राजकुमार गुप्ता 
मथुरा/ भाकियू चढूनी के कैंप कार्यालय गढ़सौली में एक बैठक का आयोजन किया गया जिसमें जिसमें सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया गया कि अगर किसानों की फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर नहीं खरीदा जाएगा, तो किसान सत्ताधारी राजनीतिक दल को वोट नहीं देंने पर विचार करेंगे। बैठक में मंडल अध्यक्ष रामवीर सिंह तोमर ने कहा कि जो राजनैतिक दल किसानों के हित में काम करेगा और उनकी फसलों को एमएसपी पर खरीदने की गारंटी लेगा, उसी पार्टी के पक्ष में किसान वोट डालेंगे। एमएसपी कानून लागू होने से फसल का पैसा बिचौलिए, दलालों की जेबों में न जाकर सीधे किसानों की जेब में जायेगा। उन्होंने कहा  कि किसान जो पूरी जिंदगी अपनी देश का पेट भरने में लगा देता है और अपने बच्चों को न ठीक से खिला पाता है, न ठीक से पढ़ा पाता है और न ही ठीक से उनका भविष्य तय कर पाता है, बहुत होता है, तो अपने बच्चों को देश की सेवा के लिए सेना और पुलिस में भेजने की सोचता है, और इस प्रकार से किसान पूरे परिवार के साथ देश सेवा में लगा रहता है, आज़ादी के 75 सालों बाद भी उस किसान के हाथ आता क्या है? या तो दुख-दर्द और जिल्लत भरी जिंदगी या फिर हजारों किसानों के हिस्से में फांसी का फंदा।  किसान किसी से कोई जलन नहीं रखता, किसी से नफरत नहीं करता और सिर्फ अपनी मेहनत का हक मांग रहा है, तो यह बात सरकारों को नागवार क्यों गुजरती है? श्री तोमर ने कहा कि चुनावी साल होने के बाद भी एनडीए की मोदी सरकार और विपक्षी गठबंधन इंडिया की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून बनाने के संबंध में किसी भी प्रकार की चर्चा सुनाई नहीं दे रही है। हैरानी की बात यह है कि केंद्र और राज्यों में सत्ताधारी राजनीतिक दलों के अलावा विपक्षी पार्टियों के नेता भी किसानों की एमएसपी की मांग को लेकर गंभीर दिखाई नहीं दे रहे हैं। वर्तमान में इंडिया गठबंधन की अभी भी क़रीब एक दर्जन राज्यों में सरकार है। यह स्थिति तो तब है, जब भारतीय संविधान ने इस प्रकार के कृषि एवं किसान कल्याण से संबंधित कानून निर्माण की अधिकारिता राज्यों को ही सौंप रखी है। अभी तक के परिदृश्य से यह तो स्पष्ट है कि वर्तमान में शासन करने वाला कोई भी दल मुद्दे के रूप में न्यूनतम समर्थन मूल्य कोई भी दल विरोधी सरकार को घेरते हुए तो दिखाई देता है, लेकिन उसके लिए खुद के द्वारा शासित राज्यों में इस प्रकार का कानून बनाने के लिए उनकी इच्छाशक्ति नहीं दिखाता। अगर इंडिया गठबंधन में शामिल वो दल, जिनकी राज्यों में सत्ता है, एमएसपी का गारंटी कानून ले आएं, तो केंद्र की मोदी सरकार और राज्यों में एनडीए और अकेले भाजपा की सरकारों को एमएसपी कानून बनाने को मजबूर होना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों में व्यवस्था परिवर्तन की मन:स्थिति हो तो, जनता को संघर्ष की आवश्यकता नहीं होगी। लेकिन इसके अभाव में जनता के पास संघर्ष ही एक विकल्प होता है, और किसान उसी संघर्ष से गुजर रहे हैं। सवाल यह है कि कृषि प्रधान देश में किसानों के जीवन में खुशहाली क्यों नहीं है? क्यों देश के सबसे बड़े उद्योग- कृषि उद्योग को सरकारें बर्बाद करने पर तुली हुई हैं? सिर्फ इसीलिए न कि बिचौलियों और पूंजीपतियों की जेबें किसानों से इस उद्योग को छीनकर भर सकें? लेकिन सरकार क्या समझती है कि क्या इस देश के किसान को आजादी की कीमत नहीं मालूम है? इस देश के किसान, जो खुद आजादी की लड़ाई के सिपाही थे और आजादी के बाद भी देश की हर तरह से जो सेवा कर रहे हैं, वो और अन्याय क्यों सहें? जो किसान देश को हर हाल में खुशहाल और देश के हर आदमी का पेट भरा देखना चाहते हैं, उनसे ही दुश्मनी निभाकर उनका नुकसान करके आखिर नेता उनके ही वोट बैंक से सत्ता की मलाई खाने की चालाकी कब तक करते रहेंगे? नेताओं को समझना चाहिए कि किसानों की खुशहाली और कृषि की समृद्धि ही सही मायने में देश की समृद्धि का रास्ता तैयार करेगी, न कि बैंकों से लाखों-करोड़ का कर्जा लेकर देश छोड़कर भागने वाले और डिफाल्टर होकर कर्जा माफ कराने वाले उन पूंजीपतियों से देश समृद्ध होगा, जो अपने ही देश के लोगों की मेहनत का पैसा दिन-रात तरह-तरह के हथकंडों से हड़प रहे हैं। लेकिन शासन करने वालों ने किसानों के साथ- साथ देश की चिंता को राम भरोसे छोड़ दिया है और विकास के नाम पर उस अंतहीन अंधेरी गली की ओर मोड़ दिया है, जहां चंद लोगों की तिजौरी भरने के अलावा पूरे देश की बर्बादी, भुखमरी, बेरोजगारी, गरीबी के सिवाय कुछ नहीं हैं। हमें यानि देश के उन लोगों को जो किसान नहीं है, सभी किसानों के साथ खड़ा होना चाहिए। क्या किसानों का समर्थन न मिलने पर कोई भी सियासी दल केंद्र में तो क्या, किसी भी राज्य में सरकार बना नही सकेगा? बैठक में जिला अध्यक्ष रामफल सिंह, डा  सतीश चन्द्र, कुंतभोज रावत, डा राधेश्याम, क्षत्रपाल सिकरवार, सोहन सिंह, भूले सिंह सिकरवार, पुष्पेंद्र सिंह चौधरी, मनोज चौधरी, प्रेम सिंह तोमर, डा प्रकाश,लाखन सिंह प्रधान, मोहन प्रधान, लक्ष्मण सिंह चौधरी, सोनवीर सिंह तोमर आदि रहे। बैठक की अध्यक्षता हीरो काका ने की, संचालन संजय पाराशर ने किया।

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