राजकुमार गुप्ता 
 देश की सीमा की रक्षा में लगे सैन्य बलों के बलिदान की आपने कई कहानियां सुनी होंगी लेकिन हमारे पुलिसकर्मियों के शौर्य और बलिदान का इतिहास भी किसी से कम नहीं है। नेशनल पुलिस डे यानी पुलिस स्मृति दिवस सन 1959 में चीन से सटी भारतीय सीमा की रक्षा में बलिदान देने वाले शहीद दस पुलिसकर्मियों के शौर्य, बलिदान और शहीदों के सम्मान में हर साल 21अक्टूबर को  नेशनल पुलिस डे मनाया जाता है।

देशवासियों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले पुलिस के अमर शहीदों को
शत-शत नमन करते हुए इस सन्दर्भ में राष्ट्रवादी सामाजिक चिंतक एवम वरिष्ठ समाजसेवी मुशरफ खान ने बताया कि हमारे पुलिसकर्मियों के शौर्य, बलिदान और शहीदों के सम्मान में हर साल 21 अक्टूबर को पुलिस स्मृति दिवस मनाया जाता हैं। अदम साहस, पराक्रम और बलिदान के प्रतीक देश की आंतरिक सुरक्षा एवं शांति व्यवस्था बनाते हुए अपने कर्तव्य का निर्वहन करने वाले, सेवा और निष्ठां के पर्याय, देश सेवा में सदैव समर्पित पुलिस बल के हम सभी देशवासियों को अपने सैनिकों की दृढ़ संकल्प एवं समर्पण पर गर्व है। राष्ट्रहित में अपने कर्तव्य को निभाते हुए जीवन का बलिदान करने वाले आप देश के नायक है।देश व नागरिकों की सुरक्षा करते हुए शहीद हुए पुलिसकर्मी ही देश एवं समाज के सच्चे हीरो हैं। राष्ट्रहित में पुलिस कर्मियों की शहादत से सीख लेकर अच्छे नागरिक बनने की कोशिश करनी चाहिए। उनको हमारा नमन, हम सुख से सोते हैं, क्योंकि पुलिस हमारी सुरक्षा ने रातों को जागती हैं। हर रोज आप अपराध से मुकाबला करते हैं। आज हम वीर सिपाहियों को नम आंखों से याद करते हैं। पुलिस स्मृति दिवस पर सभी पुलिसकर्मियों को नमन करते हैं। जिन्होंने अपने कर्तव्य पथ पर अपना सर्वोच्च बलिदान किया। पुलिस के शहीद जवानों की निस्वार्थ सेवा समाज के लिए प्रेरणादाई है। ऐसे सभी वीर सिपाहियों के परिजनों को भी हमारा प्रणाम है। हम सभी को भयमुक्त समाज के निर्माण और अपराध को कम करने के लिए पुलिस और प्रशासन को सहयोग देना चाहिए। आखिर पुलिस वाले भी तो हम सभी के परिवार से ही तो रात दिन कड़ी मेहनत से पढ़ाई लिखाई कर विभाग में आते हैं। इसलिए पुलिस शत्रु, नही मित्र व रक्षक है और नेशनल पुलिस डे को मनाने का उद्देश्य भी यहीं हैं कि एक आम नागरिक पुलिस को नजदीक से जान सके और बहादुर नौजवानों को इस सेवा से जुड़ने के लिए कैसे उत्साहित कर पाएँ। हमारे लिए बहुत ज़रूरी है कि हम उन रास्तों को हमेशा याद रखें जिन पर चलकर हमें ये मालूम हुआ है कि एक राष्ट्र के रूप में हम कौन हैं और क्या हैं ? हर राज्य का पुलिस बल उन बहादुर पुलिस वालों की याद में इस दिवस का आयोजन करता है, जिन्होंने जनता एवं शांति की रक्षा के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया। लेकिन ज्यादातर देखा जाता हैं कि इन परेडों में लोगों की उपस्थिति बहुत कम होती है। पुलिस द्वारा आयोजित परेडों की वह गवाह है। देश के करीब 13 लाख से ज्यादा पुलिस कर्मियों के इस महत्त्वपूर्ण दिन को हम नकार नहीं सकते है। देश