूरा डेढ़ घंटे से दो घंटे पहले सुप्रभात वहीं उतनी ही जल्दी यहाँ सुर्यास्त भी हो रहा था|जैसे ही मैं हॉल से बाहर लोन में आया मेरी आँखें फटी की फटी रह गई| मेरे सामने थी उत्तर में स्वर्ण आभा में चमकती हिमालय रेंज की भारत की सबसे ऊँची छोटी के-२ कंचनजंगा, उस प्रथम दर्शन के रूप सौंदर्य की प्रसंशा के लिए मेरे पास शब्द नही हैं| वो अनुपम सौंदर्य दर्शन जब तक देह में प्राण हैं मेरे अमिट जीवंत रहेगा| फिर क्या था? फोटो सेशन स्टार्ट हुआ जो अवरत जारी रहा सिंगल व ग्रुप फोटो,वीडियो का दौर सभी के ग्राउंड में आने और फ्लेगहॉस्टिंग पर थमा| सलामी, ध्वज गीत, प्रार्थना और फिर आगे सभी कार्यक्रमों की जानकारी दी गई| फिर शानदार और जानदार ब्रेकफास्ट जो ऊर्जा एवं जोश से भरने वाला था| देश हो या विदेश मैं न संस्कृति भूलता हूँ न संस्कार, हमेशा की तरह एकादशी का उपवास रखा और पुरा साथ दिया अर्जुन भैया ने, मिल्क टी के साथ मखाने और रोस्ट ड्राय फ्रूट्स लिए फिर हरियाणा के स्काउटर बच्चों संग शूटिंग और आर्चरी का अभ्यास किया| दोपहर     में जब सभी लंच को गए तब मैंने और अर्जुन भैया ने कॉफी की तलब में कुर्सीयांग शहर की ओर रुख किया| रास्ते में दो बड़े चाय के बागान, संकरा रास्ता, ऊँची इमारते, जल निकासी को पर्याप्त नालियाँ, उड़ते तैरते बादलों संग हम आगे बढ़ते जा रहे थे| दुकानें आकर्षित करती जाती| करीब डेढ किलोमीटर की संकरी खड़ी चढ़ाई वाले रास्ते को पार कर हम पहुँचे खरसांग हिमालयन टॉय ट्रेन स्टेशन, स्टेशन की खूबसूरती की जितनी तारीफ़ करू उतनी कम होगी पर्वतीय और वेस्ट्रेन क्लचर पर भारतीय बिंदी सी सुंदरता थी| अंदर एक बार, रेस्त्रा भी था| कुछ फोटोज और वीडियोज से उस सुहाने मंजर को कैद किया| अर्जुन की फोटोग्राफी ने मुझे दस साल छोटा कर दिया था एक से बढ़कर एक छायाचित्र लिए गए| हालाँकि मैं मैजेरमेंट और फोन फीचर में कमजोर ठहरा जो उनके उतने अच्छे फोटोज नही ले सका | उस हल्की नाराजगी को मैंने कॉफी से खुशी में बदल दिया| थोड़ा बाजार की सैर के साथ वापस कैंप पॉइंट की और बढ़े, रास्ते में एक चाय का बड़ा बागान आया ठंडी हवा संग तैरते बादल और खूबसूरत वादियों में फैला 'खरसाङग' देवराज इंद्र के स्वर्ग से बढ़कर लग रहा था| यहाँ यात्रा में लगभग पहली बार चाय के पौधों को स्पर्श, बीज, तना और पत्तियों का सघन अवलोकन हुआ| बचपन से दार्जिलिंग के चाय बागानों के बारे में किताबों में खूब पढा था |आज निहार कर कृतकृत्य हो गया था| हमने यहाँ भी खूब सारे फोटो लिए फिर हम कैंप स्थल आये| वहाँ शूटिंग, आर्चरी और स्काय साईकलिंग चल रही थी उसका खूब लुफ्त उठाने के लिए मनोहर जी, खुशाल भाई, आशीष, रणजीत जी, भवानी शंकर जी और लक्ष्मण सा को जॉइन किया| सभी निशाने लगा रहे थे पर लक्षा को छोड़ किसी का भी निशाना लक्ष्य पर न पहुँचता| अद्भुत निशानेबाजी से सभी हक्के बक्के रह गए थे| मनोहर जी बार-बार प्यार से बग्गा संबोधन से हौशला अफजाई कर रहे थे| बाद में पता चला कि दोनों साथियों की पोस्टिंग पाली जिले के खूबसूरत