राजकुमार गुप्ता 
सुना था कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है। लेकिन अब देख रहे हैं कि आवश्यकता हो या न हो किन्तु आविष्कार किया जा रहा है ।  हमारे भाग्यविधाता अब देश के भाग्यविधाता बन रहे है।  वे देश का आंग्ल नाम बदलकर दोबारा हिंदी वाला नाम भारत [ जो पहले से है ] को दोबारा स्थापित करना चाहते हैं। इसका श्रीगणेश जी-20  के देशों के सम्मेलन में आने वाले राष्ट्राध्यक्षों के सम्मान में राष्ट्रपति भवन में आयोजित होने वाले भोज के निमंत्रण पात्र से कर भी दिया गया है। हमारे भाग्यविधाताओं को अचानक ' इंडिया ' शब्द से अनुख [एलर्जी ] हो गयी है ।  वे अब हिन्दुस्तान, इंडिया को भारत कहना चाहते हैं,कहलवाना चाहते हैं।
भारत पहले भी भारत था आज भी भारत है और कल भी भारत रहेगा। लेकिन भारत अपनी  सीमाओं के बाहर 'इंडिया ' था ,है और अब नहीं रहेगा ,क्योंकि ऐसा भाग्यविधाता चाहते हैं। भाग्यविधाता जो चाहते  हैं सो करते है।  वे समर्थ हैं और समर्थ को कोई दोष नहीं दे सकता । वे ' रवि, पावक और सुरसरि ' की तरह समर्थ  है।  उनके पास देश की संसद के दोनों सदनों में बहुमत है ।  वे क़ानून बनाने के लिए जनता की भावनाओं का नहीं मेजों की थपथपाहट की जरूरत समझते हैं।  भारत के तीन नाम हैं। 'भारत ',' हिन्दुस्तान ' और ' इंडिया '। कहते हैं कि हिन्दुस्तान मुगलों का दिया नाम है और इंडिया अंग्रेजों का रखा नाम। होगा। जो शासक आता है आज के ही शासकों की तरह मनमानी करता है ।  देशों के नाम बदलता है। आज फिर बदलने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है।
 बदलाव प्रकृति का नियम है। प्रकृति जो बदलती है उसके लिए व्यक्ति उत्तरदायी नहीं होता लेकिन जो बदलाव मनुष्य करता है उसके लिए वो ही जिम्मेदार होता है। आज के भाग्यविधाता बदलाव की सनक लेकर सत्ता में आये है।  उन्होंने देश की सूरत और सीरत बदलने की सौगंध ली है ।  उन्होंने बदलाव का श्रीगणेश रेलवे स्टेशनों, शहरों ,से किया था और अब वे देश का नाम बदलने पर आमादा है।  मुझे भी कोई उज्र नहीं है   बदलाव की इस सनक पर। जब आप और कुछ नहीं बदल सकते तो नाम ही बदल सकते है।  बदल लीजिये। कहिये भारत ,लेकिन फिर प्रेसीडेंट मत कहिये राष्ट्राध्यक्ष कहिये। प्रधानमंत्री हो तो उस पद को प्रधान चौकीदार मत कहो।
दुनिया में आजादी हासिल करने वाले तमाम देशों ने अपने नाम बदले है। उन्हें इसकी जरूरत थी। हमने अपना नाम आजादी के बाद नहीं बदला ,हमें दुनिया हमारे मूल नाम भारत के अलावा हिन्दुस्तान और इंडिया के नाम से जानती है। नाम न बदलने की गलती एक बार फिर पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की है ।  वे आज के प्रधानमंत्री की तरह ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे, इसलिए उनसे गलती हो गयी। नेहरू की गलती को नरेंद्र जी सुधार रहे हैं। इसके लिए उनका कृतज्ञ होने की जरूरत है। हम कृतज्ञ हैं ,लेकिन हमें लगता है कि हमारे भाग्यविधाताओं की  सनक हमारे भारत का उसी तरह भरता न बनवा दे जिस तरह से योग का योगा बना दिया गया है।
हम सवाल नहीं कर सकते अपने भाग्यविधाताओं   से ,वरना पूछते कि नाम बदलने से क्या-क्या बदल जाएगा ? देश की गरीबी का नया नाम क्या होगा,क्योंकि गरीबी तो हमारी भाषा और संस्कृति का शब्द नहीं है ।  कालाधन का सांस्कृतिक नाम क्या होगा ? भ्र्ष्टाचार का नया नामकारण कौन करेगा ? नामकरण करने का अधिकार उसे होता है जो जनक है ।  भाग्यविधाता न विधाता हैं और न भारत के जनक।  वे मुगल भी नहीं हैं और अंग्रेज भी नही।  वे शाखामृग हैं। और शाखामृगों को देश के किसी मतदाता ने ये जनादेश नहीं दिया कि देश का जंगल नाम बदल दिया जाये ।  