संस्कृति और परंपराओं के शहर बनारस ने अपनी थाती को संजो कर रखा है। यही कारण है कि सात वार में नौ त्योहार मनाए जाते हैं। विजयादशमी के दूसरे दिन काशी ही नहीं पूरा देश राम और भरत के मिलन का साक्षी बनता है। काशी में 480 सालों से अनवरत भरत मिलाप की परंपरा चली आ रही है।काशी और काशी की जनता यदुकुल के कंधे पर रघुकुल के मिलन की साक्षी पिछले 480 सालों से बन रही है। नाटी इमली के भरत मिलाप की कहानी 480 साल पहले मेघा और तुलसी के अनुष्ठान से आरंभ हुई। पांच टन का वजनी पुष्पक विमान अपने माथे पर धरकर जब यादव बंधु प्रस्थान करते हैं तो पल भर के लिए वक्त ठहर सा जाता है।

मैदान में  तिल रखने को जगह नहीं होती

अस्ताचलगामी भगवान भास्कर भी इस दृश्य को निहारने के लिए अपने रथ के पहियों को थाम लेते हैं। श्रद्धा और आस्था के महामिलन का साक्षी बनने के लिए श्रद्धालुओं का ज्वार ऐसा उमड़ता है कि तिल रखने को जगह नहीं होती। चित्रकूट रामलीला समिति के व्यवस्थापक पं. मुकुंद उपाध्याय ने बताया कि मान्यता है कि 479 साल पहले रामभक्त मेघा भगत को प्रभु के सपने में हुए थे।

सपने में प्रभु के दर्शन के बाद ही रामलीला और भरत मिलाप का आयोजन किया जाने लगा। आज भी ऐसी मान्यता है कि कुछ पल के लिए प्रभु श्रीराम के दर्शन होते हैं। यही वजह है कि महज कुछ मिनट के भरत मिलाप को देखने के लिए हजारों की भीड़ यहां हर साल जुटती है।

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