▪️बिंबो में बात करना दीनदयाल जी की सबसे बड़ी खूबी– इंदुशेखर तत्पुरुष
▪️एकात्म मानव दर्शन का उद्भव पारलौकिकता और आध्यात्मिकता के विरुद्ध में एक नींव की तरह है –इंदुशेखर तत्पुरुष
▪️विश्व की हर व्यवस्था, हर तंत्र एक वाद आधारित है किंतु एकात्मक मानव का संदेश देने वाला यह भारतीय दर्शन कोई वाद नहीं बल्कि एक विशिष्ट दर्शन है– इंदुशेखर तत्पुरुष
▪️ वर्तमान समय में कथेतर की बढ़ती प्रसिद्ध में दीनदयाल जी के उपन्यासों का विशिष्ट योगदान है– इंदुशेखर तत्पुरुष


▪️व्यक्ति,समाज,प्रकृति और परमात्मा के बीच का सामंजस्य है एकात्मक मानव दर्शन–इंदुशेखर तत्पुरुष

▪️दीनदयाल जी के उपन्यासों को पढ़ने से पहले उनके लेखन मकसद को जानना जरूरी –डॉ.राजीव रंजन गिरि



▪️ अगर साहित्य की विभिन्न कोटिया ना होती तो भी दीनदयाल जी के उपन्यास नववेली कोटि में आते– डॉ.राजीव रंजन गिरि
▪️ सर्वग्राहिता को ध्यान में रखते हुए सरल एवं सहज शिल्प का चयन पं.दीनदयाल जी का एक विशिष्ट कदम –डॉ.राजीव रंजन गिरि

▪️अपने हितों की तिलांजलि देकर राष्ट्रहित के लिए समर्पण भाव जगाना ही दीनदयाल जी का मुख्य लक्ष्य था –डॉ.राजीव रंजन गिरि
▪️दीनदयाल जी सिर्फ राजनीतिज्ञ ही नहीं बल्कि बड़े दार्शनिक,चिंतक और विचारक भी थे– प्रोफेसर कुमुद शर्मा

▪️भारतीय दर्शन में हमेशा से ही सत्य का संधान करने के लिए स्वस्थ संवाद की परंपरा रही है –प्रोफेसर कुमुद शर्मा

गुलामी के हर अंश से मुक्ति ही इस अमृतकाल का भी मुख्य लक्ष्य है– प्रोफेसर कुमुद शर्मा

अगर दीनदयाल जी  राजनीतिज्ञ नहीं होते तो वह निश्चित ही बड़े साहित्यकार होते–प्रोफेसर कुमुद शर्मा

व्यक्ति,समाज,प्रकृति और परमात्मा के बीच का सामंजस्य है एकात्मक मानव दर्शन। दिल्ली विश्वविद्यालय के  जीवन पर्यंत शिक्षण संस्थान (ILLL)  के सभागार में पं.दीनदयाल उपाध्याय जी के 107वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में हुए ' एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी' का आयोजन किया गया जिसका मुख्य विषय था 'पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के उपन्यासों में रचनात्मक सौंदर्य एवं एकात्मक मानवदर्शन'। कार्यक्रम में विशिष्ट वक्ता के रूप में उपस्थित रहे इंदुशेखर तत्पुरुष जी ने कहा कि दीनदयाल जी का दर्शन सर्वात्म और एकात्मक के भाव को जागृत करने वाला है हालांकि विश्व की हर व्यवस्था,हर तंत्र एक वाद आधारित है किंतु यह भारतीय मानव दर्शन कोई वाद नहीं बल्कि एक विशिष्ट दर्शन है जो इस देश की अखंडता को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है।




 इंदुशेखर जी ने यह भी बताया कि दीनदयाल जी के उपन्यासों में बिंबो का अद्भुत प्रयोग हुआ है साथ ही साथ उन्होंने यह भी कहा कि अगर कथेतर की बढ़ती प्रसिद्धि को देखा जाए तो उसमें दीनदयाल जी के उपन्यासों का अहम योगदान नज़र आएगा।
    पं.दीनदयाल जी ने दो उपन्यास लिखे हैं, पहला 1946 में 'सम्राट चंद्रगुप्त' तथा दूसरा 1947 में 'जगद्गुरु शंकराचार्य'। इनका पहला उपन्यास 'सम्राट चंद्रगुप्त' बच्चों के लिए था जबकि ' जगद्गुरु शंकराचार्य' उपन्यास प्रौढ़ व युवा वर्ग के पाठकों के मार्गदर्शन के लिए लिखा। दीनदयाल जी के एकात्मक मानवदर्शन की पूर्वपीठिका उनके उपन्यासों में एक चिंतन के रूप में दिखती है जबकि उन्होंने इस दर्शन का प्रतिपादन 1965 में किया। दीनदयाल जी के उपन्यासों में ही नहीं बल्कि उनके दर्शन में व्यक्ति,समाज,प्रकृति और परमात्मा के बीच एक अद्भुत सामंजस्य दिखता है। व्यक्ति और समाज दो अलग-अलग नहीं बल्कि व्यक्ति और समाज सहउत्पाद हैं ऐसा पंडित दीनदयाल जी का मानना था। लौकिकता और यथार्थ में वर्णन करना दीनदयाल जी की सबसे बड़ी खूबी थी। दीनदयाल जी नें लोक और शास्त्र, वर्तमान और भूत के द्वंदों को मिटाकर सामंजस्य का पाठ पढ़ाया।

