अली साहब के इमाम बाड़े में मजलिसे अज़ा का आयोजन किया गया
मजलिस को मौलाना जायर अब्बास साहब ने सम्बोधित करते हुए कहा कि मुहम्मद मुस्तफ़ा ने इरशाद फ़रमाया कि मेरा हुसैन मुझसे है और मै अपने हुसैन से हूं अब नवासे का नाना से होना तो समझ में आता है,पर नाना नवासे से कैसे हो सकता है?
मौलाना ने आगे कहा कि कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन ने अपने साथियों के साथ शहीद होकर दीने इस्लाम को बचा लिया और अपने नाना की इस बात को सही साबित कर दिया कि नाना भी नवासे से हो सकता है
अंत में उन्होंने इमाम हुसैन और उनके साथियों की मुसीबत का ज़िक्र किया तो लोगों की आंखें आंसुओं से भर आईं। इसके इंतजाम कार्य में इजहार उल हसन एडवोकेट ने किया।
मजलिस के बाद पांचवी मोहर्रम का जुलूस मरहूम फाते अली साहब के इमामबाड़े से निकलकर पूरे गांव में भ्रमण करके दरगाह पर आकर शाम को समाप्त हुआ
असगर अली
उतरौला
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