मे प्रतिवर्ष लगभग 1000 पुलिसकर्मी अपना फर्ज निभाते हुए शहीद होते हैं, लेकिन इनमें से किसी को भी अपने कार्यों और फर्ज को अंजाम देते हुए शहीद हो जाते हैं ज्यादा सराहना नहीं मिलती, न ही उनके बलिदानों की कहानी लोगों तक पहुँचती है। दरअसल फर्ज की बेदी पर अपनी जान कुर्बान करने वाले ये सिपाही छिपे हुए नायक होते हैं। पुलिस हम सभी को चाहिए लेकिन इसके साथ भावना शायद ही कोई जोड़ता हो, इसके अंदर के दर्द को महसूस करता हो। पुलिस स्मृति दिवस पर आज हम सभी शहीद पुलिस कर्मियों को हुये उन सभी हिम्मत से अपराध से लड़ रहे पुलिस व अधिकारी एवं कर्मियों के जज्बे को बारम्बार नमन करते है। जो हमें सुरक्षित समाज भयमुक्त समाज के लिए प्रयासरत हैं। हमें सुरक्षित समाज और भयमुक्त वातावरण देने के लिए थैंक्यू पुलिस। जय हिंद।

श्री खान साहब ने बताया कि कुछ गिने चुने लोगों की वजह से आज विडंबना ये है कि समूचे पुलिस विभाग को बदनाम किया जाता है। अगर पुलिस न होती तो समाज की कल्पना करिए, बिना पुलिस के समाज की कल्पना मात्र करने से रूह काँप उठती है। जो लोग पूरे महकमे पर आरोप लगाते हैं। वो कभी पुलिस की तरह समाज के लिए बलिदान दें। ये पुलिस ही है, जो देश के अंदर कानून व्यवस्था बनाए रखने में अपना सर्वस्व व प्राणो का बलिदान देती है। पुलिस सभी को चाहिए लेकिन इसके साथ भावना शायद ही कोई जोड़ता हो, इसके अंदर के दर्द को महसूस करता हो। शर्म आती है ऐसे लोगों पर जिनको सिर्फ़ रौब दिखाने के काम के लिए पुलिस चाहिए लेकिन सहयोग के नाम पर ऊल जलूल बातें बनाकर पल्ला झाड लेते हैं। आज हमारा एक बड़ा प्रश्न उन सभी आदरणीय लोगों से होगा, जो दुहाई देते हैं कानून व्यवस्था के लचीलेपन की, वो बताएं आज के दिन कितने शहीद पुलिसकर्मियों या दिवंगत या जिनहोने अच्छे काम किए हैं उनके यहाँ गए हैं या उनके स्मृति के अवसर पर शरीक हुये हैं। अगर नही तो, उनको कोई हक नही जो ऊल जलूल बकें। और हम सब ने वो वैश्विक संकट का मंजर देखा था जब कोरोना काल में आम लोग मौत के तांडव के डर से अपने घरों में कैद थे। तब कुछ जिम्मेदारों ने अपनी जिम्मेदारी से अपना मुह छिपा लिया था। वही, राष्ट्रहित में पुलिस इंसानियत का फर्ज़ निभा रही थी और उस कर्ज को हम कभी भी चुका नही सकते। पुलिसवालों ने अपने प्राणो की बाजी लगाकर कानून व्यवस्था संभालने के साथ - साथ निःस्वार्थ मानवसेवा भी की जो सदैव पुलिस के इतिहास में अविस्मरणीय व स्वर्णिम अक्षरों में पुलिस की सर्वश्रेष्ठ सेवाओ में होगा। हम प्रायः पुलिसकर्मी को अपना फर्ज पूरा करते देखते रहते हैं और अक्सर हम उनकी आलोचना करते हैं। उन पर आरोप भी लगाते हैं जिनमें से कुछ सच भी साबित हो जाते हैं, कुछ गलत, पर हम भूल जाते हैं कि ये लोग कितना कठिन कार्य करते हैं। आज हमें उनकी सेवा के उस नजरिए को देखना है, जिसमें वो दूसरों की जान व माल की रक्षा के बदले अपनी जिन्दगी से समझौता कर लेते हैं। पुलिस स्मृति दिवस पर हम गर्व से कहते हैं कि पुलिस है, तो समाज की कल्पना है। आज हम उन सभी कोरोनाकाल के शहीदो को भी भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुये व आज भी हिम्मत से अपराध से लड़ रहे पुलिस अधिकारी या कर्मियों के जज्बे को बारम्बार नमन करते हैं। जो हमें सुरक्षित समाज भयमुक्त समाज के लिए प्रयासरत हैं। हम गर्व से कहते हैं कि पुलिस है तो समाज कि कल्पना है। हम सभी को भयमुक्त समाज के निर्माण और अप्रराध को कम करने के लिए पुलिस और प्रशासन को सहयोग देना चाहिए, आखिर पुलिस वाले भी तो हम सभी के परिवार से ही तो आते हैं, पुलिस शत्रु, नही मित्र व रक्षक है, जय हिन्द। 

उन्होंने आगे बताया कि देश की सीमा की रक्षा में लगे सैन्य बलों के बलिदान की आपने कई कहानियां सुनी होंगी लेकिन हमारे पुलिसकर्मियों के शौर्य और बलिदान का इतिहास भी किसी से कम नहीं है। कुछ ऐसा ही साल 1959 में हुआ था, जब पुलिसकर्मी पीठ दिखाने के बजाय चीनी सैनिकों की गोलियां सीने पर खाकर शहीद हुए। चीन के साथ देश की सीमा की रक्षा करते हुए जो बलिदान दिया था, उसकी याद में हर साल पुलिस स्मृति दिवस मनाया जाता है। बात 21 अक्टूबर सन 1959 की है। 10 पुलिसकर्मियों ने जब अपना बलिदान दिया था। तब तिब्बत के साथ भारत की 2,500 मील लंबी सीमा की निगरानी की जिम्मेदारी भारत के पुलिसकर्मियों की थी। इस घटना से एक दिन पहले 20 अक्टूबर, 1959 को तीसरी बटालियन की एक कंपनी को उत्तर पूर्वी लद्दाख में हॉट स्प्रिंग्स नाम के स्थान पर तैनात किया गया था। इस कंपनी को 3 टुकड़ियों में बांटकर सीमा सुरक्षा की बागडोर दी गई थी। लाइन ऑफ कंट्रोल में ये जवान गश्त के लिए निकले। आगे गई दो टुकड़ी के सदस्य उस दिन दोपहर बाद तक लौट आए लेकिन तीसरी टुकड़ी के सदस्य नहीं लौटे। उस टुकड़ी में दो पुलिस कॉन्स्टेबल और एक पोर्टर शामिल थे। अगले दिन फिर सभी जवानों को इकट्ठा किया गया और गुमशुदा लोगों की तलाश के लिए एक टुकड़ी का गठन किया गया। गुमशुदा हो गए पुलिसकर्मियों की तलाश में तत्कालीन डीसीआईओ करम सिंह के नतृत्व में एक टुकड़ी 21अक्टूबर 2018 को सीमा के लिए निकली। इस टुकड़ी में करीब 20 पुलिसकर्मी शामिल थे। करम सिंह घोड़े पर सवार थे, जबकि बाकी पुलिसकर्मी पैदल थे। पैदल सैनिकों को 3 टुकड़ियों में बांट दिया गया था। तभी दोपहर के समय चीन के सैनिकों ने एक पहाड़ी से गोलियां चलाना और ग्रेनेड्स फेंकना शुरू कर दिया। अपने साथियों की तलाश में निकली ये टुकड़ियां खुद की सुरक्षा का कोई उपाय नहीं करके गई थीं, इसलिए ज्यादातर सैनिक घायल हो गए। तब उस हमले में देश 10 वीर पुलिसकर्मी शहीद हो गए जबकि सात अन्य बुरी तरह घायल हो गए। यही नहीं, इन सातों घायल पुलिसकर्मियों को चीनी सैनिक बंदी बनाकर ले गए जबकि बाकी अन्य पुलिसकर्मी वहां से निकलने में कामयाब रहे। 13 नवंबर, 1959 को शहीद हुए दस पुलिसकर्मियों का शव चीनी सैनिकों ने लौटा दिया। उन पुलिसकर्मियों का अंतिम संस्कार हॉट स्प्रिंग्स में पूरे पुलिस सम्मान के साथ हुआ। उन्हीं हमारे पुलिसकर्मियों के शौर्य, बलिदान और शहीदों के सम्मान में हर साल 21 अक्टूबर को नैशनल पुलिस डे मनाया जाता हैं।

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