                 कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन व  सरस्वती वंदना के साथ हुई तथा स्वागत भाषण आई ट्रिपल एल के निदेशक प्रो.संजय रॉय ने दिया। प्रो. रॉय ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि दीनदयाल जी का मुख्य उद्देश्य शिक्षा के साथ-साथ संस्कृति को भी बढ़ावा देना था उनकी नजरों में शिक्षा एक निवेश है।  दीनदयाल जी ने एकात्मक मानवदर्शन और रचनात्मक सौंदर्य के साथ-साथ विकेंद्रीकरण,स्वशासन और सामाजिक सद्भाव को प्रोत्साहन देने का कार्य किया। वहीं पं.दीनदयाल जी  का यह भी मानना था कि यदि सामाजिक सद्भाव रहेगा तभी समाज का विकास संभव है। जबकि सी.पी.डी.एच.ई, निदेशक प्रो.गीता सिंह ने कहा कि दीनदयाल जी ने अपना पूरा जीवन ही एकांत दर्शन के लिए समर्पित कर दिया साथ ही साथ उन्होंने यह भी बताया कि अपनी संस्कृति को समृद्ध करने के लिए एकात्मक मानवदर्शन की आवश्यकता है जो देश को एक सूत्र में बांध सके। तत्पश्चात हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. मनीष, डॉ.ऋषिकेश सिंह व डॉ.प्रदीप सिंह ने अतिथियों का स्वागत व सम्मान अंगवस्त्र व स्मृतिचिन्ह भेंट कर किया। इस कार्यक्रम में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ अध्यक्ष तुषार डेढ़ा भी उपस्थित रहे।
           कार्यक्रम में वक्ता के रूप में उपस्थित रहे दि.वि. हिंदी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. राजीव रंजन गिरि ने दीनदयाल जी के इस विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि अगर साहित्य की कोई भी कोटि नहीं होती तो दीनदयाल की के उपन्यासों को नववेली कोटि में रखा जाता। दीनदयाल जी के उपन्यासों को पढ़ने से पहले अगर उनके  लेखन मकसद को न जाना जाय तो पाठक वर्ग को निराशा भी हाथ लग सकती है। उन्होंने कहा कि यदि प्रेमचंद की परिपाटी या मिलान कुंधेरा को ध्यान में रखकर हम उनके उपन्यासों को पढ़ेंगे तो हमें लचर महसूस हो सकते हैं इसलिए उनकी रचनाओं को पढ़ने से पहले उनके मकसद को जानना बेहद जरूरी है। उनकी नज़र में  व्यक्ति नहीं बल्कि संगठन ज्यादा महत्वपूर्ण है उन्होंने शिल्प को सहज रखा जिससे आमजन उनके लक्ष्य से जुड़ सकें। दीनदयाल जी भारतीय चित्त और मानव मन का परिष्कार कर उसे राष्ट्र के लिए तैयार करना चाहते थे। जनार्दन राय नागर ने शंकराचार्य के जीवन पर 11 खंडों में पुस्तक लिखी है उसको पढ़ने के बाद यदि दीनदयाल जी के उपन्यासों को, उनके दर्शन को पढ़ा जाए तो उनका महत्व और भी बड़ जाता है। दीनदयाल जी के उपन्यासों में बौद्ध और हिंदू दर्शन का सामंजस्य भी नज़र आता हैं। शंकराचार्य जी ने धर्म के पतन और ढलती हुई बौद्ध धर्म को ढाल बनाकर उसका प्रयोग किया और बुद्ध को ईश्वर का रूप मानकर, बौद्ध धर्म को हिंदू धर्म का ही एक परिष्कृत रूप माना। शंकराचार्य का दर्शन ऊपर के भेदों में छिपी हुई अंतर्मन का सिनाक करने वाली है। वहीं अपने हितों की तिलांजलि देकर राष्ट्रहित के लिए समर्पण भाव जगाना ही दीनदयाल जी का भी मुख्य लक्ष्य था।
                कार्यक्रम में अध्यक्षीय संबोधन कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो.कुमुद शर्मा जी( उपाध्यक्ष,केंद्रीय साहित्य अकादमी एवम् अध्यक्ष ,हिंदी विभाग, दि.वि.वि.) नें दिया। प्रो.