Report by Vijay Shankar Dubey
संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सौजन्य से एवं संस्कृति विभाग, उ० प्र० व भारतेन्दु नाट्य एकेडमी के सहयोग से व्यंजना आर्ट एंड कल्चर सोसायटी द्वारा आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी 'भारतीय रंगमंच की संगीत परंपरा एवं प्रयोग' के उद्घाटन सत्र का शुभारंभ मुख्य अतिथि एवं अध्यक्षा के रूप में उपस्थित प्रो० पूर्णिमा पाण्डेय, प्रख्यात लेखक श्री उदयन वाजपेई, प्रख्यात निर्देशक श्री सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ, पद्मश्री श्री शशिधर आचार्य, एस.एन ए निदेशक श्री शोभित नाहर सहित अनेक गणमान्यजनों ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया।
श्री उदयन वाजपेई ने कहा- "अभिनय के हर अंग में स्वर-ताल का होना अनिवार्य है व नाट्य की शैय्या है 'संगीत'।" श्री सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ ने अनेक निर्देशकों के साथ किए गए रंगमंच में संगीत के प्रयोगों के अनुभवों को साझा किया।
नाट्यशास्त्र के वृहद रूप की चर्चा प्रख्यात रंगमंच निर्देशक डॉ. गौतम चटर्जी ने की व नाट्य के प्राकृत पर चर्चा सुश्री पत्रिका जैन ने की।
ब्रज की रासलीला पर प्रकाश प्रो सीमा वर्मा एवं डॉ ऊषा बनर्जी ने डाला।
कुडिआट्टम नृत्य के सांगीतिक पक्ष पर श्री सूरज नम्बिआर ने प्रकाश डाला व मातस्रिका अभिनय से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया ।
सराईकेला छाऊ के प्रसिद्ध विद्वान पद्मश्री शशिधर आचार्य ने रंगमंच संगीत के प्रायोगिक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए विद्यार्थियों को रंगमंचीय संगीत पर अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया।
पद्मश्री श्री शशधर आचार्य जी ने बताया कि रंगमंच एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें कलाकार को गायन, वादन और नृत्य तीनों का समान ज्ञान होना चाहिए, तभी वह अपने नाटक की प्रस्तुति सही से प्रदर्शित कर पाएगा। हम छाऊ के कलाकार हैं और हम मुखौटा पहन कर प्रस्तुति देते हैं, फिर भी अंगिक अभिनय से सारे भाव प्रकट कर देते हैं। एक अच्छा कलाकार बनने के लिए एक अच्छा इंसान होना बहुत जरूरी है।
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubts, please let me know