गोरमघाट के आस-पास हैं| गोरमघाट को 'मेवाड का कश्मीर' भी कहते हैं| लक्ष्मण जी पूर्व में सेना में सेवा दे चुके थे सो निशानेबाजी में बार बार सफल हो रहे थे| लंच के बाद स्काय साईकलिंग का सभी ने भरपूर आनंद लिया| लंच से पहले हरियाणा के पीएमश्री स्कूल्स के छात्र-छात्राओ के लिए रीर्जव थी| अनवर सर, डॉ अशोक कुमार सर, नंदराज नंदा ने पहले की उसके बाद हम सभी भी लाइन में लग गए| थोड़ा डरावना पर काफी रोमांच और उत्साह से सरोबार करने वाला था| किसी के पेडल न चलते तो किसी की साइकल बीच में रुक जाती| आशीष और भवानी शंकर जी ने सामने वाली साइड पर मौर्चा संभाला सभी के वीडियो और फोटो लिए जा रहे थे| जैसे ही मेरी साईकलिंग पूरी हुई आशीष ने मेरे बहुत खूबसूरत फोटो लिए, शायद यही मेरा पहला व्यवस्थित परिचय उससे हुआ| जैसा नाम वैसा काम बहुत सुंदर विचारों और ख्यालों के धनी थे 'आशीष' आगे ट्रैकिंग और बाकी एडवेंचर में छोटे भाई का जो स्नेह उससे मिला उसके लिए जीवन भर ऋणी रहूँगा| उसी ने उस रात टहलते हुए मुझे इंस्टा रील बनाना भी सिखाया जो काफी मजेदार रहा| अर्जुन भैया, मनोहर जी, लक्ष्मण जी, खुशाल जी, रणजीत भाई, आशीष और भवानी शंकर जी की स्काय साईकलिंग ने भी खूब आनंद दिया| शाम की चाय के साथ कैंप फायर का अनाउंसमेंट हुआ जो काफी आकर्षक था| मैं पहली बार स्कॉउट से जुड़ रहा था स्कूलिंग में एनएसएस का दो बार बेस्ट वोलेंटियर रहा फिर कॉलेज में भी उसे कायम रखा पर स्कॉउट नया अनुभव था| सचिव प. बंगाल भारत स्कॉउट गाइड आदरणीय जोगेंद्र सिंह साहब ने सभी राज्यों से पधारे पधारे स्कॉउट,गाइड, स्काउटर शिक्षक,रोवर्स का अपने भाषण में स्वागत अभिनंदन किया| सांस्कृतिक गतिविधियां हुई जिसमें हरियाणा के बच्चों ने हरियाणवी संस्कृति का समा बांधा तो राजस्थान नागोर के जग्गा भाखर ने राजस्थानी की लोक नृत्य द्वारा जय जय राजस्थान को साकार किया| केम्प ओर्गनाइजर विवेक सर से कैंप के बारे में विस्तृत जानकारी मिली| अगले दिन की एडवेंचर गतिविधियों के बारे में बताया गया जो रोमांचक था| विवेक सर की टीम के साथियों जो गोरखपुर से थे लगभग सभी ने अलग अलग प्रकार की तालियां बजाना सिखाया जो काफी उत्साह से भरा हुआ था| फिर डिनर के लिए हम सभी हॉल में गए वहाँ बड़े भाई प्रताप जी जो स्वरूपगंज के एलए बीएसजी हैं उन्होंने भी यात्रा और पूर्व के एडवेंचर कैंप के बारे में काफी महत्वपूर्ण जानकारी साझा की जो बहुत उपयोगी  भी रही| सोने के लिए जो स्लीपिंग बेग मिले वो काफी आरामदायक और आकर्षक थे| खोलो अंदर घुसो और चेन बंद करके पेकम्पेक हो जाओ न ठंडी हवा न सर्दी कुछ सताये सब छु मंतर| सभी ने उसकी खूब चुटकी ली| आशीष के साथ कुछ इंस्टा रील की दुनिया संग आँख लगी जो प्रातः 4 बजे खुली| मुझे कला उत्सव की तैयारी कर रही छात्रा लक्षिता के लिए एकाभिनय की स्करिप्ट लिखनी थी सो उठते ही उसे पुरा किया और बाथ रूम में लगती रेलम्पेल को देखते फुर्ती में दैनंदिन कार्यों में लगना पड़ा.........

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