राजकुमार गुप्ता।

पहिले हम झोंपड़ी में ही रहा करते थे,
        आज अपने आश्रम आलीशान हो गये।
कल तलक घर घर भीख भी माँगी थी,
           बिहारी जी की कृपा है धनवान हो गये।
ब्रजवासियों की चरण वंदना का फल है,
         बड़े बड़े रईस अब अपने दरबान हो गये।
ये ब्रजभूमि की महिमा ही समझलो,
                राधे राधे जपकर ही महान हो गये।
अपने घर में एक तुलसी का पौधा था,
               अबतो सब सोने की खान हो गये।
हम कमाकर खायेंगे सबको संदेह था,
         प्रभु की कृपा से अब ज्ञानवान हो गये।
गालियाँ,गरीबी,दुर्दिन रहे बहुत दिन,
              सबके सब अबतो वरदान हो गये।
मानवता की आड़ से जो भी कर्म किया,
               सेवाकार्य धर्म की दुकान हो गये।
विकास के दौर में इतना बदल गये हम,
        गायब संस्कृति के सारे निशान हो गये।
वैभव भी अब तो चरण चूमता है,
         टूटे फूटे कमरे भी आलीशान हो गये।
हरियाली,लता, पता,वाले वन,गायब हैं,
          गेस्ट हाउस ब्रज की पहचान हो गये।
गरमागरम जलेबी कचौड़ी कौन खाता है,
         फास्ट फूड बड़े बड़े खानपान हो गये।
वेश परिवेश देख किस पर भरोसा करें,
           चारों ओर धार्मिक पैदा डान हो गये।

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