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जी-20 समूह की बैठक और बैठक के बाद वाह-वाही का खुमार अब उतर जाना चाहिए। इस आयोजन की कथित उपलब्धियों की पतवार पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में सरकारी पार्टी की वैतरणी पार करने के लिए नाकाफी है। सरकार को अब वाह-वाही के खुमार से बाहर निकलकर जमीन पर वापस लौटना चाहिए और देश को बताना चाहिए की संसद के विशेष सत्र की कार्यसूची क्या है ?
जी-२० समूह की बैठक से हमें यानी देश को क्या हासिल हुआ ये सब जल्द सामने आ जाएगा,और आना भी चाहिए क्योंकि सम्मेलन के समापन के बाद किसी ने भी देशी-विदेशी प्रेस-मीडिया के साथ कुछ भी साझा नहीं किया । आरोप है कि हमारी प्रचंड बहुमत वाली सरकार ने ऐसा नहीं होने दिया। यदि ये सही है तो इससे बड़ी उपलब्धि इस सम्मेलन की क्या हो सकती है । हम दुनिया को ये बताने में कामयाब रहे कि प्रेस की आजादी को लेकर हम कितने उदार हैं ? हमारे यहां माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के अलावा कोई भी मन की बात नहीं कर सकता। मीडिया से तो बिलकुल नहीं। मुझे याद आता है कि अटल जी के जमाने में एक देश के राष्ट्राध्यक्ष ने आगरा में भारतीय प्रेस के साथ खुलकर गुफ्तगू की थी ,क्योंकि उन्हें ऐसा करने का अवसर दिया गया था। जो बाइडेन को नहीं दिया गया।
बहरहाल मिट्टी के भांडे में कौन सा गुड़ फूटा ये न हम जानते हैं और न दुनिया जानती है। सूचना क्रान्ति के युग में इतनी पर्दादारी का क्या मकसद हो सकता है ,राम ही जाने ! हमारी यानि देश की जनता की दिलचस्पी जी-20 के फैसलों ,कामयाबियों और वाह-वाहियों में नहीं है । हम जानना चाहते हैं की संसद के विशेष सत्र की कार्यसूची क्या है ? क्यों बुलाया गया है ये विशेष सम्मेलन ? कौन सा पहाड़ टूट रहा है देश के ऊपर ? क्या नया इतिहास लिखा जाना है इस विशेष सम्मेलन के बहाने ? सरकार विशेष सत्र की कार्यसूची को लेकर इतनी संवेदनशील क्यों है की किसी को भनक होई लगने नहीं दे रही ?
हमारी लोकप्रिय सरकार के पिछले तमाम फैसले दिखाते हैं की वो कितनी भ्रमित और भयभीत है ? जी-20 के सम्मेलन में आये अतिथियों के लिए राष्ट्रपति भवन में आयोजित भोज में कांग्रेस के अध्यक्ष को नहीं बुलाया गय। अच्छा ही हुआ,वे वहां जाकर आखिर करते भी क्या ? सम्मेलन में आये तमाम विदेशी मेहमान कांग्रेस नेत्री श्रीमती सोनिया गांधी से मिलना चाहते थे ,उन्हें नहीं मिलने दिया गया,बहाने बना दिए गए। आखिर इस सब से क्या हासिल होना है ? सबका साथ ,सबका विकास इस तरह की संकीर्णता से तो मुमकिन नहीं है न भाई। देश के विकास में देश के लोग ही भागीदारी नहीं कर्नेगे तो कौन करेगा ? आप भले ही घर के भीतर सियासी अदावत पालिये लेकिन कम से कम दुनिया के सामने तो एक दिखाई दीजिये।
मुझे अच्छा ये लगा कि हमारी सरकार ने इस बार जी-20 सम्मेलन में शामिल होने आये किसी भी विदेशी मेहमान को झूला नहीं झुलाया नहीं झुलाया । सरकार को जल्द समझ में आ गया कि किसी को झूला झुलाने से कुछ हासिल नहीं होता। हासिल करने के लिए दृढ़ता की जरूरत होती है,झूला झुलाने की नहीं । सरकार ने इस बार झूला झुलाने के बजाय विदेशी मेहमानों को जादू की झप्पियाँ दीं । इस सम्मेलन में रूस वाले नहीं आये ,ये थोड़ा बेतुका लगा ,लेकिन एक भ्रमित और भयभीत राष्ट्राध्यक्ष और कर भी क्या सकता था,सिवाय गैर हाजिर रहने के। रूस के सुप्रीमो पुतिन के साथ हमारी सहानुभूति है ,हमने वर्षों तक सिर पर लाल टोपी रखी है दोस्ती निभाने के लिये । अब हमारी टोपी का रंग बदलकर काला हो गया है।
हम अपनी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि ये मानते हैं कि सरकार ने अपने सभी मित्र देशों के राष्ट्राध्यक्षों को महात्मा गांधी की समाधि के सामने ला खड़ा किय। एक सऊदी अरब के प्रिंस वहां नहीं गए ,उनकी कोई विवशता रही होगी । वे समझे होंगे कि उन्हें मजार पर ले जाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि प्रिंस सलफ़ी है और सलफ़ी [ या जिन्हें अहले हदीस कहते हैं ] किसी तरह की समाधि या मज़ार पर नहीं जाते हैं। अच्छी बात ये है कि सौउदी अरब के प्रिंस ने भारत के साथ दोस्ती का हाथ थाम रखा है। सऊदी अरब के प्रिंस के साथ मोदी जी की दोस्ती से भारत के मुसलमान मुतमईन होकर भाजपा के साथ खड़े नहीं होने वाले। उन्हें जादू की झप्पी तो खुद मोदी जी को और मोहन भागवत को ही देना पड़ेगी।
आपको याद होगा कि हमारी सरकार के प्रेम पात्र बदलते रहते है। पहले हम शी जिनपिंग पर फ़िदा थे। अब जो बाइडेन पर लट्टू हैं। जो बाइडेन से भारत को क्या मिलेगा ये समझ पाना कम से आम आदमी के बूते की बात तो नहीं है। बाइडेन उस देश के प्रमुख हैं जो किसी भी देश के राष्ट्र अध्यक्ष को झूला नहीं झुलाता। जो बाइडेन आँखें तरेरने वाले मुल्क के पंत प्रधान है। गनीमत ये है कि वे भारत में किसी को आँखें तरेरने से बचे रहे।उन्होंने जो कहा वियतनाम जाकर कहा और अपने देश की प्रेस से कहा । हमारे पंत प्रधान तो हमारे देश की प्रेस को अछूत मानते हैं।
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