चम्बल का इतिहास रीत्ता जा रहा है । एक जमाना था जब पूरे देश में ग्वालियर-चंबल के डाकू चर्चा का विषय हुआ करते थे,साथ ही चर्चाओं में रहते थे इन दुर्दांत डाकुओं से लगातार मुठभेड़ें करने वाले भारतीय पुलिस सेवा के तमाम जाबांज अधिकारी। विजय रमन इनमें से एक थे । वे अकेले ऐसे पुलिस अधिकारी थे जिन्हें दर्प छू भी नहीं सका था । डाकू उनके नाम से कांपते थे।
बात 1980 -81 की है। मध्य्प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने दस्यु समस्या के उन्मूलन के लिए आत्म समर्पण का रास्ता तो खोला ही था साथ ही बन्दूक की गोलियों को भी अपना काम करने की छूट दी हुई थी । उन दिनों चंबल में तमाम डाको गिरोहों का आतंक था । इनमे से एक गिरोह था डाकू पान सिंह तोमर का। पान सिंह तोमर एक कुशल धावक और सेना का सेवानिवृत्त जवान था लेकिन स्थानीय परिस्थितियों ने उसे डाकू बना दिया था। डाकू पान सिंह तोमर का गिरोह आठवें दशक का एक ऐसा डाको गिरोह था जो पूरे इलाके में आतंक का पर्याय बन चुका था। पान सिंह का आतंक इतना खतरनाक हो गया था। तब पुलिस भी पान सिंह को पकड़ने से डरती थी सरकार ने पान सिंह तोमर को पकड़ने के लिए करीब 10,000 का इनाम रखा था ।
बात शायद 1 अक्टूम्बर 1981 की है । मै उन दिनों दैनिक आचरण अखबार में काम करता था । हमें खबर मिली की भिंड पुलिस ने एन्डोरी के पास डाकू पान सिंह गिरोह को घेर लिया है । एन्डोरी के पास नोनेरा गांव में रहने वाले हमारे चचा ने हमने एक निजी सन्देश वाहक से ये खबर भिजवाई।। उस जमाने में स्वदेश मेंकाम करने वाले आलोक तोमर और मै अपने साधन से मुठभेड़ स्थल के लिए रवाना हुए और जब मौके पर पहुंचे तो हमें पुलिस ने मील भर पहले ही रोक दिया। इंस्पेक्टर महेंद्र प्रताप सिंह हमारे मित्र थे। हमने उन्हें आवाज लगाईं तो उन्होंने हमें हाथ से इशारा कर रुकने के लिए कहा। आधी रात से शुरू हुई गोलाबारी सुबह तड़के तक चली और जब पौ फटी तब ये सिलसिला शुरू हुआ। एसपी विजय रमन अपने अमले के साथ विजयी मुद्रा में खड़े थे ,लेकिन उनके चेहरे पर तब भी कोई दर्प नहीं था। उन्होंने पूरी तैयारी के साथ पान सिंह के गिरोह को घेरा थ। कोई डेढ़ सौ के आसपास पुलिस इस अभियान में शामिल थे । विजय रमन ने गिरोह सरगना पान सिंह तोमर को उसके आधा दर्जन साथियों के साथ ढेर कर दिया था।
उस जमाने में न मोबाइल थे और न हम रिपोर्टरों के पास कैमरे। लेकिन विजय रमन ने हमें मारे गए डकैतों के फोटो मुहैया करने का आश्वासन देकर हमें मौके से विदा किया। तब ' ब्रेकिंग न्यूज ' का जमाना भी न थी । चौबीस घंटे चीखने वाले टीवी चैनल भी न थे । शाम के अखबार भी न थे ,इसलिए इस साहसिक मुठभेड़ की खबर पूरे चौबीस घंटे बाद अखबारों की सुर्खी बनी ,तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने विजय रमन को फोन पर इस कामयाबी के लिए बधाई दी। विजय रमन रातों रात देश के अखबारों की सुर्ख़ियों में थे। भिंड की जनता आज भी उन्हें याद करती है। वे सीआरपीएफ,बीएसएफ और रेलवे में भी रहे लेकिन उन्हें जो मान-प्रतिष्ठा डाकू पान सिंह तोमर गिरोह के खात्मे से मिली वो अपने आप में एकदम अलग थी।
उस जमाने में फूलन देवी और मलखान सिंह भी विजय रमन के निशाने पर थे लेकिन उन दोनों ने समर्पण का रास्ता अपनाकर अपनी जान बचा ली। विजय रमन ने चंबल की जनता को डाकुओं के आतंक से ही मुक्ति नहीं दिलाई बल्कि वे देश के चार प्रधानमंत्रियों के साथ एसपीजी के भी प्रमुख रहे । उन्होंने तत्कालनीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, वीपी सिंह, चंद्रशेखर और पीव्ही नरसिम्हाराव के साथ भी काम किया। संसद पर हमला करने वाले आतंकी गाजी बाबा का खात्मा भी विजय रमन की गोली ने ही किया । वे दुश्मनों के दुश्मन और दोस्तों के दोस्त हुआ करते थे।
मैंने कुछ वर्ष पहले मप्र में दस्यु उन्मूलन का इतिहास लिखने की योजना बनाई थी । उस समय विजय रमन साहब से मेरी अक्सर फोन पर बात होती रही। उनके पास सूचनाओं और अनुभवों का भंडार था । वे खुद एक पुस्तक लिखने की योजना बना रहे थे ,किन्तु प्रचार से सदा दूर रहने वाले अपना ये काम पूरा नहीं कर पाए वे फेसबुक पर भी सक्रिय थे । 72 वर्षीय श्री विजय रमन पिछले साल कैंसर ने उन्हें आ घेरा। कैंसर यानि कर्क रोग विजय रमन से जीत गया ।बेहद ईमानदार,निष्ठावान ,संवेदनशील अधिकारी के रूप में विजय रमन हमेशा याद किये जायेंगे । तत्पर निर्णय और नेतृत्व की अद्भुद क्षमता वाले विजय रमन के साथ बीते दिनों की सुधियाँ बार-बार द्रवित करतीं है । मध्यप्रदेश के दस्यु उन्मूलन अभियान में उनकी उपलब्धियां स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं । मेरी विनम्र श्रृद्धांजलि
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