दीपावली पर विशेष- उतरौला(बलरामपुर) मिट्टी के
 दिए बनाकर दूसरे के घरों को रोशन करने वाले कुम्हार समुदाय के लोग आजादी के 76वर्ष बीतने के बाद भी विकास की रोशनी से महरूम हैं।आधुनिकता के दौर में कुल्हड़ व दिया के बजाय पलास्टिक के गिलास व मिट्टी के कलश की जगह स्टील के कलश व इलेक्ट्रानिक कुमकुमी झालरों की चलन ने कुम्हारों व कसघड़ बिरादरी के रोजी रोटी का संकट खड़ा कर दिया है। 
     ‌ पुश्तैनी धंधा होने के नाते महंगाई के दौर में मिट्टी के दिए ,खिलौने,बर्तन आदि बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले कुम्हार व कसघड़ विरादरी को दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है। महंगाई के चलते मिट्टी के बर्तन को पकाने के लिए ईधन जुटाना काफी मुश्किल हो गया है।पहले बर्तन को बनाने के लिए दूर-दराज से मिट्टी को खच्चर के जरिए घर लाते थे महंगाई के चलते अब खच्चर भी पालना मुश्किल हो गया है।मेहनत की बात करें तो मिट्टी लाने के बाद उसे कंकड़ रहित करके खूब गूंधना पड़ता है जिसके लिए पूरे परिवार को मेहनत करनी होती है। उसके बाद दोनों उंगलियों के सहारे चाक पर मिट्टी के दिए,खिलौने,कलश, बर्तन आदि तमाम वस्तुओं को बनाया जाता है। फिर पकाने के लिए भठ्ठी में रखना होता जिसमें काफी ईंधन की आवश्यकता पड़ती है।मोहल्ला गांधी नगर के कसघड़ बिरादरी के लोगों का कहना है कि इस महंगाई के दौर में बर्तन को पकाने के लिए कोयला,लकड़ी,कण्डे की बेतहाशा वृध्दि से हिम्मत नही जुटा पा रहा हूं।वहीं परिवार के युवा वर्ग का इस काम से मोहभंग हो चुका है अब वह प्रदेश जाकर अन्य कामों में रूचि लेकर रोजी रोटी के लिए काम करना ज्यादा पसंद करते हैं।वहीं पर इस आधुनिक युग में बाजारों में प्लास्टिक के सामान व इलेक्ट्रानिक के झालरों केआ जाने से मिट्टी के दिए व बर्तन सिर्फ रस्म अदायगी के लिए इस्तेमाल की जाती है।जिसके चलते पुश्तैनी धंधा धीरे धीरे समाप्त होते दिख रहा है।उल्लेखनीय है कि हिंदू समाज में कुम्हार,और मुस्लिम समुदाय में कसघड़ बिरादरी के लोग मिट्टी को गूंथकर चाक के सहारे मिट्टी के दिए,सुराही,खिलौने बनाने की अद्भुत कला उनके उंगली व घूमते हुए चाक से बनकर निकलती है। इन्हीं कसघड़ और कुम्हार के द्वारा बनाए ग‌ए मिट्टी के दिए जलाकर भले ही लोग दीपावली मे अपने घरों को जगमगाते हों परन्तु अब भी इन बिरादरी के लोगों का अब तक विकास नही हो सका है वे आज भी ज्यादातर झुग्गी झोपड़ियों में जीवन यापन करने को मजबूर हैं।झुग्गी झोपड़ियों में गुजर बसर करने वाले कुम्हारों व कसघड़ परिवारों को एक अदद आवास व रोजगार के लिए मदद की दरकार है।


         वी. संघर्ष
         बलरामपुर

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