"दुहाई दे रही घर की आबरु ....
जाति-मजहब की बढ़ी है खाई,
लाशों के सौदागर ने,
ऐसी मणिपुर में आग लगाई,
जल रहे सपने, उजड़ रहा आशियाना,
अपने ही देश में,अपने हुए बेगाना,
नीच कुत्सित दरिन्दों को,
तनिक न लाज आई,
दुहाई दे रही घर की आबरु,
फिर से अवतार लो कन्हाई !"
"अब दु:शासन एक नहीं है,
यहां दु:शासन के मेले हैं,
नर पिशाच सत्ता के भूखे,
दु:शासन के चेले हैं,
सरे-आम बेटियां लूटीं,
लूटीं घर की काकी हैं,
पुरे देश में आग लगी है,
कौन घरौंदा बाकी है ?
देश की अस्मिता हुई नीलाम,
कहते दागी खाकी है,
फिर से अमन चैन बसाने की,
नव पीढ़ी जगाने की,
आज हमने शपथ उठाई,
दुहाई दे रही घर की आबरु,
फिर से जन्म लो कन्हाई।।"
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