कितना बदल गया इंसान
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पत्नी के लिए पिता व परिवार की मर्यादा 
को तार-तार करने वाले पुत्र की
 दास्तान
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यह एक ऐसी सच्ची दास्तान बुजुर्ग पाण्डेय जी की है जिन्होंने पूरा जीवन समाज और परिवार के लिए समर्पित किया ‌। अपने जीवन की पूरी कमाई उस बेटे पर लगाई और आज भी बेटा जीवन का जो आनंद ले रहे हैं पिता की ही दौलत पर ले रहे हैं। लेकिन जीवन के उस छणं में जब बेटे का सहारा पिता को चाहिए।अपना हीं बेटा अपनी पत्नी के द्वारा किए गए ताडव नृत्य को नजर अंदाज करता है और पिता जब बहू को उसके द्वारा किए गए गलती पर उसे डांटतें है तो वह बहू इसकी शिकायत अपने पति से करती है और पति महोदय अपने ही पिता से कहते हैं तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई। मेरी पत्नी को बोलने की, जो बोला करो सोच समझ कर बोला करो। यह घटना मेरी आंखों देखी है । पाण्डेय जी मेरे बहुत पुराने मित्र हैं ।किसी जमाने में उन्होंने पत्रकारिता के जीवन  में उच्च मापदंड लखनऊ राजधानी में स्थापित किया था डीएम और कप्तान मंत्री संतरी एक फोन पर उनके दरवाजे पर दस्तक देते थे। लेकिन यह सच ही है हर समय और वक्त बराबर नहीं होता। जवानी के दौर से गुजर कर पाण्डेय जी 75 से अधिक उम्र पार कर चुके हैं । उनको चलने फिरने में दिक्कत है । जब मैं लखनऊ में रहता था तो प्रतिदिन समय निकाल करके उनके ऑफिस अवश्य मिलने जाता था वह भी अपने छोटे भाई के तरीके से हमें इज्जत और सम्मान देते थे और आज भी जब मोबाइल जब लेते हैं व्हाट्सएप पर अवश्य लिखते हैं छोटे भाई तिवारी जी लखनऊ कब आना हो रहा है आपकी बहुत याद आती है जब लखनऊ आवे तो आवास आवश्यक आये, बैठकर एक गप सप व चाय पिया जाएगा।  अगस्त माह में जब मैं लखनऊ गया तो बेटे से कहा पाण्डेय जी का कई बार व्हाट्सएप आया है उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है। मेरे वह पत्रकारिता के गुरु भी हैं । उनसे मिलने चलना है तब मेरे बेटे ने कहा ठीक है पिताजी अपना  प्रेस वाला काम निपटा लीजिए शांम को चला जाएगा।।
शांम 5:00 बजे जब कंप्यूटर ऑपरेटर चला गया तो मैंने बेटे
 के पास फोन किया आ जाओ चलो पाण्डेय जी के यहां हो लेते हैं। मेरी बात सुनकर बेटे ने कहा पिताजी ऑफिस से छुट्टी नहीं मिली अभी आधे घंटे बाद बाराबंकी से हमें फुरसत मिलेगी। सुबह का समय रख लिया जाए। चूंकि मुझे फैजाबाद भी आना था इसलिए मैंने सोचा पाण्डेय जी को फोन कर लें। और मेट्रो से उनके घर चले जाएं। ठीक आलमबाग मेट्रो स्टेशन के पास ही पाण्डेय जी का घर पड़ता है। पाण्डेय जी से बात हुई और मैं मेट्रो से उतरकर पाण्डेय जी के घर पहुंचा तो वह बहुत खुश हुए। अपनी पत्नी को बुलाया कहां देखो अशोक जी आए  है। कुछ जलपान की व्यवस्था करो। उनकी पत्नी घर जाती है तो देखती है जेठानी और देवरानी आपस में लड़ रही और वह आवाज बाहर तक आ रही थी काफी देर तक पाण्डेय जी ने सुना फिर उन्होंने उठकर पुकारा छोटी बहू क्या बात है बाहर आकर उसने इसकी कोई परवाह नहीं किया कि घर में कोई मेहमान आया है उसने बाणी का  तांडव नृत्य जारी रखा । उसकी इस गुस्ताखी के लिए डाटा और कहा तुम्हारी आदत बहुत खराब हो गई है अपनी आदत में सुधार कर लो ससुर की यह बात बहू को नागवार लगी और फौरन पति को फोन कर घर बुलाया और अपने पति के कान पाण्डेय जी के खिलाफ भरे और पति महोदय ने भी आव देखा न ताव फौरन बाहर आकर अपने पिता से कहने लगे तुम्हारी कैसे हिम्मत हुई। सुप्रिया को बोलने की, सोच समझ कर बोला करो, मैं सामने बैठा हस्तप्रभ था। और पाण्डेय जी के आंखों से अंशु टपक रहे थे। पाण्डेय जी अपने बुढ़ापे से मजबूर थे।मैं सोचने लगा यही पाण्डेय जी है,जिनका कभी सिक्का चलता था लेकिन आज वह अपनी बहू व बेटे के की डायरी में उनका कोई सम्मान नहीं। बेबस पाण्डेय जी बहुत आहत थे ? लेकिन करते क्या उन्होंने कहा तिवारी जी मुझे मालूम यह सब होने वाला है अगर जानता तो आपको रोक देता मुझे खेद है। इससे अधिक मेरी क्या इज्जत जायगी? तो मैंने कहा आप परेशान न हों आजकल हर घर की यही दास्तान है।आप खुश रहिये प्रसन्न रहिए और इन सब बातों को नजर अंदाज कर दिया करो। वक्त और समय पर सब ठीक हो जाएगा। इनको भी ख्याल तब आएगा जब आप इस दुनिया में नहीं रहेंगे।

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