उतरौला बलरामपुर मोहर्रम के ताज़िए के निर्माण को कारीगरो ने अन्तिम दौर में ताजिया को तैयार करने में जुटे हैं। इधर दसवीं मोहर्रम का दिन करीब आने पर ताज़िए की खरीददारी करने वालो की भीड़ बढ़ती जा रही है। 
उतरौला में ऐतिहासिक व प्रसिद्ध मोहर्रम का त्योहार बड़े ही श्रद्धा पूर्वक मनाया जाता है। इस त्योहार को मनाने के लिए सउदी अरब, अमेरिका, कुवैत, इराक, अफगानिस्तान व खाड़ी देशों से इसके मानने वाले आते हैं। इस क्षेत्र में एक हजार से लेकर दस लाख की लागत से बनने वाली ताजिए को बनाकर उसे नवी की रात में चबूतरे पर रखा जाता है और वहां पर नोहा पढ़ा जाता है तथा मोहर्रम में मारे गए लोगों की याद में मातम किया जाता है।
उतरौला में ताज़िए का निर्माण कर रहे मोहम्मद साकिब ने बताया कि मोहर्रम के ताज़िए के निर्माण को लगभग चार माह पहले से शुरू कर दिया जाता है। बांस की तीली से ताज़िए का निर्माण में घर के सभी सदस्य बड़े ही मेहनत से जुट जाते हैं। ताज़िए का ढांचा तैयार होने के बाद उस पर नक्काशी दार कागज लगाया जाता है तथा उसे कागजी फूलों के झालर, ,झूमर व अन्य आकर्षक कागजी सजावट के सामानों से सजाया जाता है। कारीगर मोहम्मद उस्मान शाह ने बताया कि मोहर्रम में ताज़िए को बनाने के लिए मुस्लिम परिवार काफी मेहनत करते हैं। मंहगाई के कारण ताज़िए के निर्माण के लिए कच्चा माल काफी महंगा हो जाने से तमाम कारीगर इस व्यवसाय से दूर होते जा रहे हैं। उसके बाद भी पुश्तैनी कारीगर इस व्यवसाय में जुटे हैं। कारीगर छिददू बताते हैं कि उतरौला का मोहर्रम काफी प्रसिद्ध है। इसमें मुस्लिम देशों व दूसरे देशों के लोग आते हैं और उतरौला में ऐतिहासिक मोहर्रम मे भाग लेते हैं। उतरौला में काफी संख्या में मुस्लिम तबके के लोगो के साथ हिन्दू लोग भी ताज़िए को खरीदकर ले जाते हैं और अपने घरो‌ व चबूतरे पर ताज़िए को रखकर हिन्दू मुस्लिम एक साथ मोहर्रम को मनाते हैं। ताज़िए के निर्माण बहुत मेहनत से किया जाता है। गरीब तबका कम कीमत वाला ताजिया खरीदता है वहीं कुछ लोग लाखों रुपए का ताजिया खरीदते हैं।‌क्षेत्र के क ई गांवों में सार्वजनिक रूप से दसों लाख रुपए कीमत के विशाल ताजिया कारीगर से बनवाकर  रखें जाते हैं। विशाल रूप हो
ने से दूर दूर गांव से लोग इसे देखने आते हैं। इस कारण वहां पर बड़ा मेला लगता है। 
ताजिया के मनाने वाले अधिकाश कारीगर उतरौला के मोहल्ला रफी नगर में होने से ताजिया खरीददारों की भीड़ पांचवीं मोहर्रम से लगी रहती है। लोग ताजिया की खरीद करके अपने घर ले जाते हैं और नववी को चबूतरे या घरों में रखते हैं।
असगर अली 
उतरौला 

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