*लखनऊ विश्वविद्यालय के नए पीएचडी अध्यादेश में पीएचडी मूल्यांकन प्रक्रिया में आमूल परिवर्तन*
शोध उत्कृष्टता के लिए विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त संस्थान, लखनऊ विश्वविद्यालय, अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के अपने प्रक्रिया में निरंतर क्रियाशील है।
माननीय कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार राय के दूरदर्शी नेतृत्व में, विश्वविद्यालय राष्ट्रीय शैक्षिक नीति के अनुरूप एक नया पीएचडी अध्यादेश लागू करने की तैयारी कर रहा है, जिसका उद्देश्य अनुसंधान, उत्कृष्टता को बढ़ावा देना और वैश्विक मानकों को पूरा करना है।
उच्च शिक्षा संस्थानों की मान्यता और रैंकिंग में अनुसंधान की महत्वपूर्ण भूमिका को समझते हुए, माननीय कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार राय ने विश्वविद्यालय में अनुसंधान गतिविधियों को सक्रिय रूप से सुदृढ़ किया है। इन पहलों में स्नातक और स्नातकोत्तर दोनों स्तरों पर शोध की शुरूआत के साथ-साथ छात्रों और संकाय सदस्यों के लिए विभिन्न अनुसंधान प्रोत्साहन योजनाओं का कार्यान्वयन शामिल है।
लखनऊ विश्वविद्यालय की असाधारण शोध उपलब्धियों ने प्रतिष्ठित NAAC A++ ग्रेड के साथ-साथ NIRF, QS एशिया, टाइम्स हायर एजुकेशन, एडुरैंक और नेचर इंडेक्स रैंकिंग में प्रमुख रैंकिंग हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
अनुसंधान उत्कृष्टता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के अनुरूप, लखनऊ विश्वविद्यालय वर्तमान में एक नया पीएचडी अध्यादेश तैयार कर रहा है जो पीएचडी जमा करने और मूल्यांकन प्रक्रिया में क्रांतिकारी बदलाव लाने का प्रयास है। इस अभूतपूर्व अध्यादेश की मुख्य विशेषता पीएचडी थीसिस का मूल्यांकन करने के लिए भारत के एक परीक्षक और अनुसंधान पर्यवेक्षक के अलावा कम से कम एक विदेशी परीक्षक को शामिल करना है। यह कदम सुनिश्चित करता है कि पीएचडी छात्रों द्वारा किया गया शोध उत्कृष्टता के वैश्विक मानकों का पालन करता है और विश्वविद्यालय में हुए शोध को विश्व पटल पर भी उपलब्ध कराएगा।
थीसिस मूल्यांकन प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए, विश्वविद्यालय एक समर्पित अनुसंधान पोर्टल विकसित करेगा। यह ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर थीसिस जमा करने से लेकर मूल्यांकन और मौखिक परीक्षा तक की पूरी प्रक्रिया को अधिकतम छह महीने की अवधि के भीतर पूरा करने में सक्षम होगा। कागज रहित दृष्टिकोण अपनाकर, नया अध्यादेश न केवल शोध छात्रों के समय और ऊर्जा को बचाएगा और साथ ही मूल्यांकन प्रक्रिया में पारदर्शिता को भी बढ़ाएगा।
पहले, छात्रों को अपनी थीसिस की कई प्रतियां जमा करने की आवश्यकता होती थी, जो पारंपरिक डाक सेवाओं के माध्यम से परीक्षकों को भेजी जाती थीं। मूल्यांकन रिपोर्टें भी इसी माध्यम से ही भेजी जाती है, जो की एक लंबी प्रक्रिया है जिसमें एक वर्ष तक का समय लग सकता है। नए अध्यादेश का कार्यान्वयन पूरी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करेगा, जिससे अनावश्यक देरी और कागजी कार्रवाई समाप्त हो जाएगी।
इस परिवर्तनकारी पहल पर टिप्पणी करते हुए डीन एकेडमिक्स प्रोफेसर पूनम टंडन ने कहा कि, "लखनऊ विश्वविद्यालय अपने छात्रों के लिए एक विश्वस्तरीय अनुसंधान वातावरण प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह नया पीएचडी अध्यादेश न केवल वैश्विक अनुसंधान मानकों को बनाए रखेगा साथ ही मूल्यांकन प्रक्रिया को भी और प्रभावशील बनाएगा।
माननीय कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार राय ने कहा, "हमें नवाचार को अपनाने और शोध ग्रंथ मूल्यांकन में डिजिटल प्रणाली को अपनाने पर गर्व है। प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञता को शामिल करके, हमारा लक्ष्य एक अग्रणी अनुसंधान संस्थान के रूप में अपनी स्थिति को और भी मजबूत करना है। नया पीएचडी अध्यादेश अनुसंधान में उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के हमारे मिशन में एक महत्वपूर्ण कदम है।"
लखनऊ विश्वविद्यालय, शोध में उत्कृष्टता की दिशा में इस परिवर्तनकारी यात्रा को शुरू करने के लिए उत्साहित है। नया पीएचडी अध्यादेश विश्वविद्यालय को अत्याधुनिक अनुसंधान करने में सक्षम बनाएगा, जिससे ज्ञान और नवाचार के वैश्विक केंद्र के रूप में इसकी प्रतिष्ठा और बढ़ेगी।
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