कुमुद शर्मा ने दीनदयाल जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि वे एक अच्छे दार्शनिक,चिंतक व विचारक थे। उन्होंने जब उपन्यास लिखे तो उनका ध्येय बड़ा था,उद्देश्य बड़ा था। उनका मकसद यह भी था कि लोग गुलामी के हर अंश से मुक्त हों। पाठकों में वैचारिक संपन्नता और राष्ट्रहित के लिए समर्पण भाव जगाना उनका मुख्य लक्ष्य था वही आगे इस विषय पर बात करते हुए कहा कि यदि दीनदयाल जी राजनीतिज्ञ नहीं होते तो वह निश्चित ही बड़े साहित्यकार होते। उन्होंने लेखन में रचनात्मक क्लेवर और शैली का विशेष ध्यान रखा।क्लेवर ऐसा रखा जिससे उनके विचार,उनका चिंतन पाठकों के दिलों में उतरकर उनकी  रातों की नींद उड़ाकर उनमें राष्ट्रहित के लिए खुद को समर्पित करने का भाव जगा दें। इसी उद्देश्य से शिल्प का चयन भी अत्यंत सरल,सुबोध व सहज किया। दीनदयाल जी भारतीय सांस्कृतिक चेतना को जगाने वाले बड़े महानायकों में से एक थे उन्होंने देश को संगठित करने के लिए युवाओं का आह्वाहन किया। 'जगद्गुरु शंकराचार्य' उपन्यास के जरिए उन्होंने तेज,तप और बलिदान की प्रेरणा दिया। साथ ही एक अच्छे साहित्यकार की तरह अपनी कृति में अपने विचारों को पिरोकर एक ठोस दर्शन का प्रतिपादन किया। दीनदयाल जी को वेदविरोध और देशविरोध असह था। विपत्ति में चुप बैठने को भी पं.दीनदयाल उपाध्याय जी बुरा मानते थे। उनके उपन्यासों के दोनों ही चरित्र भारतीय संस्कृति के एंटीना हैं। भारतीय परंपरा में हमेशा से ही स्वस्थ संवाद की परंपरा रही है और इस परंपरा के माध्यम से ही हमेशा से सत्य का संधान होता रहा है दीनदयाल जी ने अपने उपन्यास 'जगतगुरु शंकराचार्य' में मंडन मिश्र और शंकराचार्य के स्वस्थ संवाद तथा उनकी पत्नी और मंडन मिश्र के संवाद में एक सशक्त स्त्री जिसमें प्रतिनिधित्व करने की क्षमता के साथ-साथ मुखर विरोध करने की शक्ति भी है। दीनदयाल उपाध्याय जी के उपन्यासों में अंकित इन स्वस्थ संवादों से आज के युवा खुलकर किसी विषय पर स्वस्थ संवाद करने की प्रेरणा भी ले सकते हैं।
         हालांकि इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि व दीनदयाल जी और उनके दर्शन पर शोध करने वाले प्रथम व्यक्ति रहे डॉ.महेशचंद्र शर्मा जी का अचानक स्वास्थ्य खराब हो जाने  के कारण  कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो सकें। डॉ. शर्मा ने  कार्यक्रम में अपना वीडियो संदेश भेजा। आदरणीय डॉ.शर्मा ने संदेश में कहा कि उपन्यास 'चंद्रगुप्त' और 'जगद्गुरु शंकराचार्य' के माध्यम से दीनदयाल उपाध्याय जी अधीनता के समय में राष्ट्र को स्वाधीनता का संदेश देना चाहते थे। महेशचंद्र जी का यह संदेश जो कि वीडियो के माध्यम से था, को देख युवा श्रोताओं को विपत्ति में हार मानकर बैठ जाने के बजाय निरंतर प्रयासरत रहने का एक अहम संदेश भी मिला जो दीनदयाल जी के मूल सूत्रों  में से एक था।
        आपको जानकारी के लिए बता दें कि इस कार्यक्रम का सफल आयोजन दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधार्थी  अनिल राजगढ़ के नेतृत्व में उनकी पूरी व्यवस्था टोली के  सहयोग से हुआ।अंत में कार्यक्रम आयोजक ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए सभी मंचासीन अतिथिगण व प्रबुद्ध श्रोताओं का आभार वक्त करते हुए व्यवस्था टोली के सदस्यों राजीव,तनुज,विश्वदीप राज ,रितिक वर्मा,गोपाल,उमेश गुप्ता ,आकाश मिश्रा आदि के प्रति  विशेष आभार व्यक्त किया क्योंकि व्यवस्था टोली ही किसी बड़े कार्यक्रम को अंजाम देने में सबसे अहम होता है।कार्यक्रम के मंच संचालन का सफल दायित्व निर्वहन  ऋतुराज व वंशिका छाबड़ा ने किया जबकि कार्यक्रम का समापन कल्याण मंत्र के सामूहिक पाठ के साथ आकाश मिश्रा ने किया। 


 – प्रेस विज्ञप्ति रिपोर्ट लेखन,
     आकाश मिश्रा, 
     दिल्ली विश्वविद्यालय ।

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