,राजकुमार गुप्ता
मथुरा।कोसीकलां कौशिक नाम के ब्राह्मण की पत्नी के सतीत्व के कारण नाम पड़ा कोसी कुरुम पुराण में मिलता है इसका विस्तार में उल्लेख ।
             गौरी गोपेश्वर श्री शिव महापुराण कथा के विश्व विख्यात मर्मज्ञ पंडित प्रदीप मिश्रा ने कोसीकलां के अजीजपुर सीमा में स्थित श्री जी निकुंज परिसर में आयोजित कथा में श्रोताओं को भक्ति भावपूर्ण श्रवण कराते हुए बृज के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कोसी व् नंदगांव के वर्णन में बताया कि कौशिक नाम का एक अति बलशाली ब्राह्मण था, जिसने अपने बल का गलत कार्यों में इस्तेमाल कर काफी धन दौलत अर्जित की । इसके चलते उसका अहंकार चरम पर पहुँच गया और उसके अत्याचार से चहुंओर हाहाकार मचने लगा, इसकी परिणीति यह हुई कि उसको भयंकर कोढ़ हो गया और उसके शरीर के प्रत्येक अंग में गलाव शुरू हो गया लेकिन उसकी इतनी दयनीय स्थिति होने के बावजूद भी उसके क्रोध में तनिक मात्र भी कमी नहीं आ रही थी । वह क्रोध में अपनी पत्नी को भला बुरा कह देता थोड़ी से देरी होने पर ही खाने की थाली आदि फैँक देता, इसके बावजूद भी उसकी पतिव्रता पत्नी कोसी (कौशिकी) उफ्फ भी नहीं करती ।
            एक दिन कौशिक ने अपनी पत्नी से कहा कि उसे प्रभु के दर्शन करने के लिए मंदिर जाना है, इसके लिए पत्नी उनको लेकर चल पड़ी, लेकिन ब्राह्मण के पीड़ा अधिक होने के चलते उसपर चला नहीं जा रहा था । ब्राह्मण की पत्नी उन्हें सहारा देकर चल रही थी तभी तेज न चल पाने के कारण समीप से गुजर रहे मांडव ऋषि से उसका पैर लग गया, इस बात से नाराज होकर मांडव ऋषि ने उसे कल का सूर्य न देख पाने का श्राप दे दिया । ऋषि से कोसी (कौशिकी) ने श्राप वापिस लेने का अनुनय निवेदन किया लेकिन ऋषि ने उसे जवाब देते हुए कहा कि ऐसे पति का क्या करेगी, जिसके सारे शरीर में कोढ़ लग गया है और आये दिन वह तुम्हें प्रताड़ित भी करता रहता है, कोसी ने ऋषि से कहा आप इन्हें जीवन दान दें, मांडव ऋषि नहीं माने । कोसी (कौशिकी) ने कहा कि ऐसा है तो कल सूर्य ही नहीं उगेगा, ऋषि ने कहा ऐसा नहीं हो सकता लेकिन अगले दिन सूर्य नहीं उगा, दूसरे, तीसरे, चौथे व् पांचवे दिन भी जब सूर्य नहीं उगा तो देव देवताओं आदि में भी हड़कंप मच गया । सभी लोग एकत्रित होकर महादेव के पास पहुंचे तो महादेव ने बताया कि यह सती व्रता कोसी की वजह से हो रहा है, इस बात को सुनकर सभी ने मांडव ऋषि से श्राप वापिस लेने को कहा तो मांडव ऋषि ने अपना श्राप वापिस लेते हुए उन्हें अखंड सौभाग्यवती का वर दिया और इसी स्थान का नाम कोसी (कौशिकी) के नाम पर कोसीकलां पड़ा जिसका उल्लेख कुरुम पुराण में पढ़ने को मिलता है ।
            कथा के समापन पर आयोजक सुभाष बांसईया, रेनू बांसईया, सौरभ बांसईया, सोनल बांसईया, कैबिनेट मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण, पालिकाध्यक्ष धर्मवीर अग्रवाल, कमल किशोर आदि ने व्यास पीठ की आरती उतारी वहीं उपस्थित श्रद्धालुओं ने एकाग्र होकर देवाधिदेव महादेव का गुणगान किया ।
                    
          हमें भी इस भागदौड़ भरे जीवन में प्रभु श्री शिव शम्भू की कथा का रसपान करने का परम् सौभाग्य प्राप्त हुआ ।

 नंदकोष स्थली कुश आधिपत्य स्थली कुशवन

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