जौनपुर। बताए गए फसलों के प्रमुख कीट/रोग व उनसे बचाव के उपाय
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जौनपुर। जिला कृषि रक्षा अधिकारी विवेक कुमार ने किसान भाइयों को सलाह दी है कि वे खरीफ फसलों में लगने वाले कीटों/रोगों से बचाव हेतु अपने खेत की सतत् निगरानी करते हुए फसल में लक्षण दिखाई देने पर बचाव कार्य करें।
उन्होंने बताया है कि अरहर/धान का पत्ती लपेटक रोग में पीले रंग की सूड़ियॉ पौधे की चोटी की पत्तियों को लपेटकर सफेद जाला बना लेती है और उसी में छिपी पत्तियों को खाती हैं और बाद में फूलों, फलों को नुकसान पहुॅचाती हैं। इनसे बचाव हेतु मोनोक्रोटोफॉस 36 प्रतिशत 1.000 लीटर या क्यूनालफॉस 25 प्रतिशत 1.250 लीटर प्रति हे0 की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। धान का तना छेदक रोग में इस कीट की पूर्ण विकसित सूड़ी हल्के पीले रंग के शरीर तथा नारंगी पीले रंग की सिर वाली होती है जो फसल के लिये हानिकारक है। इनके आक्रमण के फलस्वरूप फसल के वानस्पतिक अवस्था में मृतगोभ तथा बाद में प्रकोप होने पर सफेद बाली बनती है। इनके नियंत्रण हेतु कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि0ग्रा0 या कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 प्रतिशत दानेदार चूर्ण 17-18 कि0ग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
धान की पत्तियों का भूरा धब्बा रोग में पत्तियों पर गहरे कत्थई रंग के गोल अण्डाकार धब्बे दिखाई देते हैं तथा इन धब्बों के चारों तरफ हल्के पीले रंग का घेरा बन जाता है जो इस रोग का विशेष लक्षण है। इसके उपचार हेतु मैंकोजेब 75 प्रतिशत या जिनेब 75 प्रतिशत रसायन को 2 कि0ग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। धान का शीथ झुलसा रोग में पत्तियों के निचले भाग पर अनियमित आकार के धब्बे बनते हैं जिनका किनारा गहरा भूरा तथा बीच में हल्के रंग का होता है। इसके उपचार हेतु कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत एक कि0ग्रा0 या कार्बेण्डाजिम 500 ग्राम और मैंकोजेब 75 प्रतिशत रसायन 250 ग्राम मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। धान का जीवाणु झुलसा रोग में पत्तियों की नोक और उनके किनारे सूखने लगते हैं और किनारे अनियमित एवम् टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं। लक्षण दिखते ही नत्रजन की टाप ड्रेसिंग रोक देनी चाहिये और उपचार कार्य हेतु कापरआक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत घु0चू0 500 ग्राम और स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 15 ग्राम मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
उर्द/मूॅग का पीला चित्रवर्ण रोग में पत्तियों पर सुनहरे पीले चकत्ते पड़ने लगते हैं और रोग की उग्र अवस्था में पूरी पत्ती पीली पड़ जाती है। पूर्ण रूप से रोगग्रस्त पौधे को उखाड़कर नष्ट कर दें तथा उपचार कार्य हेतु डाइमेथोएट 30 प्रतिशत ई0सी0 1.000 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। धान का फुदका रोग में इस कीट के शिशु एवम् प्रौढ़ दोनों पौधों के किल्लों के बीच रहकर पत्ती का रस चूसते हैं। आवश्यकता से अधिक चूसा हुआ रस निकलने के कारण पत्तियों पर काला कंचुल हो जाता है। वानस्पतिक अवस्था में इसके प्रकोप से पौधे छोटे रह जाते हैं। इसके उपचार हेतु नीम आयल 1.500 लीटर या क्यूनालफॉस 25 प्रतिशत 1.500 लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत 250 मि0ली0 प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
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