मथुरा।वृन्दावन में बाँकेबिहारी एक ऐसी छवि है जिसकी छाप किसी भक्त के हृदय से दूर नहीं हो सकती क्या विचार किया है एक समय बिना भीड़ भाड़ के घंटों नैन से नैन मिलाकर नेत्रों से अश्रु टपकाकर हम उनको स्वच्छंद होकर निहारा करते थे पेड़े वाले पोशाक वाले लस्सीवाले टिकिया भल्ले वाले उस समय टकटकी लगाकर ग्राहक का इंतजार किया करते थे ऐसा क्या हुआ कि सारा जग बिहारी जी की ओर मुड़ गया वहाँ के दर्शन हो गये तो तीनों लोक के दर्शन हो गये जिसको देखो उसको ठाकुर जी ने अनाप शनाप धनवर्षा करके दिया।
अब इसका कारण खोजते हैं आज से दस साल पहिले जो यात्री आता था वह नियंत्रित था लेकिन अब अनियंत्रित है आपने गाना सुना होगा "मेरे उठै हृदै की पीर सखी विन्दावन जाऊंगी" जब मैने एक लोकगीत गायिका से पूछा तो कहने लगीं मेरी दादी भी गाती थीं "श्री राधावल्लभ लाल सखी जाके दरसन तौ करियो" और "राधारमण हरि बोल जै जै राधारमण हरि बोल'बाँकेबिहारी कजरारे तेरे मोटे मोटे नैन नजर तोय लग जायगी।
यानी कितने गाने है जो भागवताचार्यों के माध्यम से लोकगीत गायकों के माध्यम से रसिया या स्वांग के माध्यम से विभिन्न अवसरों में गाये गये हैं वह हर ठाकुर की छाप छोड़ते हैं मेरा मानना है कि हर देवालय आज तक ऐसे हृदयस्पर्शी गानों को ला नहीं पाया उनको अपने अपने देवालयों के प्रचार प्रसार के गीत तैयार कराने चाहिए और अच्छे कलाकारों से प्रस्तुति दिलवाने के आयोजन होने चाहिये तभी यह भीड़ चहुंमुखी होगी।
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