देश की पांच बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से कितनों ने अपने नाम बदले हैं ? हमारे विद्वान मित्र मनोज श्रीवास्तव पूर्व आईएएस हैं। वे नाम बदलने के समर्थन में अतीत में लम्बे-लम्बे लेख लिख चुके हैं। वे मुमकिन है कि इस विषय पर दोबारा प्रकाश डालें। लेकिन मुझे नहीं पता कि किसी व्यक्ति के एक से अधिक नाम होना कोई असांस्कृतिक बात है ।  राहुल गांधी का नाम पप्पू रखा गया ,बेचारे ने कुछ नहीं कहा । खुद नरेंद्र  दामोदर दास मोदी जी का नाम फेंकू रखा गया,वे भी आजतक कुछ नहीं बोले। फिर अचानक भारत को भारत कहने  की सनक  सरकार के सर पर कैसे सवार हो गयी ,ये राम ही जाने।
आपको देश के नाम के साथ ही देश का इतिहास ,भूगोल और अर्थशास्त्र बदलने की भी सनक सवार है। लेकिन ये सब आसान काम नहीं है।  बीते एक दशक में आपको जो बदलना चाहिए था वो आपसे बदला नहीं गया ।  नाम तो मायावती बहन ने भी खूब बदले थे।  क्या मिला बेचारी को ? आज हासिये पर हैं ।  कल आप भी हासिये पर होंगे। इतिहास का कूड़ादान सभी के लिए अपने भीतर स्थान रखता है। उससे डरिये ,बचिए सनक से। बदलना है तो आम जनता का भाग्य बदलिए ।  बदलना है तो समाज से नफरत का नाम बदलिए बल्कि उसका नामोनिशान मिटा दीजिये ,लेकिन ये सब आपसे होता नहीं है। हो भी नहीं सकता । जिस काम के लिए आपको जनादेश ही नहीं है वो काम आप कर रहे है।  आप सनातन के ठेकेदार है।  आप देवी-देवताओं के लिए लोक बनाने वाले सबसे बड़े विश्वकर्मा है।  बड़े-बड़े सूरमा देवी-देवताओं के लिए लोक और कॉरिडोर नहीं बना पाए ,लेकिन आपने बना दिए क्योंकि आप जनता को नहीं देवी- देवताओं को खुश कर सत्ता में बने रहना चाहते हैं। बने रहिये। आपकी मर्जी लेकिन भारत को हिंदुस्तान और इंडिया रहने दीजिये। अन्यथा दुनिया वाले भारत को भरता बोल-बोलकर सत्यानाश कर देंगे हमारे देश के नाम का ।
दुनिया  में तमाम बड़े देश हैं जिनके  एक से अधिक नाम है।  इंग्लैंड को ब्रिटेन ,इंग्लिश्तान कहते है,बरतानियाँ कहते हैं ।  अमेरिका को अमेरिका के अलावा यूएसए कहा जाता ह। चीन को चाइना कहा जाता है ।  भारत की तरह रूस का नाम भी रसिया और यूएसएसआर हुया करता था ।  रूस के भाग्यविधाताओं ने रूस का नाम बदला कर क्या हासिल कर लिया ? या जितने देशों ने अपने नाम बदले उन्हें नाम बदलने से क्या हासिल हुआ ।  लाला भिखारी दास का नाम भिखारी होने से क्या वे सचमुच भिखारी हुए ? या एक नयन वाले का नाम नयनसुख होने से किसी को दूसरी आंख मिली ? माना नाम किसी भी देश की पहचान होता है। और ये पहचान एक-दो साल में नहीं बनती ।  इस पहचान को अस्थाई रूप से दस-पंद्रह साल के लिए सत्ता में आने वाले लोगों को नहीं बदलना चाहिए। पहले नेहरू की तरह भारत को खोजना चाहिये । कोरे -पारे में विश्व गुरू  नहीं बना जाता ।  इसके लिए लिखना-पढ़ना पड़ता है। अनुशीलन करना पड़ता है।
बहरहाल भारत का नाम बदलने से हमारा और हम जैसे असंख्य लोगों का मुस्तकबिल तो बदलने वाला नहीं है ।  जिन शहरों रेल स्टेशनों और भवनों के नाम बदले गए उनसे क्या हासिल हुआ इसका आकलन करना भी एक जरूरत है। कोई बताये कि  इलाहाबाद को प्रयाग करने से क्या बदला ? क्या वहां कि धरती पर स्वर्ग उत्तर आया। या इलाहाबादी अमरूद का नाम बदलकर प्रयागी अमरूद हो गया ? जिस शहर को दीनदयाल नगर बनाया गया था क्या वहां के लोग सचमुच दीन दयाल हो गए ? भारत का नाम भारत है। कृपा कर उसके लिए नौटंकी  मत कीजिये। नाम बदलकर आप इतिहास पुरुष नहीं बन जायेंगे।  माफ़ कीजिये क्योंकि इतिहास पुरुष बनने के जो रास्ते हैं उनपर चलने का बूता आपका नहीं है । आपकी हिमाकत के प्रति हमारी सद्भावना नहीं है लेकिन हम ईश्वर से प्रार्थना तो कर ही सकते हैं कि वो आपको सनक मुक्त जन सेवक बनाये।